कोरोना वैक्सीन : कैसे भारत की वैक्सीन नीति बदलने से दर्जनों देशों में मच गया है हाहाकार ? जानिए
नई दिल्ली, 21 मई: दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता देश भारत ने अपनी वैक्सीन नीति बदली तो दुनिया के दर्जनों देशों में त्राहिमाम मच गया है। असल में भारत को अपनी घरेलू जरूरतों के मद्देनजर वैक्सीन निर्यात पर लगाम लगानी पड़ी है। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ी कोवैक्स स्कीम के तहत जो देश भारत से मिलने वाली वैक्सीन के भरोसे थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अब वह अपनी आबादी को सुरक्षित कैसे करें। कई देशों में तो यह दुआ की जा रही है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर जल्द काबू में आए ताकि भारत दुनिया के बाकी गरीब देशों के लाचार लोगों को भी इस संकट से उबारने के लिए कुछ कर सके। भारत की स्थिति को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ भी अमेरिका और यूरोप के देशों से बच्चों से पहले उन गरीब देशों के व्यस्क नागरिकों को कोरोना संकट से उबारने की अपील कर चुके हैं।
'बिना वैक्सीन के तो जैसे हमलोग मौत का इंतजार कर रहे हैं....'
भारत से मिलने वाली कोविड वैक्सीन पर दुनिया के गई गरीब देश किस कदर निर्भर थे, इसकी एक बानगी केन्या की हालातों से शुरू करते हैं। टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां जिन लोगों को भारतीय वैक्सीन की एक डोज लग चुकी है, वह अब पूरी तरह से मायूस हो चुके हैं। उन्हें लगता है कि अगर भारत ने वैक्सीन की सप्लाई नहीं शुरू की तो उनका बचना मुश्किल हो जाएगा। नैरोबी में टैक्सी ड्राइवर जॉन ओमोंडी को पिछले महीने कोविड वैक्सीन की पहली डोज लगी थी। अब 59 साल के ओमोंडी हताश हो रहे हैं। उन्होंने कहा है, 'वह बहुत ही अच्छा दिन था, जब मुझे वैक्सीन लगी। मुझे इसकी जरूरत थी, क्योंकि मेरी उम्र और मेरे काम के चलते यह जरूरी है।......जून में मुझे दूसरी डोज लगने वाली थी, लेकिन अब ज्यादा वैक्सीन नहीं है और मुझे चिंता है कि मैं कम सुरक्षित हूं, खासकर इतने सारे वेरिएंट की वजह से।' उन्होंने दिल को झकझोर देने वाली बात ये कहा- 'बिना वैक्सीन के तो ऐसा ही है, जसे कि हमलोग मौत का इंतजार कर रहे हैं....'
भारत में हालात सुधरने की उम्मीद लगाए बैठे हैं ये देश
5 करोड़ की आबादी वाले पूर्वी अफ्रीकी देश केन्या उन दर्जनों विकासशील देशों में शामिल है, जो भारत की वैक्सीन नीति बदलने के चलते हिल चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े वैश्विक वैक्सीनेशन प्रोग्राम कोवैक्स के तहत उसे भारत से कोविशील्ड की 10 लाख डोज मिली थी। लेकिन, भारत से निर्यात रुकने के चलते उसे जून में मिलने वाली 30 लाख डोज पर सवालिया निशान लग चुका है। केन्या के स्वास्थ्य मंत्रालय के ऐक्टिंग डायरेक्टर जनरल पैट्रिक एमोथ का कहना है, 'अगर हमें वैक्सीन मिल गई होती तो हम टीकाकरण का दूसरा फेज शुरू करते। लेकिन, सच्चाई है कि जब हमें उम्मीद थी तो हमारे पास वैक्सीन नहीं है।.....हमें भरोसा है कि भारत में हालात जल्द सामान्य हो जाएंगे......लेकिन, साथ ही हम फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन के लिए काम कर रहे हैं।'
