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India@75: आजादी के बाद अंतरिक्ष में उड़ान, नौसिखिए से 'बड़ा खिलाड़ी' बनने की कहानी

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नई दिल्ली, 14 अगस्त: भारत को आजाद हुए 75 वर्ष हो रहे हैं, लेकिन भारत का आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम 65 साल से भी कम का है। लेकिन, इन करीब 6 दशकों में भी अपना देश इस फिल्ड में एक नौसिखिए से बाजार का बड़ा खिलाड़ी बन चुका है। भारत की ताकत इसका खिफायती अंतरिक्ष मिशन है, जिसके चलते बड़े-बड़े देश भी भारत के रॉकेट से अपना उपग्रह लॉन्च करवाना फायदा का सौदा समझते हैं। भारत का सामर्थ्य यह है कि कम लागत वाले मिशन होने के बावजूद इसकी तकनीक बेहतरीन है और दुनिया के तमाम बड़े देश इस मामले में भारत का लोहा माने का मजबूर हुए हैं। इन लगभग 6 दशकों में भारत ने अंतरिक्ष में जितनी ऊंची उड़ान भरी है, उसे एक जगह में समेटना हाथी को पायजामा पहनाने के समान है, लेकिन यहां उन उपलब्धियों का जिक्र करने की कोशिश की गई है, जो ना सिर्फ भारत के नजरिए से,बल्कि विज्ञान और विश्व के नजरिए से अंतरिक्ष मिशन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम

75 वर्षों में अंतरिक्ष में भारत की उड़ान की बात करेंगे तो इसे मोटे तौर पर चार चरणों में बाटा जा सकता है। पहला और शुरुआती दौर 1960 और 1970 का दशक है। 1980 के दशक को एक्सपेरिमेंटल फेज मान सकते हैं। 1990 का दशक ऑपरेशनल फेज था। राष्ट्रीय स्तर पर इससे जुड़ी अपनी सेवाएं शुरू हुईं। यूजर बेस का विस्तर हुआ। संस्थानात्मक फ्रेमवर्क विकसित हुए; और 2000 के बाद से यह एक्सपेंशन फेज में चल रहा है। इसमें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का दायरा वैश्विक हुआ है। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो अपनी क्षमता का विकास अंतरराष्ट्रीय यूजर्स के लिए करने लगी है। नई-नई सेवाएं शुरू हुई हैं। भारत का जोर इस क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने पर है। आज भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) अपने फिल्ड में काफी सक्षम है। स्पेस ट्रांसपोर्टेशन से लेकर, सैटेलाइट सिस्टम, स्पेस ऐप्लिकेशन, मानव से जुड़े प्लेटफॉर्म, अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग और उनसे जुड़ी फैसिलिटी और मानवीय जीवन को सपोर्ट करने वाली टेक्नोलॉजी। इसी का परिणाम है कि इसरो अबतक 82 लॉन्च व्हीकल मिशन मिशन, 112 सैटेलाइट मिशन, 8 टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेशन मिशन और 250 से ज्यादा स्पेस एप्लीकेशन का काम सफलतापूर्वक पूरा कर चुका है। आज ग्रामीण कनेक्टिविटी से लेकर, टेलीमेडिसीन, टेलीएजुकेशन, नेशनल ऐसेट डायरेक्टरी, बैंकिंग सेवा, रिसोर्स मैनेजमेंट, सिविल एविएशन से लेकर प्राचीन और अनमोल धरोहरों की सुरक्षा तक में इसरो योगदान दे रहा है।

1963 में पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च

1963 में पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 1960 में इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) और थुंबा ईक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) से हुई थी। पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च 21 नवंबर, 1963 को थुंबा ईक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से ही हुआ था। 1965 में थुंबा में ही स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर की स्थापना हुई, जो आज विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर कहलाता है। 1967 में अहमदाबाद में स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (पहले) स्थापित हुआ। फिर 1972 में बैंगलोर में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर, 1971 में सतीश धवन स्पेस सेंटर, इसी तरह आगे चलकर नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद की स्थापना हुई। 1 अप्रैल, 1975 को इसरो सरकारी संगठन बन गया, जिसका मुख्यालय बैंगलोर में बना। 18 दिन बाद ही 19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपना पहला वैज्ञानिक सैटेलाइट आर्यभट्ट को बैकोनूर कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया।

'सारे जहां से अच्छा'

'सारे जहां से अच्छा'

अंतरिक्ष के माध्यम से सूचना प्रसारण का दुनिया में पहला प्रयोग सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) (दुनिया का सबसे बड़ा समाजशास्त्रीय प्रयोग) 1 अगस्त, 1975 से 31 जुलाई, 1976 के बीच इसरो ने ही किया। इस प्रयोग ने मास मीडिया के क्षेत्र में क्रांति की बुनियाद रख दी। धीर-धीरे इस मिशन ने रफ्तार पकड़ ली। लगातार प्रयोग होते रहे और सूचना-प्रसारण सेवा का विस्तार होना शुरू हो गया। 7 जून, 1979 को भास्कर-1 को लॉन्च किया गया, जो पृथ्वी की निगरानी के लिए छोड़ा गया प्रयोगात्मक सैटेलाइट था। 10 अगस्त, 1979 को एसएलवी-3 रोहिणी टेक्नोलॉजी के पेलोड के साथ लॉन्च हुआ। 19 जून, 1981 को जीओस्टेशनरी कम्यूनिकेशन सैटेलाइट APPLE की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग हुई। फिर, 20 नवंबर, 1981 को भास्कर-2 की लॉन्चिंग के बाद अप्रैल 1984 का वह दिन भी आया, जब अंतरिक्ष में पहुंचे पहले भारतीय राकेश शर्मा ने स्पेस से कहा- "मैं बगैर किसी झिझक से कह सकता हूं कि सारे जहां से अच्छा।" इसके बाद भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा है।

दूसरे देश भी कैसे हुए इसरो पर निर्भर ?

