जानिए, अब तक सुप्रीम कोर्ट पहुंची कितनी सरकारें हो चुकी है सत्ता से बाहर!
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में बीजेपी और एनसीपी गठबंधन की सरकार शनिवार सुबह, 23 नवंबर को अचानक शपथ लेकर सत्ता पर काबिज हो गई। दोनों दलों को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी आगामी 30 नवंबर को बहुमत साबित करने का समय दिया है, जिससे सरकार बनाने की ताक में खड़ी शिनसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने संविधान उल्लंघन का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट चली गई हैं।
बीजेपी और एनसीपी के गठजोड़ वाली महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन ने दुहाई दी है कि महाराष्ट्र मौजूदा सरकार गठन में राज्यपाल द्वारा संविधान के आर्टिकल 356 का उल्लंघन किया गया है। हालांकि यह पहला मामला नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट में राज्यों में राष्ट्रपति शासन को लेकर अपील दायर की गई है।
अभी हाल में वर्ष 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बाद जब किसी दल को सरकार बनाने लायक जनादेश नहीं मिला तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरी बीजेपी को कर्नाटक राज्यपाल ने सरकार बनाने का न्यौता दिया और फ्लोर टेस्ट के लिए एक महीने का वक्त दिया गया। कांग्रेस और जेडीस ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने आधी रात में सुनवाई करते हुए बीजेपी को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया।
बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में कर्नाटक में बनी सरकार प्लोर टेस्ट में फेल हो गई और बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा और कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन सरकार कर्नाटक में बन गई। यह अलग बात है कि 14 महीने के अंतराल में ही कांग्रेस और जेडीएस सरकार गिर गई, क्योंकि उसके 17 विधायक बागी हो गए।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र में बीजेपी और एनसीपी के सरकार के खिलाफ कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना द्वारा दायर याचिका पर दूसरे दिन सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिन की सुनवाई के बाद अब महाराष्ट्र के पूरे घटनाक्रम को विस्तार से देखेगी। जैसे कि देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने राज्यपाल से मिलने का समय कब मांगा, कब राज्यपाल से मिले और कब दावा पेश किया और दावा पेश करने वाला पत्र कहां है?
सुप्रीम कोर्ट इस पर भी जिरह करेगी कि क्या राज्यपाल ने दावा पेश करने वाले पत्र का संवैधानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया और संतुष्ट होने पर केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की थी? चूंकि सुप्रीम कोर्ट के बोम्बई केस और अन्य संविधान पीठ के फैसले के मुताबिक सरकार बनने का मौका देना राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या रात में कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की और देर रात राष्ट्रपति को जगाकर दस्तखत हुए। सुप्रीम कोर्ट यह देखेगी कि क्या राज्यपाल ने संवैधानिक प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया कि नहीं? हालांकि आर्टिकल 356 में प्रावधानित एक अधिकार बीजेपी को सुप्रीम कोर्ट में जीत दिला सकती है।
महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए संविधान के आर्टिकल 356 में प्रावधानित एक विशेष अधिकार का इस्तेमाल किया गया है, जो सीधे प्रधानमंत्री के पास होता है। यानी आर्टिकल 356 में किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए प्रधानमंत्री को एक विशेष अधिकार हासिल है, प्रधानमंत्री मोदी ने उसी अधिकार को इस्तेमाल करके राष्ट्रपति को सीधे महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया है।
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जब हटाई थी यूपी की कल्याण सिंह सरकार
वर्ष 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने जगदंबिका पाल सरकार को बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया। कल्याण सिंह ने 225 हासिल हुआ जबकि जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले। इस तरह जगदंबिका पाल की एक दिन पुरानी सरकार विधानसभा में गिर गई।
झारखंड में मुंडा को बहुमत और शिबू सोरेन ने ली शपथ!
वर्ष 2005 में भी सुप्रीम कोर्ट ने लगभग ऐसा ही मामला देखा गया था जब एनडीए के अर्जुन मुंडा के बहुमत का दावा करने के बावजूद जेएमएम के शिबू सोरेन को शपथ दिला दी गई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और कोर्ट ने को मुख्यमंत्री शिबू सोरेन कोफ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया और अंततः शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उत्तराखंड में बहाल हुई कांग्रेसी सरकार
वर्ष 2016 में हरीश रावत के नेतृत्व में हरीश रावत सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया। सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हरीष रावत ने फिजिकल डिविजन के जरिए सदन में अपना बहुमत साबित किया। उत्तराखंड विधानसभा में 10 मई 2016 को हुए फ्लोर टेस्ट के परिणाम के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2016 को पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार को बहाल करने के आदेश दिए हैं।
गोवा में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर थी फ्लोर टेस्ट की मांग!
मार्च 2017 में कांग्रेस द्वारा बहुमत और सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने के बावजूद मनोहर पर्रिकर ने शपथ ली। पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन का दावा किया। पर्रिक्कर से बहुमत साबित होने तक कोई भी नीतिगत फैसला नहीं लेने को कहा गया। कोर्ट ने यह कहते हुए फ्लोर टेस्ट की मांग खारिज कर दी कि जब कोई पार्टी बहुमत साबित करने की स्थिति में नहीं होती है, तभी इसका सहारा लिया जाता है।
कर्नाटक में येदियुरप्पा को सदन में इस्तीफा देना पड़ गया
जुलाई 2018 में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई। कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव पश्चात गठबंधन कर लिया। इसके तुरंत बाद राज्यपाल ने बीजेपी के येदियुरप्पा को शपथ दिलाई और बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया। कांग्रेस और जेडीएस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई। सुप्रीम कोर्ट ने 3 दिन में फ्लोर टेस्ट कराने को कहा। सदन में बहुमत न मिलता देख येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा।