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झारखंड: इस बार आदिवासियों ने 'नोटा' क्यों दबाया

"जब सरकार हम लोग को नक्सली बोलता है. उग्रवादी बोलता है. देशद्रोह के मुकदमा में फंसाता है, तो हम लोग से वोट का उम्मीद काहे कर रहा है. इससे अच्छा तो वोट नहीं देंगे. जब उग्रवादी बोलिए दिया, तो का चीज़ का वोट देंगे. वोट देने में भी डर लगता है. नहीं देने में भी डर लगता है. नहीं देंगे वोट, तो कहीं राशन बंद कर देगा." सागर मुंडा यह कहते हुए कभी उत्तेजित होते हैं, तो कभी भावुक.

By रवि प्रकाश
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झारखंड के आदिवासी
Getty Images
झारखंड के आदिवासी

"जब सरकार हम लोग को नक्सली बोलता है. उग्रवादी बोलता है. देशद्रोह के मुकदमा में फंसाता है, तो हम लोग से वोट का उम्मीद काहे कर रहा है. इससे अच्छा तो वोट नहीं देंगे. जब उग्रवादी बोलिए दिया, तो का चीज़ का वोट देंगे. वोट देने में भी डर लगता है. नहीं देने में भी डर लगता है. नहीं देंगे वोट, तो कहीं राशन बंद कर देगा."

सागर मुंडा यह कहते हुए कभी उत्तेजित होते हैं, तो कभी भावुक.

वो कहते हैं, "क्या-क्या बंद कर देगा. इसलिए कुछ लोग नोटा दबा दिया. बाक़ी यहां का 70-80 हज़ार आदिवासी लोग वोट ही नहीं दिया. क्योंकि, चुनाव से हम लोग का हमेशा के लिए भरोसा उठ गया है. यह सरकार आदिवासियों के लिए काम नहीं करती है."

उनके साथ मौजूद लोग नारा लगाते हैं- न संसद न विधानसभा, सबसे ऊंची ग्रामसभा. वे बतात हैं कि खूंटी संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाला इलाक़ा है. यहां आदिवासियों के स्वशासन को संवैधानिक मान्यता मिली हुई है. यहां 'सेलेक्शन' होता है 'इलेक्शन' नहीं. फिर हमलोग क्यों वोट दें.

सागर मुंडा का गांव झारखंड के खूंटी ज़िले की बारुडीह पंचायत में है.

यह वह इलाका है, जहां पिछले साल आदिवासियों के पत्थलगड़ी अभियान के बाद पुलिस ने सैकड़ों लोगों के खिलाफ देशद्रोह की रिपोर्ट दर्ज करायी थी. इनमें से कई लोग अभी तक जेल में हैं.

झारखंड सरकार ने पत्थलगड़ी के खिलाफ़ विज्ञापन छपवाए और स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कई सार्वजनिक मंचों से इसे देशद्रोह कहा. जबकि आदिवासी इसे अपनी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा बताते हैं. इस कारण अधिकतर आदिवासियों में आक्रोश है. खूंटी थाना परिसर में आज भी ऐसा एक होर्डिंग लगा हुआ है लेकिन उस पर यह कहीं नहीं लिखा है कि उसे किसने लगवाया.

खूंटी थाना परिसर में आज भी ऐसा एक होर्डिंग लगा हुआ है लेकिन उस पर यह कहीं नहीं लिखा है कि उसे किसने लगवाया.
RAVI PRAKASH
खूंटी थाना परिसर में आज भी ऐसा एक होर्डिंग लगा हुआ है लेकिन उस पर यह कहीं नहीं लिखा है कि उसे किसने लगवाया.

अर्जुन मुंडा की जीत से अधिक 'नोटा'

खूंटी लोकसभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है. यहां के अधिकतर वोटर भी आदिवासी हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा यहां से भाजपा के प्रत्याशी थे. उन्होंने सिर्फ 1445 वोटों के अंतर से अपना चुनाव जीता है. जबकि, यहां के 21,245 मतदाताओं ने 'नोटा' (नन ऑफ़ द एबव) बटन दबाया.

मतलब उन्हें किसी भी प्रत्याशी पर भरोसा नहीं था. नोटा सपोर्ट करने वाले मतदाताओं की संख्या अर्जुन मुंडा की जीत के अंतर से कई गुणा अधिक है. इसी तरह लोहरदगा (एसटी रिजर्व सीट) से चुनाव लड़े नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार के मंत्री सुदर्शन भगत ने 10,363 मतों के अंतर से अपना चुनाव जीता.

जबकि वहाँ नोटा दबाने वाले वोटरों की संख्या उनकी जीत के अंतर से अधिक रही. वहां 10,783 लोगों ने नोटा चुना.

चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक झारखंड में इस साल 1,85,397 मतदाताओं ने किसी प्रत्याशी को चुनने के बजाय नोटा दबाना ज्यादा मुनासिब समझा. राज्य की सभी 14 सीटों पर चुनाव लड़े कुल 229 उम्मीदवारों में से 159 को उनके क्षेत्र में नोटा से कम वोट मिले.

आँकड़ों के मुताबिक नोटा दबाने का चलन आदिवासी क्षेत्रो में ज़्यादा रहा. सिंहभूम, दुमका, राजमहल जैसे एसटी रिजर्व क्षेत्रों के अलावा कोडरमा, गिरिडीह और गोड्डा क्षेत्र के जनजातीय इलाके में नोटा चुनने वाले मतदाताओं की संख्या अधिक रही.

कोडरमा में सबसे अधिक 31,164 वोटरों ने नोटा चुना. सिंहभूम में 24261, गिरिडीह में 19669, गोड्डा में 18650, दुमका में 14365, राजमहल में 12898 लोगों ने नोटा चुना.

पत्थलगड़ी आंदोलन
RAVI PRAKASH/BBC
पत्थलगड़ी आंदोलन

आखिर क्यों नाराज़ हैं आदिवासी

आदिवासी मामलों के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार पंकज कहते है कि यह आदिवासियों के विरोध का अपना तरीका है. सरकार को यह समझना पड़ेगा कि लाखों आदिवासी उनकी व्यवस्था और नीतियों के खिलाफ खड़े हैं.

इस कारण वोट नहीं दे रहे. इनकी मानसिकता दूसरे किस्म की है. वे खामोश रहकर भी अपना विरोध प्रकट करते हैं. लेकिन उनकी आवाज़ सालों से अनसुनी की जाती रही है.

अश्विनी पंकज ने बीबीसी से कहा, "आदिवासियों का इतिहास बताता है कि सिंहभूम और खूंटी इलाके के हो और मुंडा आदिवासी ब्रिटिश शासन के वक्त से अपने स्वशासन वाली व्यवस्था के पक्ष में संघर्षरत रहे हैं. हाल के दिनों में हुआ पत्थलगड़ी आंदोलन भी उसी कड़ी में था."

"वे अपनी ग्रामसभा के अधिकार की आवाज बुलंद कर रहे थे. उन्होंने इसके जरिये सरकार और उनकी व्यवस्था में अविश्वास प्रकट किया. अब वोट बहिष्कार या नोटा का इस्तेमाल उसी अविश्वास की अगली कड़ी है."

वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल आदिवासियों की उपेक्षा के आरोपों से इनकार करते हैं. उन्होंने दावा किया कि भाजपा सबके साथ सबके विकास की बात करती है और उनकी सरकार ने आदिवासियों के हितों की रक्षा की है.

उन्होंने कहा, "इसके बावजूद लोग नोटा दबा रहे हैं, तो यह हमारे लिए चिंता का विषय है."

झारखंड का आदिवासी इलाका
RAVI PRAKASH/BBC
झारखंड का आदिवासी इलाका

भाजपा की हार का मार्जिन अधिक

यहां यह उल्लेख मुनासिब है कि आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों की हार का अंतर उनकी जीत के अंतर से अधिक है. दुमका में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के अध्यक्ष शिबू सोरेन को सिर्फ 5 फीसदी वोटों के अंतर से हराया.

खूंटी में यह मार्जिन 0.17 प्रतिशत, तो लोहरदगा में 1.27 प्रतिशत रहा. जबकि आदिवासी बहुल सिंहभूम (सुरक्षित) सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने भाजपा प्रत्याशी और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा को 10 प्रतिशत मतों के अंतर से शिकस्त दी.

राजमहल (सुरक्षित) सीट पर भी जेएमएम के विजय हांसदा ने भाजपा के हेमलाल मुर्मू को करीब 10 फीसदी वोटों के अंतर से हराया. वहीं, सामान्य सीटों कोडरमा, हजारीबाग, धनबाद आदि में भाजपा की जीत का अंतर अधिक रहा.

बिरसा मुंडा
RAVI PRAKASH/BBC
बिरसा मुंडा

क्यों चाहिए स्वशासन

खूंटी जिले के डाड़ागामा गांव के बिरसा मुंडा ने बीबीसी से कहा, "इन जंगलों को रहने योग्य हमारे पूर्वजों ने बनाया है, किसी सरकार ने नहीं. इसलिए यहां के जल, जंगल, जमीन पर हमारा हक है. जमीन के अंदर का खनिज हो, या फिर ऊपर के जंगल, ये सब आदिवासियों की संपत्ति है."

उन्होंने यह भी कहा, "पिछले 70 साल में सरकार से हमें कोई लाभ नहीं मिला. संविधान हमें स्वशासन की इजाजत देता है, लेकिन यह सरकार उसे नहीं मान रही है. इसलिए हमलोगों ने विरोध में नोटा दबा दिया. इसके बावजूद हमारी बात कोई नहीं करता."

"मीडिया के लोग भी यहां आकर कुछ बात करते हैं और छाप कुछ और देते हैं. अब आप ही जाकर कुछ और छाप दीजिएगा, तो हम लोग क्या कर सकेंगे. लेकिन, यह सब ग़लत हो रहा है. आदिवासी इसका विरोध करते रहेंगे."

सोमा मुंडा
RAVI PRAKASH/BBC
सोमा मुंडा

वहीं, इसी गांव के सोमा मुंडा का मानना है कि भाजपा की सरकार के दौरान आदिवासियों के ख़िलाफ़ कई साज़िश की गई. वे मानते हैं कि आदिवासी राज्य में गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बनाना सबसे बड़ी साज़िश है.

उनका मानना है कि सीएनटी एक्ट और भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की कोशिश, वनाधिकार कानून को खत्म कर आदिवासियों को जंगलों से बेदखल करने की कोशिश, स्थानीय नीति की गलत व्याख्या, धर्मांतरण बिल आदि लाकर भाजपा सरकार ने उनका हक मारने की कोशिश की है.

उन्होंने कहा, "आप किसी को वोट दीजिए, जीतेगा बीजेपी वाला. तो हमलोग क्यों वोट देने जाएं. यहां सही चुनाव होता तो अर्जुन मुंडा हार जाते. पहले सर्वर डाउन कहकर काउंटिंग रोक दिया. बाद में उनको 1445 वोट से जीता हुआ दिखा दिया."

"इसी तरह विधायक के चुनाव में भी यहां से जेएमएम के पूर्ति जी चुनाव जीते. घोषणा भी कर दिया लेकिन बाद में भाजपा प्रत्याशी को जिता दिया गया. इसलिए भी हमलोग वोट और चुनाव के खिलाफ हैं."

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English summary
Jharkhand: Why this time the tribals pressurized 'Nota'?
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