मोदी ना बन सके पीएम, तो माया-अखिलेश के बजाय ममता ही तय करेंगीं किंग
नई दिल्ली- अंतिम दौर के चुनाव से पहले ही कांग्रेस इस असमंजस में है कि नतीजे अगर मोदी के खिलाफ रहे, तो उसका रोल क्या रहेगा। कभी वह मोदी को हटाने के लिए किसी का भी समर्थन देने की बात कहती है, तो कभी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी को मौका मिलने की दुहाई देती है। उधर मायावती ने इधर-उधर घुमाने के बजाय प्रधानमंत्री बनने के लिए सीधे दावेदारी ठोक दी है। लेकिन, इन सभी कयासों और अटकलों के बीच में एक संभावना पर चर्चा छूट रही है। अगर, मोदी को किसी भी तरह से बहुमत नहीं मिला तो उस स्थिति में किसके प्रधानमंत्री बनने के चांस ज्यादा हैं। अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तो फैसले तक पहुंचने में ममता बनर्जी सबसे अहम किरदार साबित हो सकती हैं।
एनडीए या उसकी अगुवाई में सरकार
23 तारीख को पहली संभावना ये बन सकती है नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अगुवाई वाले एनडीए (NDA) को पूर्ण बहुमत मिल जाए। ये तभी होगा जब भाजपा (BJP) की अपनी 240-250 सीटें आ जाएं और उसके सहयोगियों को भी 25 से 30 सीटें मिलें। दूसरी संभावना ये हो सकती है कि एनडीए (NDA)को 225-240 मिले और उसे अपने गठबंधन के बाहर से एक-दो पार्टियों की जुगाड़ करनी पड़े। इसके लिए तेलंगाना (Telangana) के सीएम के चंद्रशेखर राव (KCR) की टीआरएस (TRS), ओडिशा के नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) का बीजू जनता दल (BJD) और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) की वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) पर उसकी नजर हो सकती है।
गैर-एनडीए सरकार
तीसरी स्थिति ये हो सकती है कि भाजपा (BJP) के पास 200 से 225 सीटों पर हों। तब एनडीए को अपने सहयोगी दलों से आगे भी जाना होगा और वहीं से उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। और यहीं से ऐसी संभावनाएं पैदा लेती हैं, जिसमें मायावती (Mayawati) को भी लगता है कि वह देश की पहली दलित (Dalit) प्रधानमंत्री बन सकती हैं। तथ्य यह भी है कि अभी जितने भी गैर-एनडीए दल, कांग्रेस या दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियां जिस कवायद में लगी हुई हैं, वह ऐसी संभावना मानकर ही अपनी-अपनी गोटियां सेट कर रही हैं।
थर्ड सिंगल लार्जेस्ट पार्टी की सरकार
चौथी संभावना यह है कि भाजपा 180 से 200 सीटों पर सिमट जाए। यहां उसके लिए एनडीए के सहयोगियों के अलावा 50 से अधिक सीटें जुटाना आसान नहीं होगा। यहीं पर इस चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू सामने आ सकता है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी (Single largest party) का रोल सबसे महत्वपूर्ण हो जाए और वही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी दावा ठोक दे।
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थर्ड सिंगल लार्जेस्ट पार्टी कौन?
अब सवाल उठता है कि भाजपा और कांग्रेस के बाद किस पार्टी के तीसरे नंबर रहने की संभावना ज्यादा है। इस बार 39 सीटों वाले तमिलनाडु (Tamilnadu) की पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी अन्नाद्रमुक (AIADMK) और द्रमुक (DMK) इस बार सिर्फ 20-20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही हैं। लिहाजा इनका दावा कमजोर है। आंध्र प्रदेश में 25 और तेलंगाना (Telangana) में 17 लोकसभा सीटें हैं। आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) और तेलुगू देशम (TDP) के बीच लड़ाई है। तेलंगाना में केसीआर (KCR) की पार्टी सारी सीटें जीत भी ले तो भी उसका दावा भी कमजोर ही रहेगा। बिहार में 40 सीटें हैं और वहां जनता दल (यू) (JDU) 17 सीटों पर ही लड़ रहा है। इसी तरह से कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण लालू प्रसाद यादव का राजद (RDD) भी 20 सीटों पर ही लड़ रहा है। लिहाजा इनकी संभावनाएं भी कम ही रह जाती हैं। सर्वाधिक 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा (SP)और बसपा (BSP) का गठबंधन है और दोनों 37 एवं 38 सीटों पर लड़ रही हैं। वास्तविकता यह है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस के बाद ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ही ऐसी पार्टी है, जो गंभीरता से सबसे ज्यादा यानी 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बेशक सपा (SP), बसपा (BSP) या अन्य दलों ने दूसरे राज्यों में भी उम्मीदवार खड़े किए हैं, लेकिन वहां उनकी संभावनाएं बिल्कुल नहीं लगतीं। ऐसे में तीसरे की दौड़ में तृणमूल (TMC), बसपा (BSP) और सपा (SP)ही सबसे आगे हैं।
ममता की लग सकती है लॉटरी
2014 के चुनाव में भी ममता बनर्जी(Mamta Banerjee) की टीएमसी (TMC) पश्चिम बंगाल (West Bengal) की 42 सीटों पर अकेले लड़कर 34 सीटें जीती थी। अगर इस बार बीजेपी भी दीदी के गढ़ में सेंध नहीं लगा पाई, तो टीएमसी (TMC) का परफॉर्मेंस पिछली बार की तरह या उससे बेहतर होने की भी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इस बार बीजेपी (BJP) जितना जोर बंगाल (West Bengal)में लगा रही है, उससे भी लगता है कि वह यूपी में सीटें घटने की संभावित आशंका की भरपाई बंगाल से ही करने की कोशिशों में लगी है। ऐसे में एनडीए (NDA) को अगर बहुमत नहीं मिलता, तो इस बात की भी पूरी संभावना है कि बंगाल में भी उसकी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। और बंगाल में यदि इस बार मोदी नहीं चले, तो दीदी का मैजिक एक बार फिर चलना लगभग तय है। ऐसे में अगर ममता दीदी खुद को किंगमेकर बनने के बजाय किंग बनने की शर्त रख दें, तो मोदी-विरोधी पार्टियों के पास ज्यादा विकल्प भी नहीं होगा।
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