दूसरे देश भी कैसे हुए इसरो पर निर्भर ?

देश का पहला स्वदेशी संचार उपग्रह इंसैट-2बी 23 जुलाई, 1993 में लॉन्च हुआ था। पीएसएलवी की पहली कामयाब लॉन्चिंग 15 अक्टूबर, 1994 में हुई थी, जो आईआरएस-पी2 लेकर गया था। 28 दिसंबर, 1995 को भारत ने जो रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट आईआरएस-1सी लॉन्च किया हुआ, उस समय वह दुनिया में रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में बेहतरीन था। 26 मई, 1999 का वह दिन भी आया जब भारत ने अंतरिक्ष में कोरिया और जर्मनी के सैटेलाइटों के साथ अपने ओशनसैट-2 की पहली सफल कमर्शियल लॉन्चिंग की। इस तरह से अंतरिक्ष में भारत साल-दर-साल, महीने-दर-महीने प्रगति करता रहा और दुनिया के विकसित देश भी किफायती लॉन्चिंग के लिए इसरो की लॉन्चिंग का इंतजार करने लगे। मसलन, 28 अप्रैल, 2008 को भारत के पीएसएलवी-सी9 से सफलतापूर्वक 10 सैटेलाइट लॉन्च किए गए। इसमें भारत के दो और अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ताओं के 8 नैनो सैटेलाइट थे।

चांद और मंगल तक मौजूदगी

चांद और मंगल तक मौजूदगी

अब अंतरिक्ष से आगे का इसरो युग आ चुका था। 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-1 लॉन्च हुआ। इसके साथ ही भारत चांद के नजदीक स्पेसक्राफ्ट पहुंचाने वाला दुनिया कां पांचवां देश बन गया। यह विश्व का पहला मिशन था, जिसने चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया। बीच-बीच में अलग-अलग सैटेलाइट की लॉन्चिंग के साथ ही, 5 नंबवर 2013 को वह दिन भी आया जब, भारत दूसरी ग्रह के लिए अपना पहला सफल मंगल अभियान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) लॉन्च किया। 24 सितंबर, 2014 को भारत का मार्स ऑर्बिटर स्पसेक्राफ्ट मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक दाखिल हो गया।

स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत बन चुका है बड़ा खिलाड़ी

स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत बन चुका है बड़ा खिलाड़ी

इस तरह से अंतरिक्ष की खोज में भारत ने जो प्रगति की रफ्तार पकड़ी है, वह कभी धीमी नहीं पड़ी। 28 सितंबर, 2015 को पीएसएलवी-सी30 से भारत का पहला ऐस्ट्रोनॉमी सैटेलाइट ऐस्ट्रोसैट तो लॉन्च हुआ ही, इसके साथ ही अमेरिका, कनाडा और इंडोनेशिया समेत 6 विदेशी सैटेलाइट भी लॉन्च किए गए। 15 फरवरी, 2017 को तो भारत ने तब अंतरिक्ष में कामयाबी का झंडा गाड़ दिया जब एक बार मेंअपने दौ सैटेलाइट के साथ 103 विदेशी सैटेलाइट लॉन्च कर दिए। एकबार में इतनी ज्यादा सैटेलाइट का यह एक रिकॉर्ड बन गया। 15 अगस्त, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गगनयान प्रोग्राम की घोषणा की, जो कि अंतरिक्ष में भारत का पहला मानव मिशन होगा। इसी आधार पर 30 जनवरी, 2019 को बैंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में ह्युमैन स्पेस फ्लाइट सेंटर का उद्घाटन किया गया। 22 जुलाई, 2019 को पृथ्वी की कक्षा के लिए चंद्रयान-2 सैटेलाइट सफलतपूर्वक लॉन्च हुआ। 2 सितंबर, 2019 को चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में छोड़ दिया गया। यह अभी तक 8 प्रयोग कर चुका है और चंद्रमा की कुछ बेहतरीन तस्वीरें भेज चुका है।

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'नाविक' नैविगेशन सिस्टम से लेकर काफी उम्मीदें

'नाविक' नैविगेशन सिस्टम से लेकर काफी उम्मीदें

27 नवंबर, 2019 को पीएसएलवी-सी47 श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया जो भारत के कार्टोसैट-3 के साथ 13 विदेशी सैटेलाइट लेकर उड़ा। अगस्त 2020 में कार्टोसैट को तब एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी, जब इसने एक्स्ट्रीम-अल्ट्रावॉयलेट लाइट में सबसे पुरानी आकाशगंगा में से एक की खोज की। इसरो ने अपना एक सैटेलाइट सिस्टम नाविक भी सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। जिओमी और वनप्लस जैसे मोबाइल हैंडसेट में नाविक सिंग्नल को सपोर्ट करने वाले नाविक नैविगेशन सिस्टम लग चुके हैं। 28 अगस्त, 2021 को गगनयान सर्विस मॉडल प्रोपल्शन सिस्टम का हॉट टेस्ट भी कामयाबी के साथ पूरा कर लिया गया। (कई तस्वीरें सौजन्य- इसरो वेबसाइट पर उपलब्ध वीडियो से)

इसरो की उपलब्धियों को विस्तार से देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए

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English summary
It is 75 years since India became independent, but India's modern space program is less than 65 years old. But, even in these, it has become a big player in this field from a novice
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