
सस्ती हो सकती है बिजली, 2023 से समुद्र के रास्ते कोयले की ढुलाई की तैयारी, जानिए पूरा प्लान
पिछले दो वर्षों से गर्मी के दिनों में कई राज्यों ने बहुत ही भयानक बिजली संकट झेला है। कई थर्मल पावर प्लांट में तो कोयला ही नहीं पहुंच पा रहा था। भारतीय रेलवे ने इस संकट को दूर करने के लिए अपनी ओर से काफी कोशिशें कीं। माल ट्रेनों की लंबाई बढ़ाई गई। उन्हें ट्रैफिक में ज्यादा तरजीह दिया गया। लेकिन, फिर भी कोल इंडिया को कई जगहों के लिए कोयला आयात करना पड़ गया। लेकिन, आने वाले समय में यह संकट तो हमेशा के लिए दूर हो ही सकता है, आपको मिलने वाली बिजली भी सस्ती हो सकती है। क्योंकि, कोयले की ढुलाई पर आने वाली लागत कई गुना कम होने जा रही है। केंद्र सरकार कोयले की ढुलाई समुद्री रास्ते से करने की रणनीति पर गंभीरता से काम कर रही है।

समुद्र के रास्ते कोयले की ढुलाई की योजना
पिछले दो वर्षों में देश ने कोयले की ढुलाई में दिक्कतों की वजह से बहुत बड़ा बिजली संकट झेला है। कई थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले का स्टॉक ही खत्म होने की स्थिति में आ गया था। कोयले की मांग की तुलना में ढुलाई की गति बहुत ही धीमी थी। इसके चलते रेलवे को भी अपनी ट्रैफिक मैनेजमेंट में काफी बदलाव करने पड़े थे। लेकिन, ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब केंद्र सरकार के कई मंत्रालय इस संकट से छुटकारा पाने और कोयले की ढुलाई पर होने वाले खर्च को बहुत ही घटाने की दिशा में काम करने के लिए राजी हुए हैं। इसके अनुसार 2023 की शुरुआत से समुद्र के रास्ते कोयले की ढुलाई की बात है, जो कि सस्ता भी होगा और तेजी से बिजली घरों तक पहुंचाना भी आसान होगा।

कोयला आयात करने की आ गई थी नौबत
बिजली, कोयला और जहाजरानी मंत्रालय ओडिशा और झारखंड से कोयला लेकर उसे समुद्री रास्ते के माध्यम से 2023 के जनवरी से देश के पश्चिम तटों पर पहुंचाने की नई रणनीति पर काम कर रहा है। इस साल जब प्रचंड गर्मी पड़ रही थी तो कई राज्यों में भीषण बिजली संकट की स्थिति पैदा हुई थी। कई थर्मल प्लांट के सामने कोयले की कमी के चलते यूनिट बंद करने की नौबत आ गई थी। इसकी वजह से लाचारी में कोल इंडिया को 2015 के बाद पहली बार ज्यादा कीमत देकर कोयला आयात करने पर मजबूर होना पड़ गया था।

समुद्री रास्ते से कोयला ढुलाई है बेहतर विकल्प
अधिकारियों की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक समुद्र के रास्ते अगले महीने से जिन राज्यों में कोयला पहुंचाने की व्यवस्था शुरू करने के विचार पर काम चल रहा है, उसमें अभी महाराष्ट्र, और गुजरात के अलावा संभवत: पंजाब भी शामिल हो सकता है। इन राज्यों में कोयले की आपूर्ति इस समय या तो सड़कों के माध्यम से हो रही है या फिर आयातित कोयला इस्तेमाल हो रहा है। दोनों ही विकल्प काफी महंगे साबित हो रहे हैं। केंद्र सरकार को सभी विकल्पों को देखने के बाद लग रहा है कि समुद्री जहाजों के माध्यम से कोयले की आपूर्ति बेहतर विकल्प है और इसकी वजह से लॉजिस्टिक की बहुत बड़ी अड़चनें भी दूर हो सकती हैं।

कुछ राज्यों में समुद्री रास्ते होने लगी ढुलाई
हाल ही में कोयला मंत्रालय ने एक शोध कराया है, जिससे पता चलता है कि कोस्टल शिपिंग के इस्तेमाल से साल 2023 तक 130 मिलियन मीट्रिक टन सालाना कोयले की ढुलाई करने में सहायता मिल सकती है। इसके लिए दो डेस्टिनेशन क्लस्टर की पहचान की गई है। पहला है तमिलनाडु और दक्षिणी आंध्र प्रदेश; और दूसरा है महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के तटीय इलाके। इनमें से पहले क्लस्टर में कोस्टल कोल की सप्लाई इसी साल के मध्य से शुरू भी हो चुकी है। यह इलाका पहले मूल रूप से आयातित कोयले पर निर्भर था, लेकिन रूस-यूक्रेन संकट की वजह से यह बहुत ही महंगा हो चुका है। कई थर्मल पावर प्लांट को मजबूरन बंद करना पड़ा। लेकिन, ओडिशा के पारादीप बंदरगाह से कोयले की ढुलाई शुरू होने से सस्ता कोयला मिलना शुरू हुआ है।

...तो सस्ती हो सकती है बिजली
विभिन्न मंत्रालयों के बीच चर्चा के बाद यह महसूस किया गया कि इस मॉडल को क्लस्टर 2 के राज्यों में भी लागू किया जा सकता है, क्योंकि लागत बहुत बड़ा फैक्टर है। अनुमान है कि एक मीट्रिक टन कोयले की रेल या रोड से ढुलाई पर यदि 8,000 रुपए की लागत आती है तो समुद्री रास्ते से ढुलाई होने पर यह घटकर सिर्फ 1,500 प्रति मीट्रिक टन रह जाएगी। यह लागत घटने से बिजली की लागत भी घटेगी और इंडस्ट्री की बाकी लागत में भी कमी आएगी।
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पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है यह उपाय
यही नहीं, समुद्र के रास्त कोयले की ढुलाई पर्यावरण के भी अनुकूल माना जा रहा है और यह भारत के क्लाइमेट कमिटमेंट्स के मुताबिक भी है। क्योंकि, रेल या रोड से ढुलाई होने पर कार्बन का उत्सर्जन भी एक बहुत बड़ी चिंता की वजह रहती है। टीम गति शक्ति इन सभी पहलुओं पर ध्यान रख रहा है और हर स्थिति में विद्युत संकट की स्थिति पैदा नहीं होने देने की योजना पर काम कर रहा है।