राजनीति से संन्यास ले सकते हैं गुलाम नबी आजाद, कही ये बात
नई दिल्ली, 21 मार्च। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने राजनीति से संन्यास का इशारा किया है। उन्होंने राजनीतिक दलों पर आरोप लाया है कि वह समाज को बांटने का काम करती हैं। जबकि सिविल सोसाइटी का मुश्किल समय में काफी अहम योगदान होता है। उन्होंने कहा कि मैं अक्सर यह सोचता हूं कि राजनीति से रिटायर होकर समाज सेवा में लग जाउं। सिविल सोसाइटी के लोगों को संबोधित करते हुए आजाद ने कहा कि हमको एक समाज में बदलाव लाना है, कभी-कभी मैं सोचता हूं और कोई बड़ी बात नहीं है कि अचानक आप समझे कि हम रिटायर हो गए और समाज सेवा में लग गए। उन्होंने कहा कि मैं राजनीतिक भाषण नहीं दूंगा क्योंकि भारत में राजनीति इतनी गंदी हो गई है कि लोगों को कभी-कभी शक होता है कि हम इंसान भी हैं या नहीं।
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आजाद ने कहा कि राजनीतिक दलों का काम रहता है हर समय लोगों को जाति, धर्म के नाम पर बांटना। यह सभी दल करते हैं। वहीं सिविल सोसाइटी को दिशा देना है, उसे वोट देने से कोई मतलब नहीं है। हम प्यार से रहकर भी तो वही कर सकते हैं। आचार्य कृपलानी और उनकी पत्नी दिन में अलग पार्टी के लिए काम करते थे लेकिन रात में मिसेज कृपलानी ही खाना देती थीं, वही घर चलाती थीं, लेकिन राजनीतिक पार्टी अलग है। क्या हम यह अपनी पार्टियों के साथ नहीं कर सकते हैं। हम अपनी पार्टियां हम अपनी-अपनी पार्टी को दे दें लेकिन शादी, ब्याह, मरने जीन में हम इकट्ठे हो। एक दूसरे के घर आ जाएं। क्या हम इकट्ठा यह नहीं कर सकते हैं। क्या यह हमारा विकास का काम नहीं है, क्या टैक्स देना हमारा काम नहीं, क्या इंडस्ट्री नहीं है तो हम सब उठकर आवाज उठाएं यह हमारा काम नहीं, अन्याय हो जाए किसी भी धर्म और जाति के लोगों के साथ क्या यह हमारा काम नहीं है कि हम अन्याय नहीं होने देंगे।
ऐसी ही एक घटना हुई थी कि गुर्जर लड़की का रेप हुआ था और उसे मार दिया। जब उन्हें पकड़ने के लिए गए तो राजनीतिक दलों ने उन्हें बचाने की कोशिश की। लेकिन हिंदुस्तान खड़ा हुआ, हिंदुस्तान का मुसलमान नहीं, क्योंकि हिंदुस्तान के मुसलममानों को पता ही नहीं है कि गुर्जर मुसलमान आदिवासी होते हैं। गुर्जर मुसलमान पूरे हिंदुस्तान जम्मू कश्मीर और अमेठी में हैं और कहीं नहीं हैं। देशभर के हिंदू, सिख, ईसाई इनके लिए खड़े हुए। जम्मू ऐसा होना चाहिए, वह दलित के साथ हो, हिंदू के साथ हो पंडित के साथ हो। अगर सिर्फ सिख के लिए सिख खड़ा होगा तो कितने सिख है यहां कौन सुनेगा उन्हें। कोई बड़ी बात नहीं है कि आप अचानक समझे कि हम रिटायर हो गए और समाज सेवा में लग गए।