Main Mulayam Singh Yadav: वो दंगल जिसने बनाया था मुलायम को पहली बार विधायक
नई दिल्ली। Main Mulayam Singh Yadav.दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव(Mulayam Singh Yadav) के जीवन पर आधारित फिल्म 'मैं मुलायम’ 22 जनवरी को रिलीज हो रही है। गुरुवार को इस फिल्म का ट्रेलर जारी किया गया। मुलायम सिंह यादव अपनी बायोपिक बनने से बहुत खुश हैं। इस फिल्म में उनके जीवन संघर्ष और राजनीतिक यात्रा को दिखाया गया है। पहले यह फिल्म 2 अक्टूबर को रिलीज होने वाली थी। लेकिन कोरोना गाइलाइंस को देखते हुए इसके प्रदर्शन की तारीख आगे बढ़ा दी गयी थी। मुलायम सिंह यादव अब 82 साल के हैं और उनकी सेहत भी ठीक नहीं रहती। 2019 में जब उन्हें सांसद के रूप में शपथ लेनी थी तो उन्हें व्हीलचेयर पर लोकसभा में लाया गया था। उनकी असल जिंदगी की कहानी भी किसी रोमांचक फिल्म की तरह उतार-चढ़ाव से भरी हुई है। 28 साल के मुलायम सिंह यादव जब पहली बार विधायक बने तो कई मिथक टूट गये थे। वे पहलवान बने, शिक्षक बने, विधायक बने, मुख्यमंत्री बने और रक्षा मंत्री भी बने।
पिता की इच्छा से बने पहलवान
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का सैफई गांव। मुलायम सिंह यादव का जन्म इसी गांव में हुआ। भारत को आजाद हुए दो तीन साल हो चुके थे। तब मुलायम सिंह की उम्र करीब बारह साल की थी। उस जमाने में पहलवान होना बड़े गौरव की बात मानी जाती थी। जिस घर में कोई पहलवान रहता उसकी गांव-जवार में बहुत इज्जत होती। धाक भी रहता। मुलायम सिंह के पिता सुघर सिंह ने भी अपने बेटे को पहलवान बनाने का मन बना लिया। पिता ने मुलायम सिंह को अखाड़े में उतार दिया। रोज दूध मलाई खाते और दंड बैठक लगाते। अठारह-बीस के होते-होते मुलायम सिंह अच्छे पहलवान बन चुके थे। आम तौर पर पहलवान को सरस्वती का नहीं बल्कि शक्ति का उपासक माना जाता है। मतलब, पहलवान को पढ़ाई से कोई मतलब नहीं। लेकिन मुलायम सिंह ने इस मिथ को तोड़ा और पढ़ाई भी की।
मुलायम सिंह की पहलवानी
मुलायम सिंह की जब बाइस-तेइस साल के थे तब उनकी पहलवानी की धाक जम चुकी थी। उस समय सरयूदीन त्रिपाठी इटावा और मैनपुरी इलाके के बड़े नामी पहलवान थे। वे लंबे कद के बहुत बलिष्ठ शरीर के स्वामी थे। उनको उत्तर प्रदेश का बड़ा पहलवान माना जाता था। मुलायम सिंह छोटे कद और मजबूत काठी के पहलवान थे। इटावा के राजपुर में एक दंगल का आयोजन किया गया था। इस कुश्ती प्रतियोगिता में सरयूदीन त्रिपाठी और मुलायम में मुकाबला हुआ। त्रिपाठी ताकतवर थे तो मुलायम फुर्तीले। आधा घंटे तक मुकाबला चलता रहा लेकिन कोई किसी को चित नहीं कर पा रहा था। लेकिन तभी फुर्तीले मुलायम ने अपने से दोगुने कद-काठी वाले सरयूदीन त्रिपाठी को ऐसा दांव मारा कि वे चित हो गये। इस दंगल को जीतने के बाद मुलायम सिंह का बड़ा नाम हुआ। उनकी गिनती बड़े पहलवानों में होने लगी।
वो दंगल जिसने बदल दी किस्मत
