क्या भाजपाई होने के कारण मारे गए त्रिलोचन महतो?
"मेरा बेटा मंगलवार शाम कुछ कागज़ की फ़ोटोकॉपी कराने की बात कह कर साइकिल से बलरामपुर बाज़ार के लिए घर से निकला था. बाद में उसने फ़ोन पर बताया था कि कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने उसे घेर लिया है और हत्या की धमकी दे रहे हैं.''
''लेकिन पुलिस में शिकायत करने के बावजूद रात को उसकी कोई ख़बर नहीं मिली. सुबह घर से एक
"मेरा बेटा मंगलवार शाम कुछ कागज़ की फ़ोटोकॉपी कराने की बात कह कर साइकिल से बलरामपुर बाज़ार के लिए घर से निकला था. बाद में उसने फ़ोन पर बताया था कि कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने उसे घेर लिया है और हत्या की धमकी दे रहे हैं.''
''लेकिन पुलिस में शिकायत करने के बावजूद रात को उसकी कोई ख़बर नहीं मिली. सुबह घर से एक किलोमीटर दूर स्थित जंगल में एक पेड़ से लटका उसका शव बरामद हुआ."
झारखंड से लगे पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के सुपुरडी गांव के हरिराम महतो यह कहने के बाद चुप होकर आंसू पोंछने लगते हैं. वो बताते हैं कि उनके बेटे को भाजपा के लिए काम करने की क़ीमत जान देकर चुकानी पड़ी.
उनका आरोप है कि इस हत्या में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हाथ है.
पंचायत चुनावों के पहले हिंसा और आतंक के बीच 20 साल के युवक की हत्या से इलाक़े में भारी तनाव है.
शव बरामद करने गई पुलिस टीम को भी मौक़े पर गांव वालों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा. भाजपा की अपील पर इस हत्या के विरोध में बृहस्पतिवार को बलरामपुर में बंद भी रखा गया.
बलरामपुर कॉलेज में बीए ऑनर्स तीसरे साल के इतिहास के छात्र त्रिलोचन महतो का पेड़ से लटका शव बुधवार सुबह बरामद किया गया था.
उसकी टी-शर्ट पर और मौक़े पर एक नोट भी मिला था.
जिस पर लिखा था, ''18 साल की उम्र में भाजपा की लिए काम करने का नतीजा यही होता है. आज तेरी जान गई.''
त्रिलोचन के पिता हरिराम भी इलाक़े के भाजपा नेता हैं. वह मानते हैं कि त्रिलोचन ने पंचायत चुनावों में पार्टी के लिए काम किया था.
लेकिन उसकी हत्या कर इसे आत्महत्या के तौर पर दिखाने के लिए शव को पेड़ पर टांग दिया गया. वह दावे के साथ कहते हैं कि 'मेरा बेटा आत्महत्या कर ही नहीं सकता. कहीं दूसरी जगह हत्या के बाद उसका शव पेड़ से लटका दिया गया.'
पुरुलिया के पुलिस अधीक्षक जय विश्वास भी हरिराम की बात की पुष्टि करते हैं.
वो कहते हैं कि शव की हालत देखकर यही लगता है कि कहीं और हत्या करने के बाद उसे यहां रस्सी के सहारे पेड़ पर लटका दिया गया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद ही पक्के तौर पर कुछ कहा जा सकता है.'
घरवालों का दावा है कि चार भाइयों में सबसे छोटा त्रिलोचन राजनीति में सक्रिय नहीं था. लेकिन पिता के भाजपा नेता की वजह से पूरा परिवार इसी पार्टी का समर्थक था.
त्रिलोचन के पिता का आरोप है कि यह हत्या राजनीतिक बदले की भावना के तहत की गई है. त्रिलोचन की जेब में रखे मोबाइल, पर्स और तमाम कागज़ात के सही-सलामत होने की वजह से हरिराम के आरोपों को बल भी मिलता है.
पुलिस इस पहलू की भी जांच कर रही है कि कहीं त्रिलोचन के पिता से बदला लेने के लिए ही तो उसकी हत्या नहीं की गई.
त्रिलोचन के शव के पास से जैसे नोट मिले हैं वैसा तो एक दशक पहले इलाक़े में सक्रिय माओवादी ही छोड़ते थे. पुलिस का अनुमान है कि शायद जांच को गुमराह करने के लिए ही माओवादियों की तर्ज़ पर ऐसे नोट छोड़े गए हैं.
पुरुलिया के भाजपा अध्यक्ष विद्यासागर चक्रवर्ती कहते हैं कि 'बलरामपुर में पंचायत चुनावों में बुरी तरह मुंह की खाने के बाद तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी ने पुरुलिया को विरोधी-शून्य करने का दावा किया था. वह लोग विरोधियों की हत्या कर ही इस इलाके पर कब्जा करना चाहते हैं.'
वो साफ़ कहते हैं कि त्रिलोचन की हत्या तृणमूल कांग्रेस समर्थकों ने की है.
बीते महीने हुए पंचायत चुनावों में भाजपा ने बलरामपुर की सभी सात ग्राम पंचायत सीटें जीत ली थीं.
हालांकि बलरामपुर के तृणमूल कांग्रेस विधायक और पश्चिमांचल विकास मंत्री शांतिराम महतो कहते हैं कि त्रिलोचन की हत्या से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है.
"यहां चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन ज़रूर अच्छा रहा था, लेकिन जीतने के बाद पार्टी में गुटबाजी तेज़ हो गई है. यह हत्या अंदरूनी गुटबाजी का नतीजा हो सकती है."
राज्य में बीते महीने हुए पंचायत चुनावों की नामांकन प्रक्रिया के साथ ही शुरू होने वाली हिंसा में दो दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों घायल हो गए थे.
हिंसा और आतंक की स्थिति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने 34.2 फीसदी सीटें निर्विरोध जीती थीं. भाजपा, कांग्रेस और वाममोर्चा का आरोप था कि तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन पत्र ही दाखिल नहीं करने दिया था या फिर डरा-धमका कर नाम वापस लेने पर मजबूर कर दिया था.
इन चुनावों में भाजपा नंबर दो के तौर पर उभरी है. हालांकि पहले नंबर पर रही तृणमूल से उसका काफ़ी फ़ासला है.
लेकिन चुनावी नतीजों के बाद भी राज्य के विभिन्न हिस्सों से भाजपाइयों को धमकाने के आरोप सामने आ रहे हैं. सैकड़ों लोगों ने पड़ोसी झारखंड में शरण ले रखी है.
तृणमूल की ओर से उनको कथित तौर पर भाजपा छोड़ कर पार्टी (तृणमूल) में शामिल होने की धमकियां मिल रही हैं. लेकिन चुनावी नतीजों के बाद राज्य में हत्या का यह पहला मामला है.
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा आरोप लगाते हैं, ''तृणमूल कांग्रेस पंचायतों पर कब्जे के लिए साम-दाम-दंड-भेद का सहारा ले रही है. इसके तहत पूरे राज्य में पार्टी की विजयी उम्मीदवारों और उनके परिजनों को धमकियां दी जा रही हैं'.
कांग्रेस और वाममोर्चा ने भी ऐसे ही आरोप लगाए हैं. लेकिन तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी का दावा है कि पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के बाद विपक्ष उसे बदनाम करने के लिए तमाम मनगढ़ंत आरोप लगा रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं कि 'अगले साल होने वाले लोकसभा और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राज्य में राजनीतिक संघर्ष और तेज होने का अंदेशा है.'
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