क्या साहिल को उनके नाम की वजह से मार दिया गया? ग्राउंड रिपोर्ट
रात के पौने ग्यारह बजे होंगे. बदहवास साहिल ने तीसरी मंज़िल पर अपने घर का दरवाज़ा खटखटाया. वो बुरी तरह हांफ़ रहा था. आंखें लाल थीं.
उसकी छोटी बहन अंजलि उस पल को याद करके फफक पड़ती हैं. वो कहती हैं, "सबसे पहले वो मुझसे ही मिला था, मैंने ही उसके लिए दरवाज़ा खोला था. वो दर्द से तड़प रहा था."आंखें दर्द भरी थीं. हमने पहली बार उसे इस तरह दर्द से तड़पते देखा था
रात के पौने ग्यारह बजे होंगे. बदहवास साहिल ने तीसरी मंज़िल पर अपने घर का दरवाज़ा खटखटाया. वो बुरी तरह हांफ़ रहा था. आंखें लाल थीं.
उसकी छोटी बहन अंजलि उस पल को याद करके फफक पड़ती हैं. वो कहती हैं, "सबसे पहले वो मुझसे ही मिला था, मैंने ही उसके लिए दरवाज़ा खोला था. वो दर्द से तड़प रहा था."
"उसका मुंह पसीने से लाल था, आंखें दर्द भरी थीं. हमने पहली बार उसे इस तरह दर्द से तड़पते देखा था. वो कह रहा था बहन मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मुझे सांस नहीं आ रही है."
अंजलि के मुताबिक साहिल के हाथ-पैरों पर चोट के निशान थे. वो फ़र्श पर लेट गया. मां संगीता ने साहिल का सिर गोद में रख लिया.
संगीता बताती हैं, "मैंने उसे उठाकर अपनी गोद में लिटाया, उसने दो-चार लंबी-लंबी सांसे लीं और फिर बेहोश सा हो गया. मेरे छोटे बेटे ने गली में शोर मचाया. गली वाले तुरंत ऊपर आ गए. उसे अस्पताल ले जाया गया. पहुंचते ही डॉक्टर ने बता दिया कि वह ख़त्म हो गया है."
ये 30 अगस्त की रात की बात है. दिल्ली के मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास गली नंबर 14 में रहने वाले साहिल पर पास ही विजय पार्क की गली नंबर 5 में हमला हुआ था. बहुत मामूली बात से शुरू हुई लड़ाई में 23 साल के साहिल की जान ज़ाया हो गई.
परिवार वालों का आरोप है कि साहिल को मुसलमान समझकर इतना मारा गया कि उसकी मौत हो गई हालांकि पुलिस और अभियुक्तों का परिवार इस बात से पूरी तरह इनकार करते हैं. पुलिस का कहना है कि ये स्कूटी टकराने का विवाद था.
जाफ़राबाद थाने के एसएचओ और इस हत्याकांड के जांच अधिकारी विवेक त्यागी कहते हैं, "इस घटना का सांप्रदायिकता से कोई लेना देना नहीं है. ये मामूली बात पर हुआ विवाद था."
लेकिन सच यही है कि साहिल की मौत हो चुकी है. अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए उनकी मां कहती हैं, "मेरी दुनिया लुट गई. मुझे पता नहीं था कि मैं उसे आख़िरी बार देख रही हूं. वो मेरी गोद में ही था. मुझे नहीं पता था कि वो मेरी गोद में ही चला गया था."
संगीता के मुताबिक साहिल बार-बार कह रहा था कि उसे बेवजह मारा गया है. वो कहती हैं, "देखने वालों ने हमें बताया है कि उसे बहुत बुरी तरह से मारा था. वो गुहार लगा रहा था लेकिन उन्हें रहम नहीं आया."
क्या साहिल को मुसलमान समझकर मारा?
परिजनों का आरोप है कि उनके बेटे का नाम साहिल था और इसी नाम की वजह से उसे मुसलमान समझकर मारा गया. साहिल के पिता सुनील सिंह कहते हैं, "उसका नाम साहिल था, हमें लगता है कि उसकी मौत की मुख्य वजह यही है. हमने सुना है कि हमलावर बार-बार उससे कह रहे थे कि ये पंडितों की गली है."
साहिल की मां संगीता कहती हैं, "मेरे बेटे को मुसलमान समझकर मारा है. मेरा बेटा दूसरों की ग़लती की माफ़ी मांग रहा था. उस गली के लोगों ने हमें बताया है कि साहिल नाम की वजह से उसे मारा."
क्या साहिल की मौत की वजह नफ़रत थी. संगीता कहती हैं, "किसी के बच्चे को मार दिया. इससे ज़्यादा नफ़रत क्या होगी. इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि वो हिंदू था या मुसलमान था."
संगीता को दिलासा देने आईं गली नंबर पांच में रहने वाली एक महिला ने बताया कि गली में यह अफ़वाह उड़ी थी कि एक मुसलमान लड़के को मार दिया है.
वो कहती हैं, "मैं उसी गली में रहती हूं. हम जब सुबह उठे तो पता चला कि मुसलमान लड़का मारा है. बाद में पता चला को वो तो हमारा ही बच्चा था."
वहीं अभियुक्त की पत्नी का कहना है कि जिस लड़के की मौत हुई है उससे उनका परिवार पूरी तरह अंजान है. वो कहती हैं कि उनके घर में पड़ोस के मुसलमान बच्चे भी आते हैं और उन्होंने कभी उनसे कोई भेदभाव नहीं किया.
पंडितों वाली गली
साहिल के परिवार का आरोप है कि जिस गली में उसे मारा गया वहां लोग कह रहे थे कि ये पंडितों वाली गली है और बाहर के लोगों को यहां आने नहीं दिया जाएगा.
लेकिन हमने आसपास कई जगह पंडितों वाली गली के बारे में पूछा लेकिन इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी.
सबको ये ज़रूर पता था कि पास की ही गली नंबर पांच में हुए एक झगड़े में एक युवक की मौत हुई है.
अभियुक्त के परिवार के पास ही रहