Indian Railways:107 साल पुरानी रेलवे लाइन के लिए गुजरात में भाजपा-कांग्रेस क्यों आई साथ ?
नई दिल्ली- वेस्टर्न रेलवे ने गैर-फायदेमंद बताते हुए गुजरात में नैरो गेज की 11 रूटों और उसकी ब्रांच लाइनों को बंद करने का फैसला किया है। इन्हीं रेलवे लाइनों में से 107 साल पुरानी बिलीमोरा-वाघई लाइन भी है, जिसे बंद करने का भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के नेता विरोध कर रहे हैं। इस रूट पर पहले गायकवाड़ बड़ोदा स्टेट रेलवे ट्रेनों का संचालन करता था। यह रेलवे लाइन गुजरात की सबसे घने जंगलों वाले कुछ इलाकों से होकर गुजरती है और स्थानीय आदिवासियों के लिए आवागमन का एकमात्र साधन है। लॉकडाउन से पहले तक यह ट्रेन दिन में दो फेरे लगाती थी।
बिलीमोरा-वाघई लाइन का इतिहास
इस रूट पर ट्रेनों का संचालन 1913 में बड़ोदा रियासत के गायकवाड़ शासकों ने शुरू किया था। यह लाइन गुजरात के नवसारी जिले के बिलीमोरा को डांग जिले के वाघई से जोड़ती है। आज यह वेस्टर्न रेलवे के अधीन है, जो 1951 में अस्तित्व में आया। वेस्टर्न रेलवे बॉम्बे, बड़ोदा और सेंट्रल इंडिया रेलवे, सौराष्ट्र, राजपुताना और जयपुर स्टेट रेलवे को मिलाकर बना। बिलीमोरा-वाघई रेलवे लाइन का निर्माण ब्रिटिश शासकों ने गायकवाड़ शासकों के कहने पर किया था। जबकि, इसका संचालन सयाजीराव गायकवाड़-3 के स्वामित्व वाले गायकवाड़ बड़ोदा स्टेट रेलवे के अधीन रहा। बिलीमोरा और वाघई की दूरी 63 किलोमीटर है। यह रूट उन पांच रेल मार्गों में से है जिसे भारतीय रेलवे ने 2018 में 'इंडस्ट्रियल हेरिटेज' के तौर पर संरक्षित रखने का प्रस्ताव दिया था। यह रेलवे गुजरात के घने जंगलों से होकर गुजरती है। जानकारी के मुताबिक इस ट्रेन से जंगल से लकड़ी काटकर उसकी ढुलाई भी होती थी।
5 कोच वाली ट्रेन दो फेरे लगाती थी
कोविड लॉकडाउन की घोषणा से पहले इस रूट पर 5 कोच वाली ट्रेन बिलीमोरा से वाघई तक के दो फेरे लगाती थी। इस मार्ग पर 9 रेलवे स्टेशन हैं- गनदेवी, चिखली, रनकुवा,धोलिकुवा, अनावल, उनई, केवड़ी रोड, काला अंबा और डुंगार्दा। इसकी सवारी के लिए उनई, बिलीमोरा और वाघई रेलवे स्टेशनों पर टिकट उपलब्ध थे और एक तरफ का सबसे लंबी दूरी का किराया 15 रुपये था। 10 दिसंबर को रेलवे ने 11 'अनइकोनॉमिक ब्रांच लाइनों और नैरो गेज सेक्शन' को पूरी तरह बंद करने के वेस्टर्न रेलवे के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। जिन लाइनों को बंद किया जाना है वे हैं नाडिया-भद्रन, अंकलेश्वर-राजपिपला, बोरियावी-वडतल-स्वामीनारायण,कोसांबा-उमरपदा, सामलया जंक्शन-टिम्बा रोड, झगाडिया जंक्शन-नेतरांग, छुछापुरा-तंखाला, छोटा उदयपुर-जंबुसार, बिलीमोरा-वाघई, चोरांदा-मोती कराल और चंदोद-मालसर।
आदिवासियों के लिए आवाजाही का प्रमुख साधन
बिलीमोरा-वाघई के बीच चलने वाली ट्रेनों का ज्यादातर इस्तेमाल दक्षिणी गुजरात के डांग जिले के दूर-दराज गांव में रहने वाले आदिवासी करते थे, जो अपने कृषि उत्पादों को गनदेवी या बिलीमोरा जैसे शहरों में लाकर बेचते थे। उनके लिए कनेक्टिविटी का भी यह एक प्रमुख साधन था, क्योंकि इलाके में इन शहरों तक पहुंचने के लिए सड़कों की सही सुविधा नहीं है। इलाके के स्टूडेंट भी इन्हीं ट्रेनों के जरिए शहरों तक कॉलेजों में पढ़ने जाते थे।
ट्रेन बंद होने के खिलाफ भाजपा-कांग्रेस
जैसे ही इस ट्रेन के बंद होने की घोषणा हुई, डांग के सत्ताधारी बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायक विजय पटेल ने आदिवासियों के लिए इस सेवा को फिर से बहाल करने के लिए आंदोलन छेड़ दिया। नवसारी जिले के वनस्दा के कांग्रेस विधायक अनंत पटेल और वाघई के एक सोशल वर्कर ने भी इस सेवा की फिर से बहाली की मांग शुरू कर दी। विजय पटेल ने तो सीधे रेलमंत्री पीयूष गोयल को खत लिखकर कहा है कि यह इलाके के आदिवासियों के लिए लाइफलाइन है और इसे तो अपग्रेड करके टूरिज्म के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि अनंत पटेल ने इस लाइन पर पड़ने वाले रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन शुरू कर दिया है।( तस्वीरें सौजन्य: सोशल मीडिया)