भारत-चीन तनाव के बीच अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती गांवों के ज़मीनी हालात क्या हैं?: ग्राउंड रिपोर्ट
बीते कुछ समय से अरुणाचल सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा है. अरुणाचल से कम ही ख़बरें आती हैं. बीबीसी ने वहां जाकर ये जानने की कोशिश की कि बदले हालात में बॉर्डर के इलाके किस हाल में हैं.
अरुणाचल प्रदेश उत्तर पूर्व में भारतीय सीमा का आख़िरी राज्य है. राज्य की लगभग एक हज़ार किलोमीटर की सीमा चीन की सरहद से मिलती है. इसके अधिकांश सीमावर्ती क्षेत्रों पर चीन अपना दावा करता रहा है और इसे 'दक्षिण तिब्बत' कहता है.
हालांकि, सीमा विवाद के बावजूद ख़ूबसूरत पहाड़ों, नदियों और जंगलों वाला अरुणाचल प्रदेश एक शांतिपूर्ण राज्य रहा है, लेकिन पिछले कुछ समय से यहाँ हालात बदले हैं और सीमावर्ती इलाक़ों में तनाव बढ़ा है.
बीते साल लद्दाख़ में हुए भारत-चीन टकराव का असर 17 लाख की आबादी वाले अरुणाचल प्रदेश में भी दिखा है. यहां की कम ही ख़बरें जानने को मिल पाती हैं.
इनर लाइन परमिट की होती है ज़रूरत
अरुणाचल प्रदेश है तो भारत का राज्य, लेकिन यहां आप सीधे प्रवेश नहीं कर सकते. अरुणाचल प्रदेश जाने से पहले इनर लाइन परमिट लेनी होती है. इनर लाइन परमिट एक ख़ास दस्तावेज़ है जो अरुणाचल में बाहर से आने वाले लोगों को (भारतीय और ग़ैर-भारतीय सभी को) जारी किया जाता है.
इनर लाइन परमिट मिलने के बाद हम सीधा पहुँचे अरुणाचल प्रदेश. इस राज्य की आबादी ज़्यादा नहीं है तो गाँव भी छोटे-छोटे और दूर-दूर बसे हैं. चीन की सीमा के पास के गाँव तक पहुँचने के लिए दुर्गम रास्तों से गुज़रना होता है. हम ऐसे ही एक गाँव की तरफ़ बढ़ रहे थे.
बीच रास्ते में हौलियंग क़स्बा पड़ता है. ये कस्बा अन्जाव ज़िले का मुख्यालय है. चीन की सीमा से कुछ ही दूरी पर स्थित इस कस्बे में भारतीय सेना की बड़ी छावनी है. सफ़र के दूसरे पड़ाव में हम चीन की सीमा के और पास वालंग कस्बे पहुँचे. यहाँ हमें रात में ठहरना था.
यहाँ से सीमावर्ती इलाके के काहू और किब़तू गांव कुछ ही दूर पर हैं. ये पूरा इलाका सेना के अधिकार क्षेत्र में है. यहाँ का वॉर मेमोरियल वालंग को ख़ास बनाता है. दरअसल, 1962 में चीन ने बड़े क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था. युद्ध में चीनी फौज़ियों से इस क्षेत्र की रक्षा करते हुए हज़ारों सैनिकों ने जान गंवाई थी, उन्हीं की याद में यहाँ वॉर मेमोरियल बनाया गया है.
ये भी पढ़ें:- इमरान ख़ान के चीन दौरे से पहले ग्लोबल टाइम्स ने भारत के मुसलमानों का मुद्दा छेड़ा
अरुणाचल प्रदेश का आख़िरी सरहदी गांव
वालंग में रात बिताने के बाद अगली सुबह हम अरुणाचल प्रदेश के आख़िरी सरहदी गाँव काहू पहुँचे. एलएसी के पास के इस गाँव से चीन का गाँव भी दिख रहा है. ऊंची-ऊंची चोटियों दिख रही हैं और उन्हीं के बीच एलएसी है. इस गांव में भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती साफ़ देखी जा सकती है. दूसरी तरफ़ चीन के गांव से कुछ दूर पर पीपल्स लिबरेशन आर्मी का भी कैंट नज़र आ रहा है.
