Flashback 2020: शाहीन बाग से लेकर आरक्षण तक सुप्रीम कोर्ट के इस साल के 10 बड़े फैसले
नई दिल्ली- कोरोना का कहर झेलते हुए साल 2020 खत्म होने को है। घर पर रहना, ऑनलाइन काम करना, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही अदालतों की कार्यवाहियों का संचालन होना, इस साल का न्यू-नॉर्मल रहा है। लेकिन, देश की सर्वोच्च अदालत ने इस कठिन चुनौती के वक्त में भी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल भी कई ऐसे हम फैसले दिए हैं या ऑब्जर्वेशन दिया है, जो देश के भविष्य के लिए मील के पत्थर साबित होंगे। यहां पर उन तमाम फैसलों को तो नहीं शामिल किया जा रहा है, हम सिर्फ 10 चुनिंदा फैसलों की चर्चा कर रहे हैं, जो आने वाले दिनों में देश के नागरिकों और सरकारों पर गहरा असर डाल सकती हैं।
सेना में महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन
17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी, जिसमें महिला अफसरों को सेना में परमानेंट कमीशन देने की बात कही गई थी। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि उन सभी शॉर्ट सर्विस कमीशन वाली महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने पर विचार करे जो 14 साल की सेवा पूरी कर चुकी हों। जब केंद्र सरकार ने अदालत के आदेश की तामील कर दी तो पिछले नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर खुशी जताते हुए कहा कि 'यह हमारे देश की जीत है......'अपने फैसले में अदालत ने कहा था सेना की महिलाओं को परमानेंट कमीशन पाने का उतना ही अधिकार है, जितना कि उनके पुरुष समक्षकों का है। करीब एक महीने बाद 20 मार्च को उसने नेवी की महिला अफसरों के लिए भी यही कहा।
आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं
11 जून को अपने एक ऐतिहासिक ऑब्जर्वेशन में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियों की ओर से दायर उस याचिका को सुनने से इनकार कर दिया, जिसमें राज्यों द्वारा सरेंडर की एनईईटी सीटों पर 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण की मांग की गई थी। जस्टिस एलएन राव ने कहा, 'पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए सभी राजनीतिक दलों की चिंता की मैं सराहना करता हूं। लेकिन, आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है।'
पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हक
11 अगस्त, 2020 को अपने एक और ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि संयुक्त हिंदू परिवार में पैतृक संपत्ती पर बेटियों का जन्म से उतना ही अधिकार है, जितना कि बेटों का। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फैसले में यह भी कहा कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि जब 2005 में यह कानून लागू हुआ तो उसके पिता जीवित थे या नहीं। हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 हिंदू महिलाओं को वही अधिकार देता है जो पुरुष वारिसों को हासिल है।
प्रशांत भूषण अवमानना मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 14 अगस्त को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को सर्वोच्च अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने सर्वोच्च अदालत पर उनके ट्वीट को 'गंभीर अवमानना' की श्रेणी में रखा और उन्हें अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी पाया। भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे और सर्वोच्च अदालत पर मौलिक अधिकारों और विरोध की रक्षा में नाकाम रहने पर 'आपत्तिजनक' ट्वीट किए थे। बाद में सर्वोच्च अदालत ने उनपर 1 रुपये का जुर्माना ठोका और प्रशांत भूषण ने वह जुर्माना अदा कर दिया।
पीएम-केयर्स फंड पर बड़ा फैसला
इस साल 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान पीएम-केयर्स फंड के तहत जमा की गई रकम को नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड में ट्रांसफर करने की कोई जरूरत नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पीएम-केयर्स फंड के जरिए जो पैसा जमा किया गया है वह चैरिटेबल ट्रस्ट की तरह है और पूरी तरह से अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार चाहती है कि वह फंड ट्रांसफर करे तो वह इसके लिए स्वतंत्र है।
