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Earthquake: अगर दिल्ली में रहते हैं तो जान लें कि कौन सा इलाका है भूकंप से सबसे ज्यादा सुरक्षित?

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बेंगलुरू। 25 अप्रैल, वर्ष 2015 में सुबह करीब 11.56 पर नेपाल में जब सभी ब्रेकफास्ट के बाद अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए थे तभी एकाएक 7.8 से 8.1 की तीव्रता से आए भूंकप ने नेपाल को लाशों मे तब्दील कर दिया था। नेपाल ने अचानक आए भूंकप में करीब 9000 लोगों की जान एक साथ चली गई और करीब 22000 लोग बुरी तरह जख्मी हुए थे, जिन्हें अगर अधमरा कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

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वर्ष 2001 में ऐसा ही एक भयानक भूंकप गुजरात के भुज जिले में सुबह करीब 9 बजे आया था और करीब 13500 से अधिक लोगों को मौत की नींद में सुला गया और तकरीबन 20500 लोगों को अधमरा बना दिया। भुज में आए भूकंप की तीव्रता 7.7 माफी गई थी। भुज और नेपाल में आए भूकंप में मारे गए आंकड़ों की संख्या इसलिए कम थी, क्योंकि दोनों इलाकों में उतनी घनी आबादी नहीं है, जितनी राजधानी दिल्ली की है।

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जी हां, दिल्ली, जहां औसतन प्रति वर्ग किलोमीटर पर 11,297 लोग रहते हैं। एक आकलन के मुताबिक अगर दिल्ली में कभी 7.7 या उससे अधिक तीव्रता भूकंप आता है, तो नॉर्थ दिल्ली, नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली, ईस्ट दिल्ली और साउथ दिल्ली में रहने वाले लोगों को सर्वाधिक खतरा है। सबसे गंभीर बात यह है कि देश में सर्वाधिक आबादी वाला जिला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का ईस्टर्न दिल्ली है जहां सर्वाधिक खतरा है और अफसोस की बात यह है कि ईस्टर्न दिल्ली इलाके में दिल्ली की सबसे अधिक आबादी रहती है।

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गौरतलब है ईस्टर्न दिल्ली में प्रति वर्ग किलोमीटर पर 37,346 लोग रहते हैं। कुल 1483 वर्ग किलोमीटर में फैली दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है, जहां की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। हालांकि 1901 में दिल्ली की कुल 4 लाख की जनसंख्या थी, लेकिन 1911 में ब्रिटिश भारत की राजधानी बनने के साथ जनसंख्या बढ़ने लगी।

ब्रिटिश हुकूमत से आजादी और फिर भारत- विभाजन के बाद पाकिस्तान से आई बड़ी जनसंख्या में लोग दिल्ली में आकर बस गए। दिल्ली में यह प्रवासन आज भी जारी है। आंकड़ों के मुताबिक 1911 से 2001 यानी 90 वर्ष के बीच दिल्ली की जनसंख्या की वृद्धि की दर 47.2 फीसदी थी और दिल्ली में जनसख्या का घनत्व प्रति किलोमीटर 9294 व्यक्ति पहुंच गया।

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दिल्ली में भूंकप के खतरे की बात करना अभी इसलिए जरूरी हो गया है, क्योंकि शुक्रवार को दिल्ली में आए भूंकप के झटकों ने वैज्ञानिकों द्वारा दी गई चेतावनी का मौजू क दिया है। वैज्ञानिक द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक हिमालय क्षेत्र में निकट स्थित दिल्ली में भविष्य में उच्च-क्षमता वाले भूकंप की आशंका है। इस स्टडी में कहा गया है कि क्षेत्र में 'बहुत अधिक खिंचाव' की स्थिति से 8.5 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है।

गलुरु स्थित जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर ऐडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के सिस्मोलॉजिस्ट और अध्ययन का नेतृत्व करने वाले सी.पी.राजेंद्रन के मुताबिक 1315 और 1440 के बीच आए भयानक भूकंप के बाद मध्य हिमालय का क्षेत्र भूकंप के लिए लिहाज से शांत रहा है, लेकिन भूगर्भिक क्षेत्र में काफी खिंचाव/तनाव की स्थिति पैदा हो गई है, जिससे दिल्ली में भूकंप का खतरा बढ़ गया है।

