कहीं कर्नाटक के जगदंबिका पाल बनकर तो नहीं रह जाएंगे येदुरप्पा?
नई दिल्लीः कर्नाटक में विधानसभा चुनावों का परिणाम सामने आने के बाद राजनीतिक हालात पल पल बदल रहे हैं, गेंद कभी इस पाले से निकलकर उस पाले में जाती है तो कभी उस पाले से छिटककर इस पाले में आ जाती है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई राज्यों में चुनाव परिणाम सामने आने के बाद इसी तरह के हालात सामने आ चुके हैं, लेकिन सबसे विकट स्थिति है एक दिन पहले मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले येदुरप्पा की। विधानसभा में सबसे ज्यादा सीटें पाकर येदुरप्पा ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा तो ठोंक दिया और इस दावे के दम पर मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली लेकिन वह खुद निश्चित नहीं हैं कि वह कितने दिनों तक इस पद पर रह पाएंगे।
जगदंबिका पाल को भारतीय राजनीति का 'वन डे वंडर' कहा जाता है
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तो उनके सामने स्थिति और विकट हो गई है, ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं येदुरप्पा कर्नाटक के 'जगदंबिका पाल' बनकर तो नहीं रह जाएंगे, वहीं जगदंबिका पाल जिन्हें भारतीय राजनीति का 'वन डे वंडर' कहा जाता है। इस मुद्दे पर आगे बात करने से पहले जगदंबिका पाल वाले किस्से के बारे में भी जान लेते हैं। साल 1996 में यूपी में हुए विधानसभा चुनावों में भी कर्नाटक जैसे हालात सामने आए थे, जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और 424 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 174 सीटें मिली थीं। हालांकि उस समय भाजपा ने अपने से कम 67 सीटों वाली बसपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और मायावती मुख्यमंत्री बनी थी।
सन 1998 में 21-22 फरवरी की रात जगदंबिका पाल बने थे मुख्यमंत्री
बाद में कल्याण सिंह भी इसी गठबंधन के तहत कल्याण सिंह ने भी मुख्यमंत्री पद के रूप में जिम्मेदारी संभाली। लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सन 1998 में 21-22 फरवरी की रात सूबे के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अचानक कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी। इससे पहले रोमेश भंडारी ने केंद्र से यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी लेकिन केंद्र ने इससे इंकार कर दिया। इससे नाराज भंडारी ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया। इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता भंडारी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ भी दिला दी। इसके विरोध में भाजपा हाईकोर्ट गई, कोर्ट ने राज्यपाल के इस कदम को अनुचित मानते हुए उनके आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि इससे पहले ही जगदंबिका पाल का शपथ ग्रहण हो चुका था लेकिन कोर्ट ने उसे भी रद्द कर दिया।
शनिवार को होना है येदुरप्पा की किस्मत का फैसला
हाइकोर्ट के आदेश के विरोध में पाल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां दोनों पक्षों को समान मानते हुए अपनी बात रखने का मौका दिया गया। उस समय कोर्ट ने आदेश दिया कि बहुमत का फैसला राज्यपाल के घर नहीं विधानसभा मे होना चाहिए। कोर्ट ने सदन के भीतर गुप्त मतदान से बहुमत का फैसला कराने के आदेश दिए। जिसमें कल्याण सिंह अपना बहुमत साबित करने में सफल रहे। इसके साथ ही जगदंबिका पाल एक रात के मुख्यमंत्री बन कर रह गए। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में ये इकलौता उदाहरण है, हालांकि पाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक नजीर भी बन गया। जिसमें बहुमत पर विवाद की स्थिति में गुप्त मतदान से भी इसका फैसला कराया जा सकता है। अब कुछ वैसे ही हालात कर्नाटक में भी बनते नजर आ रहे हैं अगर शनिवार को येदियुरप्पा विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में असफल रहे तो वह भी कर्नाटक के जगदंबिका पाल बन कर रह सकते हैं। वैसे भी येदुरप्पा इस मामले में बदकिस्मत ही रहे हैं, पूर्व में वह एक हफ्ते तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर पद छोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं। दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसकर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। अब देखना रोचक होगा कि वह अपना पुराना इतिहास बदल पाते हैं या नहीं?
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