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यूपी में खुद को खर्च करने के बजाय इन राज्यों में राहुल-प्रियंका करें फोकस तो होगी क्लीन स्वीप

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नई दिल्ली- दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है, कांग्रेस फिलहाल इसी सोच के साथ अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय राजनीति में उतरी हैं और पूरी तरह से पूर्वांचल में पार्टी की उम्मीदें संवारने में जुटी हुई हैं। यूपी को लेकर राहुल गांधी कितने गंभीर हैं, यह इसी से पता चलता है कि उन्होंने एसपी-बीएसपी से गठबंधन की जगह एकला चलो की नीति पर डटे रहने का फैसला किया है। जबकि, बाकी कई राज्यों में उनकी पार्टी या तो तालमेल कर चुकी है या कई जगहों पर इसको लेकर प्रयास जारी हैं। हालांकि, कांग्रेस के रणनीतिकार एक चीज नजरअंदाज कर रहे हैं। अगर राहुल और प्रियंका यूपी के बदले उन राज्यों में ज्यादा फोकस करें, जहां पिछले दो सालों में पार्टी को अच्छी कामयाबी मिली है, तो कांग्रेस पूरी कहानी पलट सकती है। इसलिए, कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से ज्यादा खास 6 राज्यों में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

इन 6 राज्यों में है कांग्रेस को जिताने का दम

इन 6 राज्यों में है कांग्रेस को जिताने का दम

मौजूदा जितने भी चुनावी सर्वे और ओपिनियन पोल आए हैं, उसको देखने के बाद एक निष्कर्ष यह निकलता है कि अगर कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव में 120 से 130 सीटें भी जीत ले, तो वह केंद्र में सरकार बना सकती है। इसके लिए उसे यूपी की जरूरत नहीं है। जितनी ताकत अभी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में झोंक रहे हैं, उतना अगर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात और पंजाब में लगा दें तो देश की चुनावी फिजा बदली जा सकती है। इनमें से पहले तीनों राज्य तो वे हैं, जहां पिछले दिसंबर में ही कांग्रेस को बड़ी कामयाबी मिली है। सभी 6 राज्यों में कर्नाटक छोड़कर बाकी 5 में उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है।

दरअसल, राहुल गांधी पिछले एक दशक से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य तलाश रहे हैं। 2009 लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता भी मिली थी। पार्टी का न सिर्फ वोट शेयर डबल हो गया था, बल्कि 80 में से 21 सीटें जीतकर उसने लोगों को राय बदलने के लिए मजबूर कर दिया था। लेकिन, 5 साल बाद ही वे सफलताएं सिफर साबित हुईं। 2014 में कांग्रेस सिर्फ परिवार की 2 सीटें ही बचा पाई और उसका वोट शेयर भी गिरकर 62 साल में सबसे कम रह गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उसके लिए अच्छी खबर नहीं आई। इसलिए, इसबार भी उसके हक में वहां कोई बहुत बड़ा उलटफेर हो जाएगा, इसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती।

इन तीन राज्यों के अंकगणित में है कांग्रेस का भविष्य

इन तीन राज्यों के अंकगणित में है कांग्रेस का भविष्य

अगर हम राजस्थान की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव के परिणामों के अनुसार कांग्रेस राज्य की 25 में से 14 सीटें जीतने की स्थिति में है। इसके अलावा 5 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी 20,000 वोटों से भी कम वोट से आगे रही थी। यानि अगर राहुल और प्रियंका उत्तर प्रदेश की जगह राजस्थान पर ध्यान दें तो राज्य की 25 में से 19 सीटें उसके खाते में आ सकती है। जबकि, 2014 में यहां उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी तरह मध्य प्रदेश की 29 में 13 सीटों पर कांग्रेस का दबदबा दिख रहा है। यहां की 3 और सीटों पर भी बीजेपी 20,000 से कम ही वोटों से आगे रही थी। मतलब, पार्टी के लिए यहां भी 29 में से 16 सीटें जीतने की संभावना है। जबकि, छ्त्तीसगढ़ में तो पार्टी की 11 में से 9 सीटों पर जीत की संभावना नजर आ रही है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें हैं और इनपर ध्यान देकर पार्टी 44 सीट तक अपने कब्जे में कर सकती है, जितना पिछले चुनाव में उसको पूरे देश में मिला था।

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इन तीन राज्यों से होकर गुजर सकता है दिल्ली का रास्ता

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कांग्रेस ने पंजाब और गुजरात विधानसभा चुनाव में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। कर्नाटक में तो जेडीएस से तालमेल ने चुनावी अंकगणित एकतरफा उसके पक्ष में कर रखा है। इसी तरह गुजरात में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। लेकिन, विधानसभा चुनाव में उसे मिले वोट शेयर के हिसाब से वह 7 सीट तक आसानी से जीत सकती है। यहां भी 3 सीटों पर वह भाजपा से 20 हजार से कम वोटों से ही पीछे रही थी। यानि पार्टी मेहनत करे तो उसके खाते में राज्य की 26 में से 10 सीट तक आने की संभावना बन सकती है। जबकि, पंजाब में वह 13 में से 9 सीट तक हासिल कर सकती है।

कर्नाटक की तस्वीर तो और भी साफ है। अगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस को मिले वोट शेयर को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 56% तक पहुंच जाता है, जो बीजेपी के वोट शेयर से 20% ज्यादा है। इस लिहाज से कर्नाटक की 28 सीटों में से कांग्रेस-जेडीएस को 22 सीट तक मिल सकती हैं।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात और पंजाब की कुल 132 सीटों का हिसाब लगाएं तो कांग्रेस आज 68 सीटें का माद्दा रखती है, जबकि 2014 में उसे यहां सिर्फ 15 पर ही कामयाबी मिली थी।

बची हुई लड़ाई यहां जीत सकती है कांग्रेस

बची हुई लड़ाई यहां जीत सकती है कांग्रेस

सर्वे कह रहे हैं कि झारखंड और असम की कुल 28 सीटों में से कांग्रेस के लिए 10 से 15 सीटों पर जीतने की संभावना है। यानि अबतक जिन 160 सीटों की बात हुई है, उनमें से पार्टी 75 से 80 सीट तक प्राप्त कर सकती है।

इसके अलावा देश में कुल 383 लोकसभा सीटें बच जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र की 48 और केरल की 20 सीटें भी शामिल हैं। हालिया सर्वे में यहां भी पार्टी को 7 से 9 सीटें दी गई हैं, जो कि पिछली बार से ज्यादा हैं। तमिलनाडु में उसका डीएमके के साथ गठबंधन हुआ है, जहां की 39 सीटें काफी निर्णायक हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर-पूर्व में भी पार्टी का अपना एक जनाधार रहा है। बिहार में अगर आरजेडी से तालमेल हुआ तो उसे वहां भी 1 से 2 सीटें मिल सकती हैं।

यानि कांग्रेस के सामने इन 383 में से सिर्फ 70 सीटों पर ही पूरा जोर लगाने की जरूरत है। अगर, राहुल इनमें से 40-45 सीटों को भी जीत में तब्दील कर लिए, तो कांग्रेस को उसके लिए जरूरी 120 का जादूई आंकड़ा जुटाना ज्यादा मुश्किल नहीं लगता है।

सच्चाई ये है कि मौजूदा चुनाव में कांग्रेस को 543 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 230 (160+70) सीटों पर फोकस रहने का आवश्यकता है और इनमें उत्तर प्रदेश से जितनी भी सीटें मिलती हैं, वो बोनस का काम करेंगी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश से थोड़ा ध्यान हटाकर अगर इन 230 सीटों पर जोर लगाया जाय, तो उसके 120-130 सांसद गांधी परिवार के सदस्य को फिर से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा सकते हैं। क्योंकि, गठबंधन सरकार की अगुवाई के लिए राहुल गांधी को बस इतनी ही सीटें चाहिए।

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English summary
if Rahul and Priyanka Focus on these states then chances will be for a Clean Sweep
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