मौजूदा समय में काहू गांव में बड़ी पाबंदियाँ हैं, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. मुश्किल से आठ से 10 घर वाला काहू गांव अमन पसंद इलाक़ा रहा है, लेकिन लद्दाख में जब से भारत और चीन के सैनिकों में टकराव हुआ है, यहाँ पर फ़ौजी सरगर्मियां देखी जा रही हैं. पाबंदियां और सैन्य गतिविधियाँ तेज़ी से बढ़ी हैं.
गांव के लोग बताते हैं कि चीनी फ़ौजी कभी-कभी एलएसी के इधर भी आ जाते हैं. गांव के ही कुछ लोगों ने हमें कैमरे पर बताया कि कैसे चीनी फ़ौजी भारतीय इलाक़े में आ जाते हैं. काहू गांव की महिला छोची मियोर ने बताया, "चीनी सैनिक सीमा के उस पार के किसानों को आगे करके इस इलाके तक आ जाते हैं. पीछे-पीछे आकर जगह घेर लेते हैं. जानवरों के लिए रहने की जगह बनाते हैं, बाद में सैनिक उसका इस्तेमाल करने लगते हैं."
ये भी पढ़ें:-भारत ने फ़िलीपींस से ब्रह्मोस मिसाइल बेचने का सौदा क्यों किया?
अब इतनी मुश्किलों के बीच यहाँ के रहने वालों की अपनी कठिनाइयाँ हैं. काहू गाँव के सरपंच खेती मियोर ऐसी ही कुछ दिक़्क़तों को गिनाते हैं. खेती मियोर बताते हैं, "घर के सामने, खेत के सामने चीन सैनिक अपनी गाड़ी लाकर रोक देते हैं. वे गांव जो देख रहे हैं वो भी भारत का ही है."
ये पूरा इलाक़ा भारतीय सेना की निगरानी में है. बड़े स्तर पर सैन्य गतिविधियाँ देखी जा सकती हैं. जो कुछ लोग यहाँ हैं वो भी बदली परिस्थितियों के बारे में बातचीत करने से बचते हैं.
ये भी पढ़ें:- श्रीलंका में चीन बना रहा नई पोर्ट सिटी, भारत के लिए क्या है चिंता?
तनाव साफ़ है. चीन के दावे के जवाब में भारत सरकार काहू गांव को पर्यटन स्थल के तौर पर बदल रही है. यहाँ अब घर में पर्यटकों के ठहरने के लिए स्टे होम बनाए जा रहे हैं.
ख़ुद सरकार यहाँ बड़ा टूरिस्ट लॉज बनवा रही है. लॉज के नज़दीक नए सैन्य पुल का निर्माण भी किया गया है. इस पुल के आगे आम नागरिक नहीं जा सकते.
तेज़ी से बढ़ी हैं चीन की गतिविधियां
ऐसी जानकारी है कि चीनी सेना ने एलएसी के उस पार बड़े पैमाने पर बैरक टावर और फ़ौजी अड्डे बना लिए हैं. इस रिपोर्ट को करने के लिए जब हम अरुणाचल प्रदेश जा रहे थे, उससे पहले एक टीवी चैनल ने दावा किया था कि चीन ने राज्य के कुछ क्षेत्रों में गांव और फ़ौजी अड्डे बना लिए हैं.
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन ने भारत की सरहद के कई किलोमीटर के अंदर एक गांव निर्मित किया है. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि अरुणाचल के सरहद के निकट चीनी फ़ौजियों की गतिविधियां काफ़ी बढ़ गई हैं.
सीमांत क्षेत्र मेचुका के भारतीय सांसद तपिर गाव एक अरसे से चीनी सैनिकों की गतिविधियों के बारे में आगाह करते रहे हैं. ईस्ट अरुणाचल प्रदेश से सांसद तपिर गाव कहते हैं, ''सुबानसिरी में जहाँ 100 घर बने हैं, वो मैक मोहन लाइन के हमारे अंदर बने हैं. 1962 के बाद सैनिक क़ब्ज़ा करते रहे, क़ब्ज़ा करते रहे. वहाँ की सेना (चीनी सेना) ने एक क़ानून पास किया कि जहाँ अवैध तरीके से इनका अतिक्रमण हुआ है, वो उससे पीछे नहीं हटेंगे. इस तरह का लैंड लॉ सेना ने पास किया है.''
