Google Doodle: गूगल ने डूडल के जरिए महान कवियत्री महादेवी वर्मा को किया सलाम
नई दिल्ली। सर्च ईंजन गूगल ने आज भारत की महान कवियत्री, स्वतंत्रता सेनानी, महिला अधिकारों की लड़ाई वाली कार्यकर्ता और शिक्षाविद महादेवी वर्मा को डूडल के जरिए सलाम किया है। आज के ही दिन महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। गूगल डूडल को कलाकार सोनाली ज़ोहरा ने बनाया है। महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं, उन्हें आधुनिक 'मीरा' भी कहा जाता है। कवि निराला ने तो उन्हें 'हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती' भी कहा है।
भारत की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा
महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। जिसका असर उनकी हर एक रचना में हैं, महादेवी वर्मा ने शब्दों और कलम की ताकत के जरिए समाज सुधारने का हर संभव प्रयास किया, जिसमें वो काफी हद तक सफल भी थीं।
इसलिए नाम महादेवी पड़ा
महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था, इसलिए इन्हें घर की देवी मानते हुए इनके माता-पिता ने इनका नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। सन् 1916 में उनकी शादी बाबा श्री बांके विहारी से हुई थी।
हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं
महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। वे हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं। महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर झूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। जिसका असर उनकी गद्य और पद्य दोनों ही रचनाओं में देखने को मिलता है।
भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार'
उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान इतना अधिक है कि उन्हें शब्दों में समेटा नहीं जा सकता है। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये 'पद्म भूषण' की उपाधि दी। 1979 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। 11 सितंबर 1987 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
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