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वैज्ञानिक द्वारा दी गई चेतावनी के मुताबिक दिल्ली के लिए यह खतरे वाली बात है, क्योंकि भूकंप के लिहाज से दिल्ली काफी संवेदनशील है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस तीव्रता का भूकंप आया तो शहर की करीब 20 प्रतिशत बिल्डिंग ही बच पाएंगी। भूकंप के लिहाज से दिल्ली के शहर इसलिए संवेदनशील है,क्योंकि यह तीन फॉल्ट लाइनों- पर बसा हुआ है। ये फॉल्ट लाइन सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद हैं। सबसे ज्यादा संवेदनशील गुड़गांव है जिसके आसपास सात फॉल्ट लाइन मौजूद है।

उल्लेखनीय है दिल्ली में भूंकप के खतरे को देखते हुए दिल्ली को जोन तीन से जोन चार में शिफ्ट कर दिया गया। GRIHH काउंसिल के संस्थापक मानित रस्तोगी ने बताया कि वर्ष 2001 गुजरात भकंप के बाद दिल्ली को भूकंप जोनों में तब्दील करने की जरूरत महसूस हुई।

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अफसोस इस बात का है कि दिल्ली में निर्मित सारी इमारतें पुरानी हैं और सिर्फ 10 प्रतिशत इमारतें हीं भूकंप को झेल पाएगी बाकी 90 फीसदी भूंकपरोधी नहीं, जो संभावित 8.5 तीव्रता वाले भूकंप में जमींदोज हो जाएंगी। हालांकि भूकंप के खतरे को देखते हुए वर्ष 2008 में दिल्ली में कुछ पुरानी इमारतों को दुरुस्त करने का काम किया गया था।

वहीं, वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के बाद दिल्ली सचिवालय, दिल्ली पुलिस और पीडब्ल्यूडी मुख्यालयों, लडलॉ कैसल स्कूल, विकास भवन, गुरु तेग बहादुर अस्पताल और डिविजनल कमिशनल के दफ्तर को मजबूत किया गया था। बावजूद इसके दिल्ली सरकार की अधिकांश इमारतें भूकंप केंद्र में हैं, पीडब्ल्यूडी के सूत्रों का दावा है कि उन पर नियमित रूप से नज़र रखी जा रही है।

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दरअसल, यमुना की बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्र में उन स्थानों को चिह्नित किया है, जहां भूकंप का खतरा सबसे अधिक है। इनमें पूर्वी दिल्ली के घनी आबादी वाले रिहायशी इलाके शामिल हैं। अन्य खतरे वाले इलाकों में लुटियंस की दिल्ली, सरिता विहार, पश्चिम विहार, वजीराबाद, करोल बाग और जनकपुरी है, लेकिन दक्षिणी दिल्ली स्थित जेएनयू, एम्स, छतरपुर, नारायणा और वसंत कुंज सुरक्षित है जो संभवतः भूकंप के झटके कुछ देर तक झेल सकते हैं।

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दिल्ली में भूंकप के खतरे को देखते हुए हाल ही में केंद्र सरकार ने उन शहरों की सूची जारी की थी, जो भूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक जोन 5 और 4 में आते हैं. राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर (Delhi-NCR) अधिक तीव्रता वाले जोन 4 में आते हैं, जहां रिक्‍टर पैमाने पर 8 तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। अफसोस कि इसके बावजूद वहां सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर अंधाधुंध अवैध निर्माण हो रहे हैं। उसमें न तो नेशनल बिल्डिंग कोड का पालन किया जा रहा है और न ही स्‍ट्रक्‍चरल इंजीनियरिंग का ही पालन हो रहा है।

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सवाल यह है कि भूंकप के लिए सबसे खतरनाक मानी जा चुकी दिल्ली में अगर कल भूकंप आ गया तो एक ही झटके में लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर लग जाएगी। यही कारण है कि दिल्ली में भूकंप के हल्के झटके महसूस होती है, जो जहां रहता है, वहां से सड़क और खाली जगह की ओर दौड़ने और भागने लगता है।

दिल्ली की बढ़ती आबादी और अंधाधुंध बिल्डिंग निर्माण कार्य इसके लिए सीधे-सीधे दोषी हैं, लेकिन उन पर अंकुश लगाना तो दूर राजनीतिक दल अवैध रूप से निर्मित कॉलोनियों को कानूनी जामा पहनाने से नहीं चूक रही हैं। अभी हाल ही केंद्र सरकार और दिल्ली सरकारों द्वारा 1800 अवैध कॉलोनियों को लीगलाइज कर दिया गया है।

