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द्रौपदी मुर्मू: आदिवासी महिला का ओडिशा के छोटे से गांव से राष्ट्रपति भवन तक का कैसा रहा सफर ? जानिए

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नई दिल्ली, 21 जुलाई: भारत को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल गया है। द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति चुन ली गई हैं। लोकतंत्र में उनका ये सियासी सफर दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों के लिए एक आईना भी है और उम्मीदों से भरा हुआ रास्ता भी। द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर चुना जाना, सिर्फ आदिवासी समाज का सम्मान नहीं है, बल्कि यह देश की नारी शक्ति के गौरव का भी सम्मान है। मुर्मू देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति भी बनी हैं। इनसे पहले सिर्फ प्रतिभा पाटिल को यह मौका मिला था। आइए, द्रौपदी मुर्मू के संघर्ष और सादगी भरे राजनीतिक जीवन पर एक नजर डालते हैं।

झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल रहीं

झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल रहीं

झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू प्रदेश की पहली आदिवासी राज्यापाल ही नहीं रहीं, बल्कि वह 2000 में राज्य के निर्माण के बाद प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनी थीं। वह ओडिशा की पहली महिला और आदिवासी नेता हैं, जो देश के किसी राज्य की गवर्नर बनीं और अपना कार्यकाल पूरा किया। भाजपा ने उन्हें 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी बनाया था। वैसे, 2017 चुनाव में भी इस पद के लिए उनका नाम संभावितों में आ चुका था। द्रौपदी वैसे तो मूल रूप से ओडिशा के छोटे से गांव से हैं और राज्य विधानसभा में रायरंगपुर का दो-दो बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

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राजनीतिक करियर 1997 से शुरू हुआ

राजनीतिक करियर 1997 से शुरू हुआ

द्रौपदी मुर्मू के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1997 में हो चुकी थी,। वह ओडिशा के रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र में पहले काउंसलर चुनी गईं और फिर उसकी वाइस चेयरपर्सन बनीं। बीजेपी ने उसी साल मुर्मू को ओडिशा अनसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश उपाध्यक्ष भी बनाया। बाद में वह इसकी अध्यक्ष बनीं। 2013 में पार्टी ने उन्हें एसटी मोर्चा का राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य भी नियुक्त किया।

ओडिशा में सर्वश्रेष्ठ एमएलए का 'नीलकंठ अवॉर्ड' पा चुकी हैं

ओडिशा में सर्वश्रेष्ठ एमएलए का 'नीलकंठ अवॉर्ड' पा चुकी हैं

2007 में ओडिशा सरकार द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ एमएलए के लिए 'नीलकंठ अवॉर्ड' दे चुकी है। ओडिशा में राजनीति करने के दौरान उन्होंने आदिवासी समुदाय के कल्याण और उत्थान के लिए काफी बढ़-चढ़कर योगदान दिया। जानकारी के मुताबिक 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भी पीएम मोदी ने उनके नाम पर विचार किया था, लेकिन आखिरकार राम नाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाई गई थी। वैसे झारखंड के राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यकाल को भी प्रधानमंत्री काफी सराह चुके थे।

बिना वेतन पढ़ाया करती थीं

बिना वेतन पढ़ाया करती थीं

द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले से आती हैं और उनके आदिवासी और महिला होने की वजह से ही भाजपा ने उनके नाम पर ट्रंप कार्ड चला था और वह कामयाब रहा। मुर्मू की वजह से विपक्ष की एकता भी तार-तार हो गई। राजनीति में आने से पहले मुर्मू टीचर रही हैं। समाज सेवा के प्रति उनका समर्पण ऐसा रहा है कि रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटिग्रल एजुकेशन सेंटर में वह बिना सैलरी के पढ़ाती थीं। उनकी राजनीति में पैठ का अंदाजा इसी से लग सकता है कि नवीन पटनायक के उभरने की वजह से बीजेपी ओडिशा में कोई ज्यादा कमाल नहीं कर पाती, बावजूद इसके वह अपनी सीट से जीतने में सफल होती रहीं।

प्रशासनिक तौर पर भी काफी अनुभवी हैं द्रौपदी मुर्मू

प्रशासनिक तौर पर भी काफी अनुभवी हैं द्रौपदी मुर्मू

ओडिशा में बीजेडी और बीजेपी गठबंधन सरकार के दौरान द्रौपदी मुर्मू 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य और ट्रांसपोर्ट और फिर बाद में मत्स्य और पशुपालन संसाधन विभाग में मंत्री का दायित्व भी संभाल चुकी हैं। जब, केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो 2015 में उन्हें झारखंड की पहली महिला और आदिवासी गवर्नर बनाया गया। यानी राष्ट्रपति भवन में पहुंचने से पहले भी उनके पास एक लंबा प्रशासनिक अनुभव है। बहुत ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मुर्मू ओडिशा के बहुत ही पिछड़े जिले से आती हैं। लेकिन, सभी तरह की कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई के प्रति उनकी ललक ऐसी थी कि उन्होंने शिक्षा से कोई समझौता नहीं किया।

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निजी जीवन में काफी दुख देखे हैं

निजी जीवन में काफी दुख देखे हैं

64 साल की द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक करियर और समाज सेवा के प्रति समर्पण भाव जितना ही सफल और शानदार रहा है, निजी जीवन उतना ही त्रासदी से भरा रहा है। वह अपने पति श्याम चरण मुर्मू और दो बेटों को समय से काफी पहले खो चुकी हैं। वह एनडीए उम्मीदवार के रूप में भारी बहुमत से चुनकर देश की अगली राष्ट्रपति बनी हैं। इससे ना सिर्फ पूरे देश के आदिवासी समाज का, बल्कि देश का भी दुनिया में गौरव बढ़ा है।

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English summary
Droupadi Murmu: A tribal woman who reached Rashtrapati Bhavan from a small village in Odisha on the strength of her struggle and dedication, know about her entire journey
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