राहत भरी खबर: अब तुरंत पकड़ में आएगा कोरोना का नए वेरिएंट, वैज्ञानिकों ने खोज निकाली बेहतर तकनीकी
नई दिल्ली, 10 मई: चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है, जहां अब तक 15.90 करोड़ केस सामने आ चुके हैं। जिसमें से 33 लाख लोगों ने जान गंवाई है। वहीं अब दुनिया के सामने एक नई मुश्किल खड़ी हो गई है, क्योंकि SARS-CoV-2 के कई नए वेरिएंट सामने आ चुके हैं, जो गोल्डन टेस्ट RT-PCR की पकड़ में नहीं आते हैं। इससे संक्रमण का खतरा तो बढ़ा ही है बल्कि वक्त रहते लोगों को सही इलाज नहीं मिलने से उनकी जान भी जा रही है। हालांकि दुनियाभर के वैज्ञानिक ने मिलकर कोरोना के नए वेरिएंट को खोजने के लिए नई तकनीकी विकसित कर ली है।
गोएथ यूनिवर्सिटी फ्रैंकफर्ट और टीयू डार्मस्टेड के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक वर्किंग प्रोटोकॉल तैयार किया है, जिसे दुनियाभर के सभी लैब्स SARS-CoV-2 के प्रोटीन और म्यूटेन का पता लगाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि जब भी वायरस म्यूटेट होता है, तो सिर्फ उनके जेनेटिक ब्लूप्रिंट में बदलाव होता है। उदाहरण के तौर पर देखे तो वायरल प्रोटीन में एक विशेष साइट पर अमीनो एसिड का आदान-प्रदान किया जा सकता है। वहीं इस प्रभाव के तेजी से आकलन के लिए वायरल प्रोटीन के थ्री-डायमेंशनल इमेज का इस्तेमाल हो सकता है।
मोलेकुलर बायोसाइंसेस जर्नल फ्रंटियर्स इन जर्नल पेपर में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि ये अमीनो एसिड में प्रोटीन के कार्य के परिणाम होते हैं। इसके अलावा प्रयोगशाला प्रोटोकॉल का विस्तार दूसरे मील के पत्थर के बराबर है, क्योंकि गोएथ विश्वविद्यालय में ऑर्गेनिक केमिस्ट्री और केमिकल बायोलॉजी के प्रोफेसर हराल्ड शाल्बे के समन्वय वाला नेटवर्क दुनियाभर में फैला हुआ है। शोधकर्ताओं ने आगे बताया कि प्रोटीन के अलावा वायरस में RNA होता है। पिछले साल जो SARS-CoV-2 पाए गए थे, उसके सभी RNA सैंपल सुरक्षित रखे गए हैं। अब 129 सहयोगियों के साथ टीम ने SARS-CoV-2 के 30 प्रोटीन में से 23 का पूरी तरह से पता लगा लिया गया है।
गोएथ विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर मॉलिक्यूलर बायोसाइंसेज के डॉ. एंड्रियास श्लंड्ट के मुताबिक वो लोग सक्रिय एजेंटों की मदद से वैश्विक खोज को गति दे रहे हैं। इस काम के लिए पहले से सेट लैब्स को SARS-CoV-2 प्रोटीन के उत्पादन और जांच के लिए सिस्टम स्थापित करने के लिए खर्च की जरूरत नहीं है। अब वो उनके लेबोरेटरी प्रोटोकॉल की मदद से दो हफ्ते के अंदर काम शुरू कर सकते हैं।