IBC 2018: बैंक खातों के साथ 'आधार' को जोड़ना बैंकिंग उद्योग के लिए वरदान
नई दिल्ली। सेंटर फॉर इकॉनोमिक पॉलिसी एंड रिसर्च (सीईपीआर) और नीति आयोग द्वारा आयोजित इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव में ना केवल निजी बैंकिग, इंडस्ट्रियल बैंकिंग पर जोर दिया जाएगा, बल्कि बैंक खातों को आधार से जोड़कर उसे सुरक्षित बनाने पर भी जोर दिया जाएगा। बैंकिंग क्षेत्र में अन्य समस्याओं से इतर, आधार से बैंक खातों को जोड़ने को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई थी। सरकार का मानना है कि बैंक खातों के साथ आधार को जोड़ना बैंकिंग उद्योग के लिए वरदान साबित हुआ है। इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव में इन तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी।
ये भी पढ़ें: इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव: बैंकों के लिए क्या बेहतर, निजीकरण या विलय?
इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव 2018 के चीफ एडवाइजर और अर्थशास्त्री गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने वन इंडिया से बातचीत की। उन्होंने बताया, 'आधार वास्तव में एकल पहचान बना रहा है। पहले की बात करें जब एक कंपनी के 200 से अधिक बैंक खाते होते थे। ये सब अभी भी हो रहा था। कोई व्यक्ति ही नहीं बल्कि कार्पोरेट भी एक से अधिक बैंक खाते अलग-अलग बैंकों में रखते थे और उन सभी का अलग-अलग पता और पहचान होती थी। ये बैंक खाते एक-दूसरे से लिंक्ड नहीं थे। इसलिए पैसे का हेर-फेर एक खाते से दूसरे खाते में होता रहता था। एक प्रकार से कालेधन को बढ़ावा देने का काम बिना रोक-टोक होता था। लेकिन जब से वर्तमान सरकार ने बैंक खातों को आधार से जोड़ना शुरू किया, बिना खाता लिंक किए एक से अधिक बैंक अकाउंट खोलना असंभव हो गया।'
जबकि आधार के कारण बैंकिंग द्वारा भारत सरकार को अपनी लोककल्याणकारी योजनाओं के तहत राशि को लोगों तक पहुंचाने में मदद मिली है। इसके पहले ब़ड़े पैमाने पर उस राशि के लोगों तक पहुंचाने में दिक्कतें आती थी, अब आधार के कारण इनसे निजात पाई जा रही है। डीबीटी के जरिए सरकारी योजनाओं में होने वाली गड़बड़ी पर रोक लगी है।
वहीं, सरकारी सूत्रों का कहना है कि आधार को जन धन खाते से जोड़ा गया है ताकि वित्तीय भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। इससे सब्सिडी बचाने में भी काफी मदद मिली है। डीबीटी के कारण सरकार ने 29 करोड़ रु केवल उज्जवला योजना में बचाए हैं। वहीं आधार के कारण एक से अधिक बैंक खाते रखने वाले व्यक्ति या कार्पोरेट पर नजर रखना संभव हो सका है। सरकार अब इन खातों को चेक सकती है। आधार से बैंक खातों को जोड़ने के कारण बड़े पैमाने पर पैसे का हेरफेर रुका है। सरकार ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की है और 3 लाख से अधिक कंपनियों को रजिस्ट्रेशन खत्म कर दिया है। इस कारण मनी लॉन्ड्रिंग और कालेधन पर काफी हद तक लगाम लगी है।
ये भी पढ़ें: इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव: बैंकों के लिए क्या बेहतर, निजीकरण या विलय?