क्या बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव ज्यादा लोकतांत्रिक होता है?
कांग्रेस और बीजेपी दोनों के संविधान में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए प्रक्रिया निर्धारित है.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के अगले अध्यक्ष पद के लिए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज अपना नामांकन दाखिल कर दिया है.
पिछले दिनों महाराष्ट्र कांग्रेस के सचिव शहज़ाद पूनावाला ने पार्टी के शीर्ष पद की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा था कि एक व्यक्ति के 'चयन' के लिए 'चुनाव का दिखावा' किया जा रहा है.
नेहरू-गांधी परिवार के राहुल गांधी पांचवीं पीढ़ी के सदस्य और छठे शख़्स हैं, जो अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं.
सोनिया गांधी 1998 से कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं जबकि इस दौरान बीजेपी में आठ अध्यक्ष बन चुके हैं. कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, के जना कृष्णमूर्ति, वेंकेय्या नायडू, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और अमित शाह.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी और कांग्रेस में से किस पार्टी में अध्यक्ष पद का चुनाव ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से होता है?
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कैसे होता है कांग्रेस में अध्यक्ष का चुनाव
कांग्रेस के संविधान के मुताबिक अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस में चुनाव होता है न कि सेलेक्शन, जैसा आरोप कांग्रेस के सदस्य शहजाद पूनावाला लगा रहे थे.
कांग्रेस संविधान के मुताबिक अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सबसे पहले एक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त होता है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक बन सकते हैं.
ऐसे ही कोई भी दस सदस्य अध्यक्ष पद के लिए किसी उम्मीदवार का नाम आगे कर सकते हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव उन सभी व्यक्तियों के लिए खुला होता है जिनके पास प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 10 सदस्यों का समर्थन हो.
ऐसे सभी नामों को रिटर्निंग अधिकारी के सामने तय तारीख पर रखा जाता है.
'चयन' की प्रक्रिया
उनमें से कोई भी सात दिन के भीतर अपना नाम वापस लेना चाहे तो ले सकता है. फिर रिटर्निंग अधिकारी उन नामों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पास भेजते हैं.
अगर नाम वापस लेने के बाद अध्यक्ष पद के लिए केवल एक ही उम्मीदवार रहता है तो उसे अध्यक्ष मान लिया जाता है.
लेकिन अगर दो से ज्यादा लोग होते हैं तो कांग्रेस वर्किंग कमिटी और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य सभी हिस्सा लेते हैं, जिसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है और आज तक कांग्रेस के इतिहास में इसकी नौबत आई ही नहीं.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक एक बार जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की एक कोशिश की थी लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दरवाज़े बंद मिले थे.
रशीद किदवई के मुताबिक उसी वक्त ये साफ हो गया था कि 'चयन' की प्रक्रिया को 'चुनाव' में तबदील करने की को कोशिश का कांग्रेस में क्या हाल होता है.
कांग्रेस में बग़ावत
वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा के मुताबिक युवा कांग्रेस में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनाव कराने की एक कोशिश खुद राहुल गांधी ने की थी. लेकिन उसका नतीजा ये हुआ कि हर जगह युवा कांग्रेस में दो धड़े बन गए, जिसके बाद प्रदेश कांग्रेस कमिटी में बगावत शुरू हो गई.
विनोद शर्मा के मुताबिक कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया क्या होती है, इसका कोई महत्व नहीं है. कांग्रेस वर्किंग कमिटी के पास अधिकार होता है किसी को अध्यक्ष पद के लिए मनोनीत करने के लिए. लेकिन बाद में एआईसीसी को उस पर मोहर लगानी पड़ती है.
विनोद शर्मा का कहना है कि ऐसा केवल कांग्रेस में ही नहीं बल्कि बीजेपी में भी होता है. उनके मुताबिक अमित शाह का चुनाव पहले हुए था बाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उनके नाम पर मुहर लगाई थी.
कैसे होता है बीजेपी में अध्यक्ष का चुनाव
बीजेपी के संविधान के मुताबिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकता है जो कम से कम 15 वर्षों तक सदस्य रहा हो.
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष के 'चुनाव' निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं.
बीजेपी संविधान में ये भी लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी बीस सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं.
यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम ऐसे पांच प्रदेशों से आना जरूरी है जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों. साथ ही साथ नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति आवश्य होनी चाहिए.
एनडीटीवी की राजनीतिक संपादक अखिलेश शर्मा के मुताबिक, "बीजेपी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव आम राय से होता है. इसमें आरएसएस की अहम भूमिका होती है. बीजेपी के नेता एक नाम तय करते हैं जिस पर आखिर में मोहर आरएसएस को लगाना होता है."
आंतरिक लोकतंत्र
बीजेपी के इतिहास में आज तक चुनाव की नौबत नहीं आई. इसी को बीजेपी आंतरिक लोकतंत्र का नाम देती है.
अखिलेश शर्मा के मुताबिक, "राजनाथ सिंह जब बीजेपी अध्यक्ष बने थे, उस वक्त माना जा रहा था कि नितिन गडकरी को दूसरी बार अध्यक्ष पद मिलने वाला है. इसके लिए बीजेपी ने अपने संविधान में संशोधन भी किया था. उस समय बीजेपी नेता यशंवत सिन्हा भी अध्यक्ष पद का नामांकन भरने वाले थे. लेकिन अंत समय में उन्हें मना लिया गया था और चुनाव की नौबत नहीं आई थी."
अखिलेश मानते हैं कि आंतरिक लोकतंत्र की परिभाषा हर पार्टी की अलग अलग है. लेकिन वंशवाद वाली पार्टी के मुकाबले बीजेपी और लेफ्ट में आंतरिक लोकतंत्र थोड़ा ज्यादा है. बीजेपी और लेफ्ट जैसी पार्टियों में आम राय का फैसला दरअसल बहुमत का फैसला होता है.
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