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अभी हाल में पाकिस्तान, इंडोनेशिया और नेपाल समेत भारत में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। पाकिस्तान और इंडोनेशिया में आए भूकंप ने काफी नुकसान पहुंचाया है। हालांकि भारत में भूकंप के झटकों से कुछ नुकसान तो नहीं हुआ है, लेकिन दिल्ली में बड़ा भूकंप भारी तबाही ला सकता है, क्योंकि एक तो यह कि दिल्ली शहर में निर्मित 80 फीसदी इमारतें बड़ा भूकंप झेलने की ही स्थिति में नहीं हैं।

दूसरे, हिमालय के करीब होने की वजह से दिल्ली को भूकंपीय क्षेत्र में है। ऐसे में अगर हिमालयी इलाकों में भीषण भूकंप आया तो दिल्ली के लिए संभल पाना बेहद मुश्किल होगा, इसमें एनसीआर के इलाके भी शामिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली में अगर बड़ा भूकंप आया तो जान माल का बहुत ज्यादा नुकसान होगा, क्योंकि पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली के साथ ज्यादातर इलाके घनी आबादी वाले हैं। कई इलाके तो ऐसे भी हैं, जहां आपात स्थिति में मदद तक नहीं पहुंच सकती है।

यह भी पढ़ें-दिल्ली पर मंडराया बड़ा खतरा, 8.5 तीव्रता के भूकंप की आशंका: स्टडी

ये इलाके हैंभूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा खतरनाक

ये इलाके हैंभूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा खतरनाक

दिल्ली के आसपास कई बड़े भूकंप आ चुके हैं। वैज्ञानिक प्रयासों से भूकंप के प्रभावों को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली क्षेत्र की जमीन के नीचे की मिट्टी की जांच करवाकर यह पता किया है कि इसके कौन से क्षेत्र सबसे ज्‍यादा संवेदनशील हैं। इस रिपोर्ट में पता चला है कि घनी आबादी वाले यमुनापार समेत तीन जोन सर्वाधिक खतरनाक हैं। बड़ा भूकंप आने पर दिल्ली में ज्यादा नुकसान की आशंका वाले क्षेत्रों में यमुना तट के करीबी इलाके, पूर्वी दिल्ली, शाहदरा, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर आदि आते हैं। फरीदाबाद और गुरुग्राम (गुड़गांव) भी ऐसे ही क्षेत्र में आते हैं. दिल्ली की रिपोर्ट भू-विज्ञान और मौसम विज्ञान से जुड़े करीब 80 वैज्ञानिकों की मदद से तैयार की गई।

कब आया था दिल्ली में सबसे बड़ा भूकंप?

कब आया था दिल्ली में सबसे बड़ा भूकंप?

दिल्ली में 20वीं सदी में 27 जुलाई, 1960 को 5.6 की तीव्रता का बड़ा भूकंप आया था। हालांकि, इसकी वजह से दिल्ली की कुछ ही इमारतों को नुकसान हुआ था, लेकिन तब दिल्ली की जनसंख्या कम थी। वहीं, 80 और 90 के दशक के बाद से दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ी है। अब दिल्ली की आबादी दो करोड़ के आसपास है। ऐसे में आवास की मांग के मद्देनजर पिछले तीन दशक के दौरान दिल्ली में नियमों की अनदेखी करते हुए अवैध निर्माण हुआ है। एक रिपोर्ट में दिल्ली की 80 फीसद इमारतों को असुरक्षित माना गया है।

खतरनाक हैं दिल्ली की 70-80 फीसदी से अधिक इमारतें

खतरनाक हैं दिल्ली की 70-80 फीसदी से अधिक इमारतें

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी खतरा है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से नहीं बनी हैं। वहीं, अतिक्रमण कर बनाई गई इमारतों की स्थिति और भी बदतर है। दिल्ली की हिमालय क्षेत्र से दूरी मात्र 350 किलोमीटर है, जाहिर है ऐसे में हिमालयी क्षेत्र में भूकंप से पैदा होने वाली ऊर्जा से दिल्ली को सर्वाधिक खतरा है। विशेषज्ञों की मानें तो हिमालय में भूकंप का केंद्र होने के बावजूद दिल्ली में भारी तबाही हो सकती है।

जानिए, भारत में भूकंप का केंद्र कहां-कहां है ?

