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हिन्दी प्रेमियों को पीएमओ से मिला अंग्रेजी में जवाब

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नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। शुक्रवार को जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन के धरना स्थल पर प्रधानमंत्री मोदी के राज में भारतीय भाषाओं की शर्मनाक उपेक्षा से आहत आंदोलनकारियों ने धिक्कार सभा का आयोजन किया।

Hindi is getting a raw deal from the PMO

यह आयोजन 20 अप्रैल 2015 को देश से अंग्रेजी के कलंक को दूर करते हुए भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग को लेकर 2 साल से धरना दे रहे भारतीय भाषा आंदोलन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दिये गये ज्ञापन की प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा भेजी गयी पावती अंग्रेजी भाषा में दिये जाने से आक्रोशित भाषा आंदोलनकारियों ने किया।

कड़ी निंदा की

इस धिक्कार सभा का संचालन करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी पर देश की जनता को दिये गये अपने वचनों की शर्मनाक उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए कड़ी निंदा की।

धिक्कार दिवस की जरूरत

रावत ने धिक्कार सभा की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को आश्वासन दिया था कि अगर वे सत्तासीन हुए तो देश में अंग्रेजी की गुलामी के कलंक को मिटा कर भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देंगे और देश में गौ हत्या के प्रतीक तथाकथित गुलाबी क्रांति के कलंक को तत्काल दूर करेंगे।

परन्तु सत्तासीन होते ही प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही देश विदेश के विदेशी दौरों व विदेशी प्रतिनिधियों सहित संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय भाषा हिंदी में संबोधित किया हो परन्तु देश में शासन प्रशासन में काबिज अंग्रेजी की गुलामी को दूर करने के लिए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने का ईमानदारी से काम करना तो रहा दूर खुद प्रधानमंत्री कार्यालय में अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग करने वाला ज्ञापन की पावती भी अंग्रेजी में देने की हिमाकत की जा रही है।

अंग्रेजी की गुलामी

गौरतलब है कि भारतीय भाषा आंदोलन ने 21 अप्रैल 2013 को भाषा पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत के नेतृत्व में जंतर मंतर पर देश से अंग्रेजी की गुलामी को हटाते हुए भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए विगत दो साल से सतत धरना दे रहे है।

इसमें प्रमुख मांग संघ लोक सेवा आयोग व न्यायालय से अंग्रेजी की अनिवार्यता का कलंक हटा कर भारतीय भाषा लागू करने की मांग की जा रही है। इस दौरान भारतीय भाषा आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन व नरेन्द्र मोदी दोनों को इस आशय का ज्ञापन दिया परन्तु दोनों प्रधानमंत्री ने इस मामले में अपना मुंह खोलने की हिम्मत तक नहीं की।

संघ लोकसेवा आयोग

इससे पहले भारतीय भाषा आंदोलन ने 1988 से संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता को हटा कर भारतीय भाषा लागू करने की मांग को लेकर भारतीय भाषा आंदोलन ने धरना दिया था। इस धरने में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह की सरपरस्ती में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह, व चतुरानंद मिश्र सहित 4 दर्जन देश के वरिष्ठ नेता व सम्पादक इस धरना में सम्मलित हुए।

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English summary
Hindi is getting a raw deal from the PMO. To protest against the condition of Hindi in government offices, a dharna was organised in capital.
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