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कश्मीर: वो क़ानून, जो 370 हटाने के दौर में बना सरकारी गिरफ़्तारियों का औजार

पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत कई कश्मीरी अब भी जेलों में बंद हैं, इनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी शामिल हैं.

By माजिद जहांगीर
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कश्मीर: वो क़ानून, जो 370 हटाने के दौर में बना सरकारी गिरफ़्तारियों का औजार

छह अगस्त 2019 की रात को भारतीय सुरक्षाबलों ने कश्मीर के कुलगाम ज़िले के बोलोसो गाँव में 19 साल के नदीम अशरफ़ वानी के घर पर छापा मारा.

नदीम की मां तसलीमा बताती हैं, "हम सो रहे थे. रात के क़रीब एक बजे थे. तभी सुरक्षाबलों ने दरवाज़ा खटखटाया. नदीम और मेरा छोटा बेटा मेरे साथ कमरे में सो रहे थे. उन्होंने चीखकर हमसे दरवाज़ा खोलने के लिए कहा. मैंने लाइट्स जलाईं और दरवाज़ा खोला. ये पुलिस और आर्मी की संयुक्त टीम थी. यह काफ़ी डरावना था."

वे बताती हैं, "उन्होंने मुझे अंदर भेज दिया, मेरे दोनों बेटों को लॉन में ले गए और क़रीब 15 मिनट तक उनसे पूछताछ की. इसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया."

तसलीमा कहती हैं कि सुरक्षाबल घर से चले गए, लेकिन वे फिर से वापस लौटे और नदीम से पड़ोस के घर का रास्ता दिखाने को कहा. 19 साल का नदीम उनके साथ चला गया. तब से लेकर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है.

"मैं अपने बेटे के बारे में जानती हूँ. वह आंतकवादी नहीं है और उसने कभी भी ग़ैर क़ानूनी काम में हिस्सा नहीं लिया था. मैंने सरकार अपील की है कि मेरे बेटे को रिहा कर दिया जाए."

सेंट्रल जेल, श्रीनगर
BBC
सेंट्रल जेल, श्रीनगर

पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) के आदेश के तहत नदीम को हिरासत में लिया गया था. यह एक विवादित क़ानून है. इसके तहत अधिकारियों को किसी भी शख़्स को आम व्यवस्था क़ायम रखने के लिए बिना किसी ट्रायल के एक साल तक के लिए हिरासत में रखने का अधिकार मिल जाता है.

साथ ही इस क़ानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी को भी बिना ट्रायल के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.

नदीम को उत्तर प्रदेश की बरेली जेल में रखा गया है. उनके घर से यह जगह एक हजार किलोमीटर से ज़्यादा दूर है. उनके पिता मुहम्मद अशरफ़ वानी एक बढ़ई हैं. वे अपने बेटे से केवल एक बार मिल पाए हैं.

कुलगाम के डिप्टी कमिश्नर के यहाँ जमा कराए दस्तावेज़ में पुलिस ने कहा है कि नदीम एक ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) है. यह दस्तावेज़ बीबीसी ने भी देखा है.

ओजीडब्ल्यू को सुरक्षाबल सशस्त्र चरमपंथी समूहों के ग़ैर-लड़ाके सदस्य के तौर पर मानते हैं. इनका मूल रूप से काम चरमपंथियो की मदद करना होता है.

पुलिस का यह भी दावा है कि नदीम ने 2014 के एक मामले में भागीदारी निभाई थी और चुनाव विरोध पोस्टर चिपकाने का काम भी किया था

इन पोस्टरों में लोगों से वोट नहीं देने के लिए कहा गया था. नदीम के वकील वाजिद हसीब का कहना है कि उनका केस अंतिम सुनवाई के लिए लिस्ट हो चुका है. नदीम कश्मीर में इस तरह का इकलौता केस नहीं हैं.

कश्मीर
Getty Images
कश्मीर

विरोध की वजह से हिरासत में लिए गए लोग

पिछले साल आर्टिकल 370 हटाने के पहले और बाद में पुलिस ने जम्मू और कश्मीर के हज़ारों लोगों को भारत-विरोधी प्रदर्शनों और क़ानून और व्यवस्था क़ायम रखने के नाम पर हिरासत में ले लिया गया था.

