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ये होता... तो शायद बनारस हादसा न हुआ होता..

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर का हिस्सा गिरने से 18 लोगों की मौत हो गई.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक हादसा शाम को करीब साढ़े पाँच बजे हुआ, उस समय निर्माणाधीन पुल पर मजदूर काम कर रहे थे.

कैंट लहरतारा-जीटी रोड वाराणसी की व्यस्ततम सड़कों में से एक है और इस पर अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ पुल का 

By BBC News हिन्दी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर का हिस्सा गिरने से 18 लोगों की मौत हो गई.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक हादसा शाम को करीब साढ़े पाँच बजे हुआ, उस समय निर्माणाधीन पुल पर मजदूर काम कर रहे थे.

कैंट लहरतारा-जीटी रोड वाराणसी की व्यस्ततम सड़कों में से एक है और इस पर अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ पुल का गार्डर उस समय गिरा जिस समय पुल के नीचे ट्रैफिक जाम था. गिरते ही इस गार्डर की चपेट में कई कारें और दुपहिया वाहन आ गए.

ऐसे में सवाल ये कि इस तरह के निर्माण कार्य जब चल रहा हो तो क्या आस-पास के ट्रैफिक की आवाजाही को रोकना नहीं चाहिए था?

ये सवाल इसलिए भी पूछा जा रहा है क्योंकि पुल हादसे के बाद वाराणसी के सिगरा थाने में गैरइरातन हत्या, कार्य में लापरवाही बरतने समेत कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है.

फ्लाइओवर निर्माण के नियम

दिल्ली के पीडब्लूडी विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव और इंजिनियर इन चीफ सर्वज्ञ श्रीवास्तव के मुताबिक ऐसे पुलों के निर्माण के वक्त कई नियम हैं जिनका पालन करना जरूरी है. उनका पालन न करने से या फिर लापरहवाही बरतने की वजह से बड़ी दुर्घटनाएं हो सकती है.

नियमों के मुताबिक

ऐसे किसी पुल के निर्माण के समय निमार्णाधीन साइट पर काम जब चल रहा हो तो ट्रैफिक की आवाजाही पर रोक होनी चाहिए.

किसी कारण से अगर ऐसा नहीं हो सकता तो ऐसे काम सिर्फ़ रात में करने की इजाजत दी जाती है.

और जब ऊपर के दोनों नियम नहीं पालन किए जा सकते हों तो ऐसी सूरत में कुछ समय के लिए जिस हिस्से में काम चल रहा है उस हिस्से से कुछ दूरी पर ट्रैफिक को डाईवर्ट कर देना चाहिए.

लेकिन वाराणसी हादसे में ऐसा नहीं किया गया.

सर्वज्ञ श्रीवास्तव के मुताबिक वाराणसी हादसे में पहली नज़र में देख कर सबसे बड़ी चूक यही नज़र आती है.

उनके मुताबिक हादसे की जगह से ली गई शुरूआती तस्वीरों में साफ पता चल रहा है कि ऊपर फ्लाइओवर का काम चल रहा था और नीचे गाड़ियों की आवाजाही भी रोकी नहीं गई थी.

सर्वज्ञ श्रीवास्तव के मुताबिक आम तौर पर इसकी इजाजत नहीं दी जाती है.

फ्लाइओवर निर्माण में लगी कंपनी ऐसे काम करने के लिए पहले, कब क्या काम करना है- इसकी लिखित जानकारी स्थानीय ट्रैफिक पुलिस को देती है.

जिसके बाद ट्रैफिक पुलिस वैकल्पिक रास्ते तलाशने के बाद फ्लाइओवर निर्माण में लगी कंपनी को निर्माण कार्य करने का वक्त तय कर इज़ाजत देती है.

वाराणसी हादसे में आखिर क्या हुआ?

क्या पुल निर्माण करने वाली कंपनी ब्रिज कंस्ट्रकशन लिमिटेड ने ट्रैफिक पुलिस से ट्रैफिक रोकने की इजाजत मांगी थी ? या फिर पुल निर्माण के लिए वो वक्त तय ही नहीं था? ये सब अब जांच का विषय है.

दूसरी बड़ी लापवाही जो इस हादसे में देखने को मिली है वो है, निर्माण कार्य के समय हादसे के बाद का 'प्लान बी' न तैयार करना.

सर्वज्ञ श्रीवास्तव के मुताबिक जब ऊंचाई पर पुल का कोई वज़नदार हिस्सा ले जाया जाता है तो बाहर की तरफ के दोनों हिस्सों को स्टील के तारों से बांधा जाता है.

ऐसा इसलिए ताकि किसी भी हादसे की सूरत में वजनदार हिस्सा सीधे नीचे न गिरे और हवा में बीच में ही स्टील के तारों के जरिए लटका रहे और नुकसान कम हो. इसे 'प्लान बी' कहते हैं.

वाराणसी में होने वाला पुल निर्माण 20-22 फुट की ऊंचाई पर हो रहा था. आम तौर पर इतनी ऊंचाई पर जब पुल बनाया जाता है तो किसी इंजीनियर की निगरानी में काम होना चाहिए और हैंगिग ऑप्शन को 'प्लान बी' के तौर पर तैय़ार रखना चाहिए था.

लेकिन जिस तरह से निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गाड़ियों पर आ कर गिरा उसके ये साफ है कि हैंगिग ऑप्शन के बारे में निर्माण कार्य के दौरान नहीं सोचा गया था.

वाराणसी में रहने वाले सीनियर इंजीनियर आर सी जैन भी सर्वज्ञ श्रीवास्तव की बात से इत्तेफाक रखते हैं.

वाराणसी
Getty Images
वाराणसी

उनके मुताबिक जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त फ्लाइओवर पर लगे दो वजनदार हिस्सों की लेवलिंग का काम चल रहा था. इस काम के लिए हाड्रॉलिक जैक का इस्तेमाल किया जा रहा था. बहुत मुमकिन है कि निर्माण कार्य के वक्त हाड्रॉलिक जैक में तकीनीका खराबी आ गई हो और हिस्सा नीचे गिर गया हो.

आर सी जैन वाराणसी में इससे पहले इलाके के जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिनियूअल मिशन की परियोजना से भी जुड़े रहें है.

उनके मुताबिक निर्माण स्थल पर काम करने वाले मज़दूरों को न तो इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों की पूरी जानकारी थी और न ही उपकरण के इस्तेमाल के पहले उनका ठीक से जांच हुआ था.

उनके मुताबिक पुल निर्माण में स्किल्ड लेबर और उपकरण की टेस्टिंग का भी उतना ही महत्व होता है, जितना पुल निर्माण में इस्तेमाल में आने वाले सीमेंट, गिट्टी और बालू का.

वाराणसी हादसे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दुर्घटना स्थल का दौरा किया और दुर्घटना की जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है जिसे 48 घंटे में रिपोर्ट देनी है.

यानी चूक कहां हुई इसके लिए दो दिन का इंतजार करना पड़ेगा.

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English summary
It would have been So maybe the Benaras incident would not have happened
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