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चीनी ख़तरों का सामना करने के लिए भारतीय वायु सेना किस हद तक तैयार है?

जहाँ एक तरफ़ भारतीय वायु सेना अपनी युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए जूझ रही है वहीं दूसरी ओर चीन के पास भारत से क़रीब दोगुने लड़ाकू विमान हैं.

By BBC News हिन्दी
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शुक्रवार आठ अक्टूबर को भारतीय वायु सेना ने अपना 89वां स्थापना दिवस मनाया और इस मौक़े पर हर साल की तरह इस बार भी राजधानी से सटे हिंडन एयरबेस पर एक समारोह में अपनी क्षमता और शक्ति का प्रदर्शन किया.

Indian Air Force prepared to face Chinese threats?

इस समारोह में अपने भाषण में वायु सेना के नव-निर्वाचित अध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल वी आर चौधरी ने कहा, "जब मैं सुरक्षा परिदृश्य को देखता हूँ, जिसका आज हम सामना कर रहे हैं, तो मैं पूरी तरह से सचेत हूँ कि मैंने एक महत्वपूर्ण समय पर कमान संभाली है. हमें राष्ट्र को दिखाना चाहिए कि बाहरी ताक़तों को हमारे क्षेत्र का उल्लंघन नहीं करने दिया जाएगा."

इस बात में कोई शक़ नहीं कि वायु सेना अध्यक्ष ने एक महत्वपूर्ण समय पर भारतीय वायु सेना की कमान संभाली है. चीन के साथ भारत के लंबे समय से चल रहे तनाव में कोई कमी नहीं आई है और वायु सेना अध्यक्ष यह ख़ुद कह चुके हैं कि चीन ने तिब्बत क्षेत्र में तीन हवाई अड्डों पर अपनी तैनाती जारी रखी हुई है.

27 फरवरी 2019 को पाकिस्तानी वायु सेना के लड़ाकू विमानों के भारतीय एयरस्पेस में घुस आने की यादें भी अभी धुंधली नहीं पड़ी हैं.

इसी बीच पाँच अक्टूबर को वायु सेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी का यह बयान आया कि भारतीय वायु सेना के लिए अगले 10-15 वर्षों में 42 लड़ाकू स्क्वॉड्रनों की स्वीकृत संख्या तक पहुँचना संभव नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि अगले कुछ सालों में लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) -एमके 1 ए के चार स्क्वॉड्रन, एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) के छह स्क्वॉड्रन और मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) के छह स्क्वॉड्रन भारतीय वायु सेना में शामिल होंगे.

लेकिन कई पुराने लड़ाकू विमानों को चरणबद्ध तरीक़े से फ़ेज़आउट भी किया जाएगा तो कुल स्कॉड्रनों की संख्या अगले दशक में 35 ही रहेगी और इसमें बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है.

तो क्या 42 स्वीकृत स्क्वॉड्रनों के लिए पूरे लड़ाकू विमान उपलब्ध न होना भारतीय वायु सेना के लिए एक ख़तरे की घंटी है? क्यों भारतीय वायु सेना अपनी ज़रूरतों के मुताबिक़ लड़ाकू विमान शामिल नहीं कर पा रही?

114 लड़ाकू विमान ख़रीदने की तैयारी

भारतीय वायु सेना के पास क़रीब 600 लड़ाकू विमान हैं. इनमे सुखोई, मिग-29, मिराज 2000, जैगुआर, मिग-21, तेजस और रफ़ाल शामिल हैं. फ्रांस से किए गए 36 रफाल विमानों के सौदे में अब तक 26 विमानों की डिलिवरी हो चुकी है.

अगले चार साल में भारतीय वायु सेना चार मिग-21 के स्क्वॉड्रनों को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म कर देगा और इस दशक के अंत तक मिराज 2000, जैगुआर और मिग-29 लड़ाकू विमानों भी सेवा से बाहर हो जाएंगे. यही एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है.

इस कमी को पूरा करने के लिए भारतीय वायु सेना अब 114 मल्टी रोल फ़ाइटर एयरक्राफ्ट ख़रीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

वायु सेना ने अप्रैल 2019 में क़रीब 18 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत वाले 114 फ़ाइटर जेट हासिल करने के लिए प्रारंभिक टेंडर जारी किया. इस ख़रीद को हाल के वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े सैन्य ख़रीद कार्यक्रमों में से एक के रूप में देखा जा रहा है.

वायु सेना को उम्मीद है कि 83 तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की ख़रीद से भी वो अपनी युद्ध क्षमता को बनाए रख पाएगी.

'अनिश्चितता की स्थिति'

पिछले कई सालों से भारतीय वायु सेना के लिए लड़ाकू विमान ख़रीदने पर समय-समय पर चर्चा होती रही है. तो फिर क्यों आज वायु सेना ख़ुद को ऐसी स्थिति में पा रही है?

सेवानिवृत एयर कमोडोर प्रशांत दीक्षित कहते हैं कि इस समस्या की शुरुआत तब हुई जब 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने के बजाय सिर्फ़ 36 रफ़ाल विमान ही ख़रीदे गए.

वे कहते हैं, "भारतीय वायु सेना की दिक्क़तें यहीं से शुरू हो गईं. सरकार का झुकाव अब लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस की तरफ़ है. 40 तेजस का ऑर्डर दिया जा चुका है और 83 तेजस और ख़रीदने की बात कही गई है, जिन्हें आते-आते दस साल लग जाएंगे."