नेताओ और एक्टिविस्ट्स को भी हिरासत में लिया गया था. इनमें तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल थे. हिरासत में लिए गए ज़्यादातर लोगों पर पीएसए लगाया गया था.

जम्मू और कश्मीर के साथ ही लद्दाख़ भी महीनों तक लॉकडाउन में रहा और इन जगहों पर अभूतपूर्व पाबंदियाँ लगा दी गई थीं.

पांच अगस्त 2019 को सैकड़ों परिवार कश्मीर और दूसरी जगहों पर जेलों के चक्कर लगाते देखे गए, ताकि वे अपने प्रियजनों के बारे में पता लगा सकें.

आरोप है कि इन लोगों को सुरक्षाबलों ने उठा लिया था. इनमें से कई अभी भी जेलों में हैं, लेकिन पुलिस या सरकार इस बारे में कोई ठोस आँकड़ा या वजह नहीं मुहैया करा रही है.

"हम एकसाथ मर जाना चाहते हैं"

7 अगस्त 2019 को पुलिस ने दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर शोपियां के अल्लापोरा में आधी रात छापा मारा. सुरक्षाबलों को वसीम अहमद शेख़ की तलाश थी.

उनके भाई फ़याज़ अहमद शेख़ बताते हैं, "रात के 2 बजे थे, जब पुलिस अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ हमारे घर पर मेरे छोटे भाई को ढूँढते हुए आई. हमने उन्हें बताया कि वह अभी घर पर नहीं है. अगले दिन हमने उसे पुलिस के सामने पेश कर दिया. इसके बाद हमने पुलिस अधिकारियों से उसे छोड़ने के लिए गुहार लगाई, लेकिन हमारी फ़रियाद सुनी नहीं गई."

वसीम को श्रीनगर सेंट्रल जेल में ले जाया गया था. जहाँ उसे 18 दिन तक रखा गया. इसके बाद उसे फ़्लाइट से उत्तर प्रदेश के आंबेडकर नगर जेल ले जाया गया.

सात लोगों का यह ग़रीब परिवार दो कमरों के छोटे से घर में रहता है. वसीम से मुलाक़ात करने के लिए परिवार को दूसरों से पैसे मांगने पड़े. वसीम को भी पीएसए के तहत पकड़ा गया है.

कश्मीर: वो क़ानून, जो 370 हटाने के दौर में बना सरकारी गिरफ़्तारियों का औजार

वसीम की माँ बताती हैं कि वे अपने बेटे के साथ मर जाना चाहती हैं, क्योंकि वे कोरोना वायरस महामारी को लेकर बेहद चिंतित हैं.

वे बताती हैं, "वह ही हमारा सहारा था. हर बार जब मैं सोचती हूँ कि अगर वह कोरोना से मर गया या यहाँ परिवार में से कोई कोरोना से मर गया तो हम एक-दूसरे को देख भी नहीं पाएँगे. हम एक साथ मरना चाहते हैं. मैंने पिछले 11 महीने से अपने बच्चे को नहीं देखा है. मैं सरकार से अपील करती हूँ कि अगर उसे रिहा नहीं किया जाता है तो उसे कश्मीर शिफ़्ट कर दें ताकि हम उससे मिल सकें."

पिछले साल अपने बेटे के पकड़े जाने के बाद से ही वे बीमार चल रही हैं. वसीम शोपियां में एक स्थानीय केबल नेटवर्क के यहाँ केबल ऑपरेटर का काम करते थे.

पुलिस ने उन पर आरोप लगाया कि वे चरमपंथियों की मदद करते हैं और पत्थरबाज़ी में शामिल थे.

उनके भाई फ़याज़ अहमद बताते हैं कि इससे पहले भी पुलिस ने उन्हें चार दिन के लिए हिरासत में लिया था. उस समय सेना ने उनका मोबाइल ले लिया था, जिसमें उन्हें एक सक्रिय आतंकवादी की फोटो मिली थी.

नाबालिग भी पकड़े गए

इम्तियाज़ अहमद (बदला हुआ नाम) को शोपियां गाँव में उनके घर से पिछले साल 5 अगस्त को उठा लिया गया था.

वे बताते हैं, "मुझे पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया. एक रात मैं वहीं रहा. अगले दिन मुझे सेंट्रल जेल श्रीनगर ले जाया गया. मैं अगले 7-8 दिन वहीं रहा. नौंवे दिन पीएसए का दस्तावेज़ मुझे दिया गया और मुझे एक मिलिटरी जहाज़ में वाराणसी जेल भेज दिया गया."

अहमद बताते हैं, "वाराणसी जेल में हमें छह फीट की एक छोटी सी कोठरी में डाल दिया गया. मेरी रिहाई होने तक हमें अपनी सेल से बाहर आने की इजाज़त नहीं मिली. बाथरूम और टॉयलेट भी हमारी सेल में ही थे."

कश्मीर में बंदूकधारी
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कश्मीर में बंदूकधारी

वो कहते हैं कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य उनसे मुलाक़ात करने वाराणसी नहीं आ सका.

पत्थरबाज़ी के आरोप में 2016 में भी इम्तियाज़ पकड़े जा चुके थे. उस वक़्त वे 14 दिन तक कस्टडी में रहे थे.

अक्तूबर में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने इम्तियाज़ से पीएसए हटा दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता एक नाबालिग है और ऐसे में उसे हिरासत में नहीं रखा जा सकता.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की गई एक रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर जुवेनाइल जस्टिस कमेटी ने कहा था कि पुलिस ने अगस्त और सितंबर के बीच 18 साल से कम उम्र के 144 बच्चों को हिरासत में लिया था.

पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से ज़्यादातर को उसी दिन रिहा कर दिया गया और सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया था. सर्वोच्च अदालत ने इस दावे पर अपना संतोष जताया.

हिरासत में लिए गए बच्चों में 9 साल की उम्र तक के बच्चे भी शामिल थे.

कितने लोगों को हिरासत में लिया गया है?

भारत सरकार ने 20 नवंबर 2019 को संसद में बताया कि 4 अगस्त 2019 से नवंबर तक 5,161 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

हालाँकि मानवाधिकार संगठन जम्मू और कश्मीर कोएलिशिन ऑफ़ सिविल सोसाइटी (जेकेसीसीएस) ने अपनी 2019 की सालाना रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने ये स्पष्ट नहीं किया है कि 5,161 लोगों में से कितने लोग पर पीएसए लगाया गया.

मानवाधिकार कार्यकर्ता परवेज़ इमरोज़ कहते हैं कि विरोध की आवाज़ें दबाने के लिए गिरफ़्तारियाँ की गईं.

वे कहते हैं, "इस तरह की गिरफ़्तारियाँ लोगों को चुप कराने के लिए की गई थीं. पीएसए के तहत कुछ लोगों को बुक किया गया. कुछ को छोड़ दिया गया. आम लोगों में इसके ज़रिए डर पैदा किया गया. सरकार चाहती थी कोई भी अपने घरों से बाहर न निकले और आर्टिकल 370 का विरोध न करे."

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का मानना है कि पीएसए का इस्तेमाल करके कश्मीर के नेताओं को हिरासत में रखना भारत सरकार द्वारा क़ानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है. इनमें से अब ज्यादातर नेताओं को रिहा कर दिया गया है, लेकिन महबूबा मुफ़्ती की हिरासत की मियाद तीन और महीने के लिए बढा दी गई है.

ये भी पढ़ें: 370 के हटने के एक साल बाद किस हाल में हैं कश्मीरी पंडित?

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पत्रकारों पर भी पीएसए का शिकंजा

27 जुलाई 2019 को अनंतनाग के एक युवा जर्नलिस्ट और ऑनलाइन पोर्टल द कश्मीरियत के एडिटर क़मर ज़मान काज़ी उर्फ़ काज़ी शिबली को उनके कुछ ट्वीट्स के बारे में पूछताछ के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन बुलाया गया.

