क्या थी गोपाल दास नीरज की अंतिम इच्छा, जिसका अक्सर करते थे जिक्र
गोपाल दास नीरज का कविताओं से कितना गहरा रिश्ता था, इसका अंदाजा उनकी अंतिम इच्छा से लगाया जा सकता है।
नई दिल्ली। हिंदी के प्रख्यात कवि और गीतकार गोपालदास नीरज अब हमारे बीच नहीं रहे। पद्मश्री, पद्म भूषण, यश भारती और तीन बार फिल्मफेयर सम्मान पा चुके गोपाल दास नीरज ने गुरुवार शाम को 7:30 बजे एम्स में अंतिम सांस ली। यूपी से इटावा में जन्मे नीरज को फेफड़ों में संक्रमण की शिकायत थी। नीरज के जाने से साहित्य और संगीत दोनों उदास हो गए हैं। गोपाल दास नीरज का कविताओं से कितना गहरा रिश्ता था, इसका अंदाजा उनकी अंतिम इच्छा से लगाया जा सकता है।
'प्राण भी कविता पढ़ते हुए मंच पर ही निकलें'
'अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए...' जैसी नायाब पंक्तियों को रचने वाले गोपाल दास नीरज अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए अक्सर कहते थे, 'मेरी आखिरी इच्छा है कि मेरे प्राण भी कविता पढ़ते हुए मंच पर ही निकलें।' नीरज चाहते थे कि मौत के बाद उनके शरीर का एक-एक हिस्सा देश के काम आए। यही वजह थी कि वो अपना शरीर भी अलीगढ़ के मेडिकल कॉलेज को दान कर गए थे। आज अंतिम दर्शन के बाद उनका शरीर मेडिकल कॉलेज को सौंपा जाएगा।
फिल्म फ्लॉप भी हुई तो नीरज के गाने हिट
गोपाल दास नीरज ने 60 और 70 के दशक में हिंदी फिल्मों के लिए कई बेहतरीन गाने लिखे। कई बार ऐसा होता था कि फिल्में फ्लॉप हो जाती थीं, लेकिन उनके गाने सुपरहिट होते थे। गीतों और साहित्य की दुनिया में उनके योगदान के लिए उन्हें 1991 में पद्मश्री, 1994 में यश भारती सम्मान और 2007 में पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया। 2012 में उन्हें उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। नीरज को तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।
कारवां गुजर गया... से मिली नई पहचान
जिन तीन गीतों के लिए गोपाल दास नीरज को फिल्मफेयर पुरस्कार मिले, वो थे- 1970 में फिल्म 'चंदा और बिजली' का गीत 'काल का पहिया घूमे रे भइया...', 1971 में फिल्म 'पहचान' का गीत 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं...' और 1972 में आई फिल्म 'मेरा नाम जोकर' का गीत 'ए भाई जरा देख के चलो...'। इसके अलावा ओ मेरी शर्मीली..., कारवां गुजर गया जैसे गीतों ने उन्हें एक अलग ही पहचान दी।
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