जानिए, भारत में भूकंप का केंद्र कहां-कहां है ?

भारत भी अब भूकंप का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। भू-वैज्ञानिकों ने बताया कि भूकंप का खतरा देश में हर जगह अलग-अलग है। इस खतरे के हिसाब से देश को चार हिस्सों में बांटा गया है, जैसे जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5। सबसे कम खतरे वाला जोन-2 है, तथा सबसे ज्यादा खतरे वाला जोन-5 है।

जोन-एक: पश्चिमी मध्यप्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा के हिस्से आते हैं। यहां भूकंप का सबसे कम खतरा है।

जोन-दो: तमिलनाडु, राजस्थान और मध्यप्रदेश का कुछ हिस्सा, पश्चिम बंगाल और हरियाणा। यहां भूकंप की संभावना रहती है।

जोन-तीन: केरल, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी राजस्थान, पूर्वी गुजरात, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश का कुछ हिस्सा आता है। इस जोन में भूकंप के झटके आते रहते हैं।

जोन-चार : मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी गुजरात, उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश के पहाड़ी इलाके और बिहार-नेपाल सीमा के इलाके शामिल हैं। यहां भूकंप का खतरा लगातार बना रहता है और रुक-रुक कर भूकंप आते रहते हैं।

जोन-पांच : भूकंप के लिहाज से ये सबसे खतरनाक इलाका है। इसमें गुजरात का कच्छ इलाका, उत्तरांचल का एक हिस्सा और पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्य शामिल हैं।

विभिन्न रिएक्टर स्केलों पर भूकंप

विभिन्न रिएक्टर स्केलों पर भूकंप

रिएक्टर स्केल के अनुसार 2.0 की तीव्रता से कम वाले भूकंपीय झटकों की संख्या रोजाना लगभग आठ हजार होती है, जो इंसान को महसूस ही नहीं होते।

  • 2.0 से लेकर 2.9 की तीव्रता वाले लगभग एक हजार झटके रोजाना दर्ज किए जाते हैं, लेकिन आम तौर पर ये भी महसूस नहीं होते।
  • रिएक्टर स्केल पर 3.0 से लेकर 3.9 की तीव्रता वाले भूकंपीय झटके साल में लगभग 49 हजार बार दर्ज किए जाते हैं, जो अक्सर महसूस नहीं होते, लेकिन कभी-कभार ये नुकसान कर देते हैं।
  • 4.0 से 4.9 की तीव्रता वाले भूकंप साल में लगभग 6200 बार दर्ज किए जाते हैं। इस वेग वाले भूकंप से थरथराहट महसूस होती है और कई बार नुकसान भी हो जाता है।
  • 5.0 से 5.9 तक का भूकंप एक छोटे क्षेत्र में स्थित कमजोर मकानों को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाता है, जो साल में लगभग 800 बार महसूस होता है।
  • 6.0 से 6.9 तक की तीव्रता वाला भूकंप साल में लगभग 120 बार दर्ज किया जाता है और यह 160 किलोमीटर तक के दायरे में काफी घातक साबित हो सकता है।
  • 7.0 से लेकर 7.9 तक की तीव्रता का भूकंप एक बड़े क्षेत्र में भारी तबाही मचा सकता है और जो एक साल में लगभग 18 बार दर्ज किया जाता है।
  • रिएक्टर स्केल पर 8.0 से लेकर 8.9 तक की तीव्रता वाला भूकंपीय झटका सैकड़ों किलोमीटर के क्षेत्र में भीषण तबाही मचा सकता है, जो साल में एकाध बार महसूस होता है।
  • 9.0 से लेकर 9.9 तक के पैमाने का भूकंप हजारों किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही मचा सकता है, जो 20 साल में लगभग एक बार आता है।

Comments
English summary
Delhi, where 11,297 people live on average per square kilometer. According to an assessment, if an earthquake of 7.7 or more magnitude occurs in Delhi, then people living in North Delhi, North-East Delhi, East Delhi and South Delhi are the most vulnerable. The most serious thing is that the most populous district in the country is Eastern Delhi in the National Capital Region, which is the most threatened and sadly, the Eastern Delhi area has the largest population of Delhi.
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