चुशुल में आज मिल रहे हैं भारत-चीन के ले. जनरल, जानिए 62 की जंग में यहां क्या हुआ था
नई दिल्ली। भारत और चीन की सेनाओं के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर जारी विवाद को सुलझाने के मकसद से छह जून को वार्ता है। लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की इस वार्ता में पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को सुलझाने के विकल्पों पर बात हो सकती है। सेना के सूत्रों की तरफ से बताया गया है कि भारत की तरफ से 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह मौजूद होंगे और अपने चीनी समकक्ष से मसले पर विस्तार से चर्चा करेगी। सेना सूत्रों की ओर से बताया गया है कि यह मीटिंग चुशुल-मोल्डो में हो सकती है।
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भारत की सेना के लिए रणनीतिक महत्व वाला चुशुल
चुशुल, भारतीय सेना के लिए बहुत ही रणनीतिक स्थान है। यह जगह पहली बार सन् 1962 की जंग सबकी नजरों में उस समय आई थी जब मेजर शैतान सिंह की कंपनी ने चीन के 1300 जवानों को धाराशायी कर दिया था। चुशुल, लद्दाख की राजधानी लेह का एक गांव है। यह जगह दारबुक तहसील में आती है और इसे चुशुल घाटी के नाम से भी जानते हैं। इस गांव के ज्यादातर लोग अशिक्षित है। यहां की आबादी ज्यादा बकरी और याक पालन से जीवन-यापन करती है। खेती के नाम यहां पर जौ और मटर की खेती होती है। सर्दियों के मौसम में यह गांव लेह से पूरी तरह से कट जाता है। इस जगह का मुख्य खेल आइस हॉकी है।
62 में यहां हुआ था रेजांग ला का युद्ध
सन् 1962 को जब चीन ने हमला किया तो इस जगह पर हुई लड़ाई को रेजांग ला के युद्ध के नाम से जाना गया। आज भी रेजांग ला की लड़ाई इतिहास में एक अलग जगह रखती है। 62 की जंग में इस जगह पर अगर सेना जीत नहीं हासिल करती तो फिर शायद पूरे लद्दाख पर चीन का कब्जा होता है। रेजांग ला, लद्दाख में दाखिल होने वाले दक्षिण-पूर्व के रास्ते पर पड़ने वाला दर्रा यानी पास है। यह 2.7 किलोमीटर लंबा और 1.8 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी ऊंचाई करीब 16,000 फीट है। 62 की जंग के समय रेजांग ला पास में कुमाऊं रेजीमेंट के 13 कुमाऊं बटालियन की एक टीम को मेजर शैतान सिंह लीड कर रहे थे।
सामने थे चीन के हजारों सैनिक
18 नवंबर 1962 को तड़के रेजांगला पास की बर्फ से ढंकी पहाड़ी से चीन ने फायरिंग शुरू कर दी। जो जगह एकदम शांत थी, तब वहां गोलीबारी हो रही थी। पीपुल्स लिब्रेशन ऑफ आर्मी यानी पीएलए के पांच से 6,000 सैनिक हथियारों और तोप के साथ लद्दाख के रेजांग ला में दाखिल हो गए थे। 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशूल वैली की रक्षा में तैनात थी और मेजर शैतान सिंह के पास बस 120 जवान थे। इन जवानों ने चीन के हजारों जवानों को देखकर भी हौंसला नहीं खोया और पूरी क्षमता के साथ चीनी दुश्मनों का सामना किया। मेजर शैतान सिंह पर गोलियों की बौछार होती रही मगर वह अपनी टीम की हौसला अफजाई करते रहे। मेजर शैतान सिंह की टीम को चार्ली कंपनी कहा गया था।
यहीं पर मिला मेजर शैतान सिंह का शव
चीन की सेना के पास तोप और भारी गोला-बारूद था और भारत के सामने पहाड़ एक ऊंची चोटी जिस पर बर्फ जमी थी दीवार की तरह खड़ी थी। इस ऊंची चोटी की वजह से मेजर शैतान सिंह को मदद नहीं भेजी जा सकती थी। मेजर शैतान सिंह ने अपने 120 जवानों में दम भरा और चीन का सामना करने के लिए कहा। तीन दिनों तक लड़ाई होती रही और इसी जगह पर बाद में मेजर शैतान सिंह का शव मिला था। इसी जगह पर उनके नाम पर अब एक स्मारक है। 120 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे। भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सेना को हथियार डालना पड़ा। चीन के 1300 सैनिक मारे गए थे।
21 नवंबर को चीन ने डाले थे हथियार
आखिर में चीन ने 21 नवंबर को यहां पर सीजफायर का ऐलान कर दिया था। मेजर शैतान सिंह को भारत सरकार की तरफ से सन् 1963 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आज दुनिया रेजांग ला पास को अहीर धाम के नाम से भी जानते हैं। दरअसल 13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के उस क्षेत्र से आते थे जिसे अहीरवाल के तौर पर जानते हैं। सभी 120 जवान गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों से आते थे। मेजर शैतान सिंह रेवाड़ी के रहने वाले थे। रेजांग ला युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में रेवाड़ी और गुड़गांव में याद में स्मारक बनाए गए हैं। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।