1962 में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चल रहा था। जसवंत नगर क्षेत्र के एक गांव में बहुत बड़ी कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। मुलायम सिंह इस दंगल में शामिल थे। उस समय नत्थू सिंह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर जसवंत नगर से चुनाव लड़ रहे थे। एक दिन चुनाव प्रचार के दौरान नत्थू सिंह दंगल देखने पहुंच गये। उन्होंने मुलायम सिंह का नाम सुन रखा था और वे उनकी कुश्ती देखना चाहते थे। मुलायम सिंह ने अपना मल्ल कौशल दिखाया और प्रतिद्वंद्वी पहलवान को आसानी से चित कर दिया। नत्थू सिंह मुलायम के मुरीद हो गये। नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के सिर आशीर्वाद का हाथ रख दिया। इसके बाद मुलायम सिंह, नत्थू सिंह करीबी हो गये।
किस्मत वाले को ही मिलते हैं ऐसे गुरु
मुलायम सिंह ने कुश्ती के साथ-साथ पढ़ाई भी जारी रखी। 1960 में उन्होंने इटावा के केके कॉलेज में एडमिशन लिया था। यहां वे लोहिया के समाजवाद से परिचित हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव के समय गैरकांग्रेसवाद की हवा चल रही थी। समाजवादी दलों की स्थिति मजबूत दिख रही थी। इटावा के जसवंत नगर सीट से संसोपा ने फिर नत्थू सिंह को उम्मीदवार बनाने का मन बनाया। लेकिन नत्थू सिंह ने पार्टी के सामने अपने शिष्य मुलायम सिंह यादव के नाम का प्रस्ताव रख दिया। संसोपा के बड़े नेता 28 साल के नौजवान (मुलायम) को टिकट नहीं देना चाहते थे। जाहिर था नत्थू सिंह के सामने मुलायम नौसिखिये थे। लेकिन गुरु को अपने शिष्य पर पूरा भरोसा था। पांच साल पहले मुलायम ने जो कुश्ती प्रतियोगिता जीती थी उसकी याद नत्थू सिंह के दिलोदिमाग में रच बस गयी थी। नत्थू सिंह मुलायम सिंह को टिकट देने पर अड़े रहे। आखिरकार संसोपा मुलायम को टिकट देने पर राजी हो गयी। ये किस्मत की बात है कि मुलायम को नथ्थू सिंह जैसे गुरु मिले थे।
जब 28 साल के मुलायम बने विधायक
जब 1967 में जसवंत नगर से मुलायम को संसोपा का टिकट मिला तो कांग्रेस में खुशी की लहर दौड़ गयी। मुलायम को नया उम्मीदवार मान कर कांग्रेस अपनी जीत पक्की मान कर चलने लगी। मुलायम सिंह यादव का मुकाबला कांग्रेस के लाखन सिंह यादव से था। उस समय यही माना जा रहा था कि लाखन सिंह, मुलायम सिंह को आसानी से हरा देंगे। कांग्रेस के नेता मुलायम को नौसिखिया बता कर खिल्ली भी उड़ाते। चुनाव लड़ने से पहले मुलायम शिक्षक की नौकरी कर रहे थे। मुलायम सिंह इस क्षेत्र के नामी पहलवान रह चुके थे। राममनोहर लोहिया उस समय जिंदा थे। उनकी नीतियों और नारों की वजह से संसोपा का पिछड़ी जातियों में प्रभाव बढ़ गया था। मुलायम अपने कॉलेज के दिनों में छात्र नेता रह चुके थे। गरीबों को गोलबंद करने वाले भाषण देने लगे। लोहिया के नाम और पहलवानी के काम से मुलायम की सभाओं में भीड़ जुटने लगी। जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो मुलायम बड़े मार्जिन से जीते। इस तरह 28 साल के नौजवान मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई। इसके बाद आगे जो हुआ अब वह इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है।
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