भारत की तरफ़ से भी बढ़ी है गतिविधि
हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि सीमा के निकट बढ़ती चीन की गतिविधियों के बाद भारत ने तवांग, अन्जाव और मेचुका जैसे क्षेत्रों में अतिरिक्त सेना तैनात की है और भारी हथियार पहुंचाए हैं.
पासी घाट से विधायक नेनांग एरिंग कहते हैं, ''जैसे बोफ़ोर्स गन, हॉवित्जर गन हैं, इनको वहाँ पर पहुंचाया जा चुका है, पहले हमारा रिश्ता अच्छा था लेकिन जबसे डोकलाम में गड़बड़ हो गया, लद्दाख में दिक्क़त आई, तब से चीन का रवैया बदल चुका है. धीरे-धीरे वो (चीन) आक्रामक रूप में आ गए हैं.''
तेजू से काहू और किबेतू के सफ़र के दौरान हमने देखा कि हर जगह सड़कें चौड़ी की जा रही हैं. भारी सैन्य साज़ो सामान, ट्रक मशीनरी और सैनिकों की रफ़्तार और मोबिलिटी के लिए पहाड़ों को काटकर नई सड़क बनाई जा रही है. पहले से मौजूद सड़कों को बेहतर और मज़बूत किया जा रहा है. पुराने पुलों की जगह दर्जनों नए पुल बनाए जा रहे हैं.
स्थानीय भी इस बात की तस्दीक करते हैं. वालंग के रहने वाले लखिम सोबेलाई एक पुराने पुल की जगह बने नए पुल को दिखाते हुए कहते हैं, ''आज की तारीख़ में मैं देख पा रहा हूँ कि भारत की तरफ से डिवेलपमेंट हो रहा है जैसे ये नया पुल बन रहा है, ऐसे ही कई जगहों पर निर्माण हो रहा है.''
किबेतू में हमें इसकी जानकारी भी मिली कि भारतीय सेना पिछले तीन महीने से यहाँ के पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर मिसाइल, एम777, हॉवित्जर तोपें, एंटी एयरक्राफ़्ट उपकरण और बंदूक़ें ले जा रही है. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी. लेकिन अन्जाव, देबांग वैली, शियोमी, अपर सुबानसिरी और तवांग जिले में हवाई पट्टियों को बड़ा किया गया है. नए हेलिकॉप्टर, ड्रोन, मल्टी बैरल गन और रॉकेट लॉन्चर एलएसी के निकट तैनात किए जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें:- गलवान को लेकर चीन इतना आक्रामक क्यों है?
चीन ने लागू किया है नया सीमा क़ानून
बता दें कि चीन ने अक्टूबर में एक नए सीमा क़ानून (न्यू बॉर्डर लैंड लॉ) को मंज़ूरी दी है. एक जनवरी से इस क़ानून को लागू कर दिया गया है. इस क़ानून के तहत जिन सरहदी ज़मीनों पर चीन का विवाद है, वो ज़मीन चीन के अधिकार क्षेत्र में बताई गई है. क़ानून में सीमा से जुड़े इलाक़ों में 'निर्माण कार्यों' को बेहतर करने पर भी ध्यान दिया गया है. साथ ही नए क़ानून में सीमा के साथ-साथ 'सीमावर्ती इलाकों' में निर्माण, कार्य संचालन में सुधार और निर्माण के लिए सहायक क्षमता में मज़बूती को भी शामिल किया गया है.
चीन ने इस क़ानून के लागू होने के दो दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के 15 रिहाइशी क्षेत्रों, पहाड़ों और नदियों को चीनी नाम देकर ऐतिहासिक तौर पर अपना बताया है. भारत ने चीन के इस क़दम की निंदा की थी और इसे अस्वीकार कर दिया था. साथ ही कहा था कि नाम बदलने से वास्तविकता नहीं बदलती है.
लेकिन चीन के आक्रामक रवैये के बारे में भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं. हमने भारतीय सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता से ईमेल के द्वारा अरुणाचल प्रदेश में असाधारण सैन्य तैयारियों के बारे में पूछा, लेकिन उनकी तरफ़ से अब तक कोई जवाब नहीं आया है.
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अभी कुछ दिन पहले ही कहा था कि सीमाओं पर जिस तरह की अस्थिरता बनी हुई है उसमें किसी भी संभावना से इनक़ार नहीं किया जा सकता. भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश में ऑपरेशन अलर्ट जारी कर रखा है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)