गुजरात-हिमाचल में जीत के बाद ऐसे बदलेगी मोदी की रणनीति
नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा में आशा के विपरीत आए परिणाम के चलते अब इस बात की संभावनाएं हैं कि सुधारों की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब नरम पड़ सकते हैं। हालांकि भाजपा हिमाचल में जीत गई लेकिन गुजरात में 150 सीटों का बड़ा लक्ष्य रखा था। अब जबकि पार्टी लक्ष्य से कम सीटें जीत रही है तो मोदी अपनी सुधार रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हो सकते हैं। वो अतिवादी सुधारवादी एजेंडा को छोड़ सकते हैं और अपनी शेष अवधि के दौरान लोकलुभावन योजनाएं लॉन्च कर सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए जीएसटी भी भाजपा के लिए बहुत जोखिम भरा होगा ऐसे में इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि मोदी, हानिकारक सुधारों को आगे लेकर चलेंगे। संभावना है कि मोदी खुद को 2019 तक सुधारों से दूर रखेंगे लेकिन उम्मीद है कि वो लोकलुभावन कदम उठाएंगे जो वोट हासिल करने में और मदद करेंगे।
बार्कलेज इंडिया ने कहा था...
बार्कलेज इंडिया ने अगस्त में कहा था कि मोदी सरकार की ओर से उनके शेष कार्यकाल में कोई बड़ा सुधार करने की संभावना नहीं है। कहा गया था कि सरकार अपनी उपलब्धियों को सार्वजनिक करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
अधिक ध्यान प्रशासनिक पहल पर होगा
बार्कलेज इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने एक नोट में कहा था कि 2019 के चुनावों के चलते नए मैदान पर कब्जा करने की बजाए, हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आर्थिक सुधारों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सफलता को मजबूत करने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। अधिक ध्यान प्रशासनिक पहल पर होगा ना कि व्यापक आर्थिक मोर्चे पर नए विधायी सुधारों पर।
सुधारवादी छवि' के बजाय 'राष्ट्रवादी' छवि!
सान्याल ने अपील की थी कि सान्याल ने कहा था कि 2014 के बाद से उनके आक्रामक सुधारों के बावजूद, 2019 के चुनावों के करीब, मोदी अपनी 'सुधारवादी छवि' के बजाय भाजपा के 'राष्ट्रवादी' साख को बढ़ावा देने के लिए विचार कर सकते हैं।
सान्याल की बातें ठोस!
गुजरात में बीजेपी के कम प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद, संन्याल का विश्लेषण ठोस नजर आ रहा है। जीएसटी संकट अभी भी खत्म नहीं हुआ है, मोदी को नई विघटनकारी सुधारों को शुरू करने की बजाय अपनी स्थिति को मजबूत करने पर अपनी ऊर्जा लगाने की उम्मीद है।
राहुल हो जाएंगे आक्रामक
गुजरात में कांग्रेस से मिली कठिन लड़ाई के बाद, भाजपा के विरोधियों द्वारा जाति आधारित राजनीति देश के अन्य हिस्सों में बढ़ सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अधिक आक्रामक हो सकते हैं।