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जून तक 19 करोड़ डोज कम पड़ जाएगी- यूनिसेफ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हाल ही में दुनिया के अमीर देशों को गरीब देशों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के प्रति सचेत किया था और उन सबसे वैक्सीन नीति पर मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखने की भी गुजारिश की थी। क्योंकि, केन्या से लेकर घाना तक और बांग्लादेश से लेकर इंडोनेशिया तक सारे विकासशील देश कोवैक्स कार्यक्रम पर ही निर्भर हैं। लेकिन, उनके वैक्सीनेशन प्रोग्राम में किसी तरह की रुकावट या दूसरी डोज में जरूरत से ज्यादा देरी पूरे सुरक्षा कवच को तोड़ सकता है। कोविशील्ड सप्लाई करने वाली सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई ) को मार्च में निर्यात बंद करना पड़ा था और भारत सरकार के अधिकारियों के मुताबिक कम से कम अक्टूबर तक तो यह सिलसिला फिर से शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही। संयुक्त राष्ट्र की बच्चों से जुड़ी एजेंसी यूनिसेफ ही कोवैक्स स्कीम का कोऑर्डिनेटर है, जिसका कहना है कि इस वजह से जून तक 19 करोड़ डोज कम पड़ जाएगी। ऐसे में जिस तरह से भारत समेत नेपाल से लेकर श्रीलंका और मालदीव जैसे उसके पड़ोसी देशों से लेकर अर्जेंटीना और ब्राजील तक कोरोना विस्फोट हुआ है, वह कई देशों को पूरी तरह से तबाह कर सकता है।
इंडोनेशिया ने कहा- हम नर्वस हो रहे हैं
सिर्फ अफ्रीकी देश ही नहीं, इंडोनेशिया,फिलीपींस, वियतनाम और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देश भी भारतीय वैक्सीन नीति में परिवर्तन के चलते प्रभावित हुए हैं। इंडोनेशिया को अभी तक 64 लाख डोज ही मिली है, जो कि कोवैक्स के तहत उसे मिलने वाले आवंटन के वादे का आधा है। यूनिवर्सिटी ऑफ इंडोनेशिया के एक एपिडेमियोलॉजिस्ट पांडु रियोनो ने कहा है कि 'हमारे वैक्सीनेशन टारगेट पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा है और इसमें देरी हो सकती है। हम नई लहरों की आशंका से नर्वस हो रहे हैं।' लाचार होकर उसने चीन की ओर मुंह ताकना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश को तो अपनी पहली डोज को भी रोकना पड़ गया था। इसे भारत से हर महीने 50 लाख डोज मिलने की उम्मीद थी, जबकि अब तक कुल 70 लाख डोज ही मिल पाई है। वैसे भारत से इसे गिफ्ट के तौर पर भी कोविशील्ड की 32 लाख डोज मिली है। लाचार होकर उसने रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी को इमरजेंसी अप्रूवल दिया है और पिछल हफ्ते चीन से 5 लाख डोज मंगवाई है।
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अफ्रीका में भी भारत की वैक्सीन नीति बदलने से हड़कंप
वैक्सीन के मामले में अफ्रीका इस समय सबसे पिछड़ा महादेश नजर आ रहा है। क्योंकि इसके 54 देशों में से ज्यादातर कोवैक्स स्कीम के ही भरोसे बैठे हैं। इस इलाके में दुनिया की 14 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन अभी तक दुनिया में जितने लोगों को वैक्सीन लग पाई है, उसमें यहां का हिस्सा महज 1 फीसदी है। इस साल के अंत तक इन देशों की 30 से 35 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगा देने की योजना थी और बाकी अगले दो-तीन साल में। लेकिन, वैक्सीन की किल्लत ने इस मुहिम पर ब्रेक लगा दिया है। उदाहरण के लिए इथियोपिया अपनी 11.5 करोड़ आबादी में से 2.3 करोड़ को इसी साल वैक्सीन लगाने की तैयारी में था, लेकिन उसे कोवैक्स स्कीम से 90 लाख की जगह सिर्फ 22 लाख डोज ही उपलब्ध हो सकी है। यहां के कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम के सचिव मिसेरेट जेलालेम ने भारत की ओर इशारा कर कहा है, 'हमारे साथ दिक्कत ये हुई कि पहले तो कम संख्या में वैक्सीन मिल पाई और फिर उसके बाद बैन लग गया।.....हमें अपने लोगों की सुरक्षा के लिए दर-दर भटकने की मजबूरी है।' शायद भारत की वजह से कोवैक्स स्कीन की हालत पतली होने की वजह से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ अमीर देशों से गुहार लगा रहा है कि बच्चों को वैक्सीन की जल्दबाजी न करें, क्योंकि पहले पूरी मानवता की रक्षा जरूरी है। उनकी दलील है कि आंकड़े बताते हैं कि बच्चों पर अभी भी व्यस्कों के मुकाबले कोरोना वायरस का खतरा कम है।