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नेताजी और गुमनामी बाबा पर बड़ा दावा, जस्टिस सहाय कमीशन ने ये कहा

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नई दिल्ली- गुमनामी बाबा के रहस्य का खुलासा करने के लिए बने एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट यूपी विधानसभा में पेश कर दी गई है। अपनी 130 पेजों की रिपोर्ट में आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि गुमनामी बाबा अत्यधिक प्रतिभाशाली शख्सियत थे, जो जिन्हें अपना जीवन गुमनाम ही बनाए रखने की इच्छा थी और उनके रहस्य पर से पर्दा उठता उससे पहले अपनी मौत को गले लगाना पसंद कर सकते थे। आयोग ने उनके अंतिम संस्कार के तरीके पर सवाल भी उठाए हैं और कहा है कि उनके जैसे व्यक्ति के लिए ज्यादा सम्मान के साथ विदाई देने की आवश्यकता थी। लेकिन, आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि गुमनामी बाबा नेताजी नहीं, उनके अनुयायी थे।

नेताजी नहीं, उनके अनुयायी थे गुमनामी बाबा

नेताजी नहीं, उनके अनुयायी थे गुमनामी बाबा

जस्टिस (रिटायर्ड) विष्णु सहाय कमीशन इस नतीजे पर पहुंचा है कि रहस्यमय गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे। दरअसल, बहुत लोगों को हमेशा से यह विश्वास था कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे। सहाय आयोग के मुताबिक गुमनामी बाबा नेताजी नहीं, बल्कि उनके अनुयायी थे, लेकिन उनकी आवाज बोस से मिलती-जुलती थी। सहाय की जांच रिपोर्ट जो गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की गई है, उसमें कहा गया है कि - 'राम भवन (फैजाबाद, अब अयोध्या), जहां गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी अपने निधन तक रहते थे, वहां से जो चीजें मिली हैं, उससे ये निर्धारित नहीं किया जा सकता कि वही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे।' बता दें कि गुमनामी बाबा का निधन 16 सितंबर, 1985 को हुआ था और 18 सितंबर, 1985 को अयोध्या के गुप्तार घाट पर उनका अंतिम संस्कार बेहद गुपचुप तरीके से कर दिया गया था।

नेताजी से मिलती थी गुमनामी बाबा की आवाज

नेताजी से मिलती थी गुमनामी बाबा की आवाज

सहाय कमीशन अपनी रिपोर्ट में 11 बिंदुओं के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि गुमनामी बाबा नेताजी के अनुयायी थे- 'वे (गुमनामी बाबा) नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुयायी थे। लेकिन, जब लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि वही नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं तो उन्होंने अपना आवास बदल लिया।' आयोग ने कहा है कि संगीत, सिगार और भोजन के शौकीन होने और नेताजी की तरह की उनकी आवाज के कारण लोगों को उनमें उनके होने का आभास मिलता था। आयोग ने पाया है कि वह बंगाली थे, बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी में उनकी अच्छी पकड़ थी। यही नहीं उनको युद्ध और समकालीन राजनीति की भी गहराई से समझ थी। हालांकि, आयोग ने पाया है कि उनमें भारत के शासन-व्यवस्था में दिलचस्पी नहीं दिखती थी।

कैसे नतीजे पर पहुंचा सहाय आयोग?

कैसे नतीजे पर पहुंचा सहाय आयोग?

गुमनामी बाबा ही नेताजी थे या नहीं इसकी पड़ताल के लिए कमीशन ऑफ इनक्वायरी ऐक्ट,1952 के तहत एक सदस्यीय जस्टिस सहाय आयोग 28 जून,2016 का गठन किया गया था। आयोगने 19 सितंबर, 2017 को ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इस मामले की जांच के लिए आयोग गठित करने का आदेश एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 31 जनवरी, 2013 को ही दिया था। जस्टिस सहाय के मुताबिक पड़ताल में 16 अक्टूबर, 1980 को कोलकाता से बुलबुल के नाम से बंगाली में लिखी एक चिट्ठी मिली थी, जिसमें लिखा हुआ था- 'आप मेरे यहां कब आएंगे। हमें बहुत खुशी होगी, यदि आप नेताजी की जयंती के दिन आएंगे।' यानि इससे साफ हो गया कि गुमनामी बाबा नेताजी नहीं थे।

आयोग ने गुमनामी बाबा के अंतिम संस्कार के तरीके पर सवाल उठाए

आयोग ने गुमनामी बाबा के अंतिम संस्कार के तरीके पर सवाल उठाए

आयोग ने यह भी पाया है कि गुमनामी बाबा की इच्छाशक्ति और आत्म अनुशासन से ही उन्हें पर्दे के पीछे रहने की ताकत मिलती थी। आयोग ने पाया है कि वे अपना काफी समय पूजा-पाठ और मेडिटेशन में देते थे, जिसके चलते उनसे जो लोग पर्दे के पीछे मिलते थे, वे उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित होते थे। कमीशन ने कहा है कि वे बहुत ही प्रतिभावान व्यक्ति थे, जो अपनी गुमनामी का खुलासा होने की स्थिति में मौत को गले लगाना ज्यादा पसंद करते। आयोग ने संविधान की धारा-21 का हवाला देकर कहा है कि अपनी इच्छा के मुताबिक गुमनामी की जिंदगी जीना उनका अधिकार था। हालांकि, आयोग ने उनके अंतिम संस्कार के तरीके पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। आयोग के मुताबिक- '....लेकिन यह शर्मनाक है कि उनका अंतिम संस्कार इस तरह से किया गया......सिर्फ 13 लोग ही उसमें शामिल हो सके। वे इससे कहीं ज्यादा सम्मान के साथ विदा लेने के हकदार थे।'

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English summary
Justice Vishnu Sahai Commission has said that Gumnami Baba was not Netaji Subhash Chandra Bose, but his follower
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