सुशांत सिंह राजपूत में सीबीआई जांच
इस साल 19 अगस्त को कई दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच सीबीआई से कराने पर मुहर लगा दी। इस मामले बिहार सरकार पहले ही सीबीआई जांच की सिफारिश कर चुकी थी और केंद्र सरकार ने उसे मंजूर भी कर लिया था। लेकिन, महाराष्ट्र सरकार जो पहले से सुशांत मामले की जांच करवा रही थी, वह इस मामले को सीबीआई जांच के खिलाफ थी। लेकिन, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले में जिस तरह की राजनीतिक दखलअंदाजी के आरोप लग रहे हैं, उसके बाद इसकी जांच सीबीआई से करवाना ही उचित है। दरअसल, पहले इस मामले में सुशांत की लिव-इन पार्टनर रहीं रिया चक्रवर्ती सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं और उन्होंने ही पहले सीबीआई जांच की मांग की थी। हालांकि, बाद में उनके सुर बदलते दिखाई पड़े थे।
शाहीन बाग- विरोध करने का अधिकार संपूर्ण नहीं
इस साल 7 अक्टूबर को दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी के खिलाफ करीब 3 महीने चले शाहीन बाग धरनेको लेकर सुप्रीमो कोर्ट ने कहा कि सरकार के खिलाफ विरोध जताना मौलिक अधिकार है, लेकिन यह संपूर्ण नहीं है। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक जगहों को धरना-प्रदर्शन के लिए अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता। अदालत ने प्रशासन को भी फटकार लगाई कि वो तीन महीने तक प्रदर्शनकारियों को हटाने में नाकाम रहे। अदालत ने कहा कि ऐसे प्रदर्शनों से आम नागरिकों को किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए और उनके अधिकारों का भी हनन नहीं होना चाहिए। अदालत ने प्रदर्शनों को निर्धारित जगह पर किए जाने की बात कही। शाहीन बाग में यह धरना पिछले साल 15 दिसंबर को शुरू हुआ था और इस साल 23 मार्च को जबरन खत्म कराया गया था।
अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 11 नवंबर को एक और बहुचर्चित केस में रिपबल्कि टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी और दूसरे सह-आरोपियों को अंतरिम जमानत का आदेश दिया। महाराष्ट्र की पुलिस ने उन्हें सुसाइड के लिए उकसाने के एक पुराने मामले में गिरफ्तार किया था। आरोप लग रहे थे कि महाराष्ट्र सरकार उनसे बदला लेने के लिए ये सब कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब को अंतरिम जमानत देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट पर भी उंगली उठाई कि उसने उनकी जमानत याचिका खारिज करके गलती की। सर्वोच्च अदालत ने देश के तमाम हाई कोर्ट पर टिप्पणी की है कि जहां निजी स्वतंत्रता को नकारा जाता है वहां ये अदालतें उसे रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में बॉम्बे हाई कोर्ट के रवैए पर नाखुशी जाहिर की।
सभी थानों में लगे सीसीटीवी कैमरा
2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा निर्देश जारी करते हुए सभी संबंधित सरकारों और एजेंसियों से कहा कि सभी पुलिस थानों समेत तमाम जांच एजेंसियों के दफ्तों में सीसीटीवी कैमरा और रिकॉर्डिंग करने वाले उपकरण लगाएं। यह निर्देश सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसी संस्थाओं के लिए भी जारी किए गए हैं, जिनके पास भी गिरफ्तारी का अधिकार है। अदालत उन सभी जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने को कहा है, जहां आरोपियों से पूछताछ होती है या जहां उनके उत्पीड़न की आशंका हो सकती है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक
बीते 7 दिसंबर को अपने आदेश में नई दिल्ली के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को बड़ा झटका दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 10 याचिकाओं पर फैसला आने तक इस प्रोजेक्ट पर किसी तरह के काम पर रोक लगा दी। अदालत ने सिर्फ इस प्रोजेक्ट के पेपरवर्क और शिलान्यास और भूमिपूजन पर कोई रोक नहीं लगाई, जिसके तहत 10 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय कार्यक्रम के तहत यहां कार्यक्रम संपन्न किए। अदालत ने कहा कि 'पेपरवर्क होता है या आधारशिला रखी जाती हो तो उसे दिक्कत नहीं है, लेकिन कंस्ट्रक्शन नहीं होना चाहिए।'