क़मर बताते हैं, "यह 26 जुलाई 2019 का दिन था. मैंने जम्मू और कश्मीर में अतिरिक्त सैन्य बल की आवाजाही के बारे में एक ट्वीट किया था क्योंकि यह एक बड़ा मसला था. कुछ घंटों के बाद ही क़रीब रात के 10.30 बजे मुझे स्थानीय पुलिस स्टेशन से कॉल आई और मुझे बुलाया गया. मैं उस वक़्त वहाँ नहीं गया."

वे कहते हैं, "अगले दिन मैं पुलिस स्टेशन गया. कुछ अधिकारियों ने मुझे सेना की आवाजाही से संबंधित ट्वीट के बारे में सवाल-जवाब किए. अधिकारियों ने अगले छह दिनों तक मुझसे पूछताछ की. उसके बाद मुझे श्रीनगर की सेंट्रल जेल ले जाया गया. उनका आरोप है कि जब उन्हें श्रीनगर की सेंट्रल जेल ले जाया गया तब उनके कपड़े उतरवा लिए गए."

क़मर को श्रीनगर सेंट्रल जेल में पीएसए का दस्तावेज़ सौंपा गया. अगले दिन उन्हें सेना के विमान से बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया.उनका परिवार 52 दिन बाद जाकर उनसे मुलाक़ात कर पाया.

क़मर कहते हैं, "मुझसे मिलने से पहले मेरा परिवार आगरा, कोट बिलवाल और दूसरे जेलों में भी गया ताकि ये पता लगा सके कि मैं कहाँ हूँ."

क़मर कहते है कि जेल में 52 दिन उन्होंने एक ही टीशर्ट में गुज़ारे. जब आख़िरकार उनका परिवार आया, तब तक उनके कपड़े तार तार हो चुके थे.

13 अप्रैल 2020 को कमर पर लगा पीएसए हटा लिया गया.

कश्मीर: वो क़ानून, जो 370 हटाने के दौर में बना सरकारी गिरफ़्तारियों का औजार

अनंतनाग के ज़िलाधिकारी को भेजे गए पुलिस दस्तावेज़ में कमर को एक भड़काने वाला, पत्थरबाज़ और ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में लिप्त शख़्स बताया गया है.

लेकिन कमर के लिए ये सिलसिला अभी ख़त्म नहीं हुआ था. श्रीनगर में पुलिस ने 31 जुलाई, 2020 को कमर काज़ी को फिर बुलाया और उन्हें फिर से हिरासत में लिया.

उनकी बहन ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, "हम उनसे श्रीनगर के शेर गरी पुलिस स्टेशन में मिले. उन्होंने हमें बताया कि उनसे उनकी कहानियों को लेकर पूछताछ की गई."

उनकी बहन ने बताया कि शेर गरी पुलिस स्टेशन में एक पुलिस अधिकारी ने उनसे 6 अगस्त को ज़मानत लेने को कहा है और कहा कि काज़ी को श्रीनगर के सेंट्रल जेल से छोड़ा जाएगा.

बीबीसी ने पिछले साल आर्टिकल 370 हटाए जाने के दौरान पीएसए के अधीन रखे गए लोगों का आँकड़ा हासिल करने की कोशिश की, लेकिन कश्मीर रेंज के आईजी विजय कुमार ने कहा, "मैं इतनी संवेदनशील सूचना आपके साथ साझा नहीं कर सकता हूँ." उन्होंने गिरफ़्तार नाबालिगों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी.

सरकार लगातार ये कहती रही है कि कश्मीर मे शांति बरकरार रखने के लिए लोगों को हिरासत में रखा गया है.

हालाँकि कश्मीर पर नज़र रखने वाले एक धड़े का कहना है कि सरकार इन क़ानूनी प्रवाधानो को एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल कर लोगों की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है.

कश्मीर में कई परिवारों को अब भी अपने प्रियजनों के लौटने का इंतज़ार है. ये इंतज़ार किस सूरत में ख़त्म होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

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English summary
Kashmir: the law that made the tools of government arrests in the period of 370 removal
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