1947 में करीब 70% भारतीय बहुत गरीबी थे, आज आर्थिक मोर्चे पर हम कितने मजबूत हुए हैं ? एक विश्लेषण
नई दिल्ली, 11 अगस्त: भारत में अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है। लेकिन, इस बात में दो राय नहीं कि 75 साल पहले हम जहां थे, उससे आज की तुलना नहीं की जा सकती। खासकर आर्थिक मोर्चे पर। 1947 में करीब 800 वर्षों की गुलामी के बाद भारत स्वतंत्र जरूर हुआ था, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उसका दुनिया में कहीं कोई वजूद नहीं रह गया था। गुलामी से पहले जो मुल्क सोने की चिड़िया कहलाता था, वह अपने नागरिकों का पेट भरने के लिए भी दूसरे देशों के अनाजों पर निर्भर था। लेकिन, 75 साल बाद भारत भले ही वापस से सोने की चिड़िया अभी नहीं बन पाया है, लेकिन हम दुनिया की 5वीं तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यस्थाओं में पहुंच गए हैं।
अनाज: दूसरों पर निर्भरता से निर्यातक बने
अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है। 1950 और 1960 के दशकों में जो खाद्य सहायता लेने को मजबूर था, आज वह भारत अनाज का निर्यातक बन चुका है। जबकि, दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी के लिए अपनी भी आवश्यकता बहुत ज्यादा है। 1950 में देश में कुल अनाज उत्पादन 54.92 मिलियन टन था। जो 2021-22 में रिकॉर्ड 314.51 मिलियन टन तक पहुंच गया। 2021-22 में अनाज का जो उत्पादन हुआ, वह बीते पांच वर्षों के औसत उत्पादन से 23.80 मिलियन टन ज्यादा है। चावल, मक्का, दालें, तिलहन, चना, रेपसीड, सरसों और गन्ना सबका रिकॉर्ड उत्पादन अनुमानित है।
सकल घरेलु उत्पाद
1947 में आजादी के समय भारत का सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) 2.7 लाख करोड़ था। 75 वर्ष बाद वित्त वर्ष 2022 के लिए स्थिर कीमतों पर भारत का जीडीपी 147.36 लाख करोड़ रुपये अनुमानित रही। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बैंक ऑफ अमेरिका के मुताबिक 2031 तक यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। वहीं मॉर्गन स्टेनली ने भारत की जीडीपी चालू वित्त वर्ष में 7 फीसदी से बढ़ने के अनुमान के साथ ही, इस साल इससे एशिया की सबसे तेजी से विकसित अर्थव्यवस्था बनने की संभावना जाहिर की है। इस बात में कोई दो राय नहीं की भारत की अर्थव्यस्था में इतनी तेजी से बढ़ोतरी का श्रेय 1991 में हुए आर्थिक सुधारों और उसके बाद की आर्थिक नीतियों को जाता है।
विदेशी मुद्रा भंडार
1950-51 में भारत के पास महज 1,029 करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा भंडार था। 1991 में जो आर्थिक सुधार लागू किए गए, उसमें कम विदेशी मुद्रा भंडार का बहुत बड़ा रोल रहा। तब देश के खजाने में मात्र 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार शेष रह गया था। हालांकि, कोरोना महामारी और रूस-यूक्रे युद्ध के चलते इस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था दबाव में है। फिर भी 15 जुलाई के आंकड़ों के मुताबिक भारत के पास 572.7 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
1948 में भारत में कुल विदेशी निवेश सिर्फ 256 करोड़ रुपये का था। उसके बाद भी 'लाइसेंस राज' के चलते यह बहुत ही पतली हालत में था। 1991 में उदारीकरण के बाद एफडीआई भारत की विकास यात्रा का बहुत बड़ा मूल मंत्र बन गया। वित्त वर्ष 2022 में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 83.6 बिलियन तक पहुंच गया, है जो कि इससे पिछले वित्त वर्ष में 82 बिलियन डॉलर का था।
भारतीय रेलवे (मार्ग की लंबाई)
स्वतंत्रता से पहले भी भारत में अंग्रेजों ने रेलवे लाइन बिछाने का खूब काम किया था। तब भी भारत में दुनिया के मुकाबले एक विशाल रेलवे नेटवर्क मौजूद था। लेकिन, तब भारतीय रेलवे मूल रूप से तीन तरह की लाइनों में विभाजित था- ब्रॉड गेज, मीटर गेज और नैरो गेज। 1947 में इन तीनों लाइनों की कुल लंबाई करीब 54,693 किलोमीटर बताई जाती है। जब से भारत आजाद हुआ है, तब से इन सभी लाइनों को मीटर गेज में परिवर्तित करने, उसके दोहरीकरण और विद्युतीकरण पर ही ज्यादा फोकस किया गया है। 2020 तक रेलवे का कुल मार्ग विस्तार 67,956 किलोमीटर तक हो चुका है। जबकि, इस साल 1 अप्रैल तक के आंकड़े के मुताबिक इनमें से 52,247 रेलवे मार्ग का विद्युतीकरण किया जा चुका है।
सड़कों का विस्तार
लेकिन, सड़क मार्ग में देश ने आजादी के समय के मुकाबले बहुत ही ज्यादा प्रगति की है। खासकर इसमें अटल बिहारी सरकार का बहुत बड़ा योगदान है, जिसकी वजह से भारत में आज सड़कों का महाजाल बिछता जा रहा है। जब देश आजाद हुआ था तो उस समय देश में सड़कों की लंबाई करीब 2 लाख किलोमीटर थी। 2022 में भारत में 62 लाख किलोमीटर से ज्यादा सड़कें बिछ चुकी हैं।
1947 में करीब 70% भारतीय बहुत गरीबी थे
भारत की आर्थिक प्रगति इतने तक ही सीमित नहीं है। 1947 में भारत में साक्षरता दर सिर्फ 12% थी, 2022 में यह 80% हो चुकी है। उस समय 70% लोग बहुत ही गरीब की श्रेणी में थे, आज 20% से भी कम आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। तब सिर्फ 5% कृषि के लिए सिंचाई के साधन थे, आज यह 55% है। 1947 में सिर्फ 1,400 मेगा वॉट बिजली उत्पादन होता था, आज यह 4 लाख मेगा वॉट से भी ज्यादा है और हम इसके निर्यात भी करने में सक्षम हैं। 1947 में हम भारत में साइकिल भी नहीं बना पाते थे। आज फाइटर जेट, टैंक, मिसाइलें और रॉकेट भी बना रहे हैं।
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डॉलर बनाम रुपया
भारत आज दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं तक पहुंचा है तो आर्थिक मोर्चे पर बदलाव को लेकर कोई दुविधा नहीं रह गई है। हम तीसरी दुनिया की देश से आगे बढ़कर इस स्थिति में पहुंचे हैं कि विश्व की कोई भी महाशक्ति भारत की ताकत को नजरअंदाज नहीं कर पाती। लेकिन, एक मोर्चे पर हम आजादी के समय जिस पायदान पर थे, उसमें लगातार पीछे हुए हैं। यह है अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का मूल्य। 1947 में एक अमेरिकी डॉलर 3.30 रुपये के बराबर था। लेकिन, 11 अगस्त, 2022 की तारीख में यह 79 रुपये से भी ज्यादा है। (तस्वीरें-सांकेतिक)