भारत सरकार ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) ख़रीदने की प्रक्रिया शुरू की थी. इन विमानों की कीमत को लगभग 20 अरब डॉलर आँका गया था. इस प्रक्रिया ने अलग-अलग विमानों के बीच हुए मुक़ाबले में रफ़ाल ने ही बाज़ी मारी थी लेकिन 2015 में भारत सरकार ने फ़्रांसीसी सरकार से एक सीधा समझौता कर 36 रफाल लड़ाकू विमान ख़रीदने के फ़ैसला किया. इसके बाद 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने का प्रस्ताव ख़त्म ही हो गया.

कमोडोर दीक्षित कहते हैं, "सरकार अब पुराने मिराज 2000 ख़रीद रही है. इरादा यह है कि इन पुराने विमाओं के कलपुर्ज़े दूसरे मिराज विमानों में इस्तेमाल किए जा सकें. गहरी चिंता का विषय यह है कि एक तरफ़ आप आधुनिक विमान ला रहे हैं और दूसरी तरफ़ जुगाड़ का इंतज़ाम किया जा रहा है."

लड़ाकू विमानों की कमी के बारे में वे कहते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वायु सेना में एक अनिश्चितता की स्थिति है.

ऊँची क़ीमत और लंबी प्रक्रिया

जानकारों का मानना है कि पिछले दो दशकों में लड़ाकू विमानों की तकनीकी गुणवत्ता में जो इज़ाफा हुआ है उसकी वजह से उनकी क़ीमतें भी कई गुना बढ़ गई हैं और भारत जैसे विकासशील देशों के लिए इन महंगे लड़ाकू विमानों को ख़रीदना एक चुनौती बनता जा रहा है.

भारत ने फ्रांस से जो 36 रफ़ाल विमान ख़रीदे हैं, उनकी क़ीमत 59,000 करोड़ रुपए है और इस ख़रीद को लेकर भारत में एक बड़ा राजनीतिक विवाद देखा जा चुका है.

सेवानिवृत एयर मार्शल पी के बारबोरा कहते हैं कि लड़ाकू विमान ख़रीदना एक बहुत है लंबी प्रक्रिया है और "ऐसा नहीं है कि आप शेल्फ से कार की तरह एक विमान ख़रीद सकते हैं".

वे कहते हैं, "भारत को पहले रफ़ाल जेट की आपूर्ति करने में फ्रांस को क़रीब चार साल लग गए. जिस दिन से आप एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करते हैं, पहले विमान को आने में छह से सात साल के बीच का समय लग ही जाएगा."

एयर मार्शल बारबोरा के अनुसार हर वायु सेना अपनी ज़रूरतों के अनुरूप लड़ाकू विमान चाहती है, इसलिए इन विमानों में उन ज़रूरतों को पूरा करने वाला उपकरणों को लगाने में अतिरिक्त समय लगता है.

बारबोरा कहते हैं, "यह एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें विमान के निर्माता उत्पादन में तेज़ी नहीं ला सकते हैं. भले ही आज 114 जेट के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हों, लेकिन आख़िरी विमान आने तक 15 साल हो जाएंगे और समस्या अभी भी पैसे की होगी."

वे मानते हैं कि भारत में बना हुआ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस एक अच्छा विमान है लेकिन उनका कहना है कि रेंज, सहनशक्ति और हथियार ढोने की क्षमता के मामले में तेजस, सुखोई या रफ़ाल विमानों से कम क्षमता वाला है. उनका कहना है कि तेजस के निर्माता हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की क्षमता को देखते हुए उन्हें लगता है कि 83 तेजस जेट आने में लंबा समय लगेगा.

चीन से ख़तरा

जहाँ एक तरफ़ भारतीय वायु सेना अपनी युद्ध क्षमता को बढ़ाने के लिए जूझ रही है वहीं दूसरी ओर चीन के पास भारत से क़रीब दोगुने लड़ाकू विमान हैं.

दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव को देखते हुए यह चिंता बार-बार जताई जा रही है कि क्या भारतीय वायु सेना चीन के ख़तरे का सामना करने के लिए सक्षम है.

कमोडोर दीक्षित का मानना है कि भारत और चीन के बीच पारंपरिक युद्ध छिड़ने की आशंका बहुत कम है. "और अगर ऐसा होता भी है तो भारतीय वायु सेना के लिए अन्य देशों से मदद ली जा सकती है." दीक्षित का मानना है कि क्वॉड जैसा समूह जिसका भारत हिस्सा है किसी मुसीबत की स्थिति में भारतीय वायु सेना की मदद कर सकता है.

वहीं एयर मार्शल बारबोरा कहते हैं कि भारतीय वायु सेना के पास आज भी हाई-टेक विमान मौजूद हैं. वे कहते हैं, "मिराज 2000 और मिग-29 को अपग्रेड किया गया है. जगुआर को काफ़ी हद तक अपग्रेड किया गया है. भारत के पास 250 से अधिक सुखोई विमानों का बेड़ा है और रफ़ाल विमान भी हैं. हमारे पास ये विमान हैं जो बहुत सक्षम हैं."

एयर मार्शल बारबोरा कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि भारत का चीन या पाकिस्तान के साथ कोई बड़े स्तर के संघर्ष हो सकता है. वे कहते हैं, "इसकी वजह यह है कि भारत और ये दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. स्थानीय संघर्ष हो सकते हैं जहां वायु शक्ति का उपयोग हो सकता है. लेकिन एक पूर्ण युद्ध होगा, मुझे इस बात पर संदेह है."

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