India-China clash: 62 में भी लद्दाख के गलवान से हुई थी जंग की शुरुआत, इस बार भी गलवान में ही बिगड़े हैं हालात
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच रिश्ते ताजा घटनाक्रम के बाद फिर से तनावपूर्ण हो गए हैं। सोमवार रात यहां पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच उस समय हिंसा हुई जब दोनों तरफ डिएस्कलेशन की प्रक्रिया जारी थी। भारत और चीन के बीच हुई हिंसा में कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) कर्नल रैंक के आफिसर समेत तीन सैनिक शहीद हो गए। गलवान घाटी में हुई इस घटना ने दोनों देशों के बीच सात हफ्तों से जारी टकराव को एक नया मोड़ दे दिया है। कई राउंड वार्ता के बाद भी सीमा विवाद जस का तस बना हुआ है। यह बात और भी ज्यादा दिलचस्प है कि चीन की सरकार अक्सर कहती है कि भारत के साथ सीमा विवाद इतिहास का हिस्सा है। इस बार भारत और चीन के बीच टकराव के केंद्र में है गलवान घाटी। यह वही जगह है जहां पर 1962 में हुई जंग में पहली गोली चली थी।
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62 की पहली लड़ाई गलवान घाटी में
भारत और चीन के बीच 3500 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी है। इसके एक छोर पर कश्मीर तो एक छोर पर म्यांमार आता है। पिछले दो हफ्तों से सिक्किम और लद्दाख में सब-कुछ ठीक नहीं है। जब आप इतिहास पर नजर दौड़ाएंगे तो आपको पता चल जाएगा कि गलवान घाटी का भारत और चीन से क्या रिश्ता है। भारत और चीन सन् 1962 में पहली बार जंग के मैदान में आमने-सामने थे। गलवान घाटी वही जगह है जहां पर 20 अक्टूबर 1962 को जंग की पहली लड़ाई हुई थी। एतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक 62 में लद्दाख सेक्टर की गलवान घाटी में ही भारत और चीन के सैनिकों के बीच पहली झड़प हुई थी। गलवान घाटी को चीन शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
इसी तरह उस साल भी गर्मियों में हुआ था तनाव
62 की जंग से पहले उस साल गर्मियों के मौसम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच इस इलाके से गुजरने पर झड़प हो गई थी। उस समय भी नई दिल्ली और बीजिंग के बीच विदेश मंत्रियों ने दूतावास के जरिए कई चिट्ठियां भेजकर संपर्क किया था। भारत और चीन मामलों के जानकारों की मानें तो जिस तरह से आज दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर आधिकारिक संपर्क जारी है, उस समय भी कई हफ्तों तक ऐसा ही दौर चला था। 23 जुलाई 1962 को चीन के विदेश मंत्रालय ने एक चिट्ठी बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास को सौंपी थी। उस समय इंडियन आर्मी पर आरोप लगाया गया था कि वह बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात चीनी फ्रंटियर गार्ड्स को चीन की सीमा में दाखिल होकर फायरिंग कर उन्हें भड़का रहे हैं।
चीन ने लगाए थे भारत पर कई आरोप
इस चिट्ठी में आगे लिखा था, 'कई भारतीय जवानों ने हाल ही में गलवान नदी के दक्षिण में चीन की सीमा में घुसपैठ की है और स्थायी तौर पर यही पर रुक गए हैं।' चिट्ठी में कहा गया 19 जुलाई को पांच बजकर 35 मिनट पर भारत की सेना ने जान-बूझकर चीन के गश्ती दल पर फायरिंग की थी। इसके बाद चीन के सैनिकों को एक्शन लेना पड़ा था। चीनी सरकार के इन आरोपों का भारत की सरकार ने शांति और धैर्य के साथ जवाब दिया था। तीन अगस्त 1962 को चीन के दूतावास को विदेश मंत्रालय की तरफ से चिट्ठी लिखकर आरोपों का जवाब दिया गया। जो चिट्ठी भारत की तरफ से लिखी गई वह कुछ इस तरह से थी, 'भारत सरकार ने सावधानी से तीनों आरोपों की जांच की और इन्हें आधारहीन माना है।' भारत ने कहा था कि जो आरोप भारत की सेना पर लग रहे हैं, वह गलती दरअसल चीन के सैनिकों ने की है।
भारत सरकार ने खारिज किए चीन के आरोप
भारत ने चीन की चिट्ठी को खारिज कर दिया और चीन की सरकार से कहा कि वह तुरंत उन चीनी सैनिकों को निर्देश दे कि वो किसी भी प्रकार की भड़काऊ कार्रवाई में न शामिल हों ले और जो भारत की सीमा में दाखिल हो गए हैं उन्हें तुरंत जगह छोड़ने का आदेश दिया जाए। इसके अगले दिन चार अगस्त 1962 को चीन ने एक और चिट्ठी भारत को लिखी। इस चिट्ठी में फिर से कहा गया कि चीन की सरकार के विरोध के बाद भी भारतीय पक्ष अपने उन सैनिकों को वापस न बुलाने पर अड़ा है जिन्होंने सिंकियांग, चीन में स्थित गलवान नदी के इलाके में घुसपैठ कर ली है। इसके बाद आठ अगस्त को भारत की तरफ से चीनी दूतावास को आरोपों का खंडन करने वाली एक और चिट्ठी लिखी गई।
एक माह एक दिन तक चला था युद्ध
भारत ने चीन को जवाब दिया था, 'इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। इससे विपरीत अगर घटना इस तरह से सामने आई है तो उसकी वजह चीनी सेना का भारत की सीमा में घुसपैठ करना और भारत के सीमा बल पर फायरिंग करना है। भारत की सरकार इस तरह की दोनों घटनाओं का विरोध करती है। दोनों ही बार भारतीय सेना की तरफ से आत्म संयम बरकरार रखा गया और चीन के जवानों पर फायरिंग नहीं की गई थी।' युद्ध शुरू होने से पहले कई हफ्तों तक इसी तरह से चिट्ठियों के जरिए भारत और चीन के बीच वार्ता होती रही थी। भारत और चीन के बीच हुई 62 की जंग एक माह एक दिन तक चली थी। इस युद्ध में भारत के एक हजार से ज्यादा सैनिक शहीद हो गए थे।