मरे हुए बच्चों को जिंदा करने के लिये मंतर पढ़ रहे 24 तांत्रिक
माजरा यह है कि घटशिला निवासी सुखपाल हांसदा के दो बेटों दासमत तथा सनत को शनिवार सुबह एक चित्ती सांप ने डस लिया। इसके बाद दोनों के शरीर में पूरी तरह जहर फैल गया। जब दोनों को बेहोशी छाने लगी तो उन्हें अनुमंडल अस्पताल लाया गया। तीन घंटे बाद पास के अस्पताल में दोनों की मौत हो गई। जहां चिकित्सक ने उनको मृत घोषित कर दिया। मगर मां-बाप यह मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं कि उनके दोनों बेटे मर चुके हैं। इसके लिए उन्होंने तंत्र-मंत्र का सहारा लिया। दोनों को तीन घंटे तक झाड-फ़ूंक के चक्कर में गांव में ही रखा गया।
पूरी रात चला तांत्रिक पूजन
अब दो मासूमों की मौत के 36 घंटे बाद भी तीन राज्यों के करीब दो दर्जन से ज्यादा ओझा तंत्र-मंत्र से दोनों मासूमों को जिन्दा करने का ढोंग कर रहे हैं। ओझाओं ने पीडि़त परिजनों को बताया की झाड़फूंक रविवार की पूरी रात चलेगी। उसके बाद दोनों मासूमों को वापस गांव ले जाकर झाड़ फूंक शुरू कर दिया गया। शनिवार की सुबह करीब 10 बजे से यह ढोंग शुरू हुआ जो जारी है। अलग-अलग ओझा अपने-अपने तरीके से झाड-फ़ूंक कर रहे हैं। सुखलाल उनके फरमान को पूरा करने में बेदम हो गया है।
वहीं दूसरी ओर शवों से अब दुर्गंध आने लगी है। पीडि़त परिवार के घर में घुसना तक मुश्किल हो गया है। ओझा भी मुंह बांधकर झाड-फ़ूंक कर रहे हैं। मासूमों का शव अकड़ कर फूल गया है। मुंह से खून रिस रहा है। शवों की फजीहत देखकर ग्रामीण अब उन्हें दफनाने की बात कह रहे हैंए लेकिन ओझा मानने को तैयार नहीं हैं। वहीं बच्चों का पिता इसी आस में है शायद ओझाओं की बात सच हो जाए और उनके बच्चे जी उठें। पुलिस ने अबतक मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है।
डीएसपी घाटशिला आरिफ इकराम ने ऐसे किसी भी मामले की जानकारी होने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि दो मृत बच्चों को जिन्दा करने के नाम पर ओझाओं द्वारा झाड-फ़ूंक संबंधित किसी तरह की कोई शिकायत पुलिस के पास नहीं है। इसके बाद भी सोमवार को इस मामले की जांच कराएंगे। शव की फजीहत नहीं होने दी जाएगी। जांच कर ओझाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
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यह
घटना
बताती
है
कि
आज
भी
अंधविश्वास
हमारे
समाज
की
जड़ों
में
फैला
हुआ
है।
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बेटा-पाने
की
चाहत
में
भी
न
जाने
कितने
मासूमों
की
बलि
तांत्रिकों
के
हाथों
चढ़
जाती
है।
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टीवी-रेडियो,
अखबार
के
माध्यम
से
भी
अंधविश्वास
को
दूर
करने
की
कितनी
पहल
जारी
हैं।
मगर
लोगों
का
अंधविश्वास
पर
अंधा
विश्वास
है।
-अंधविश्वास
से
ही
तंत्र-मंत्र
करने
वालों
की
दुकाने
चल
रही
हैं।
जिनका
बंद
होना
आवश्यक
है।
यह
तभी
संभव
है
जब
लोग
खुद
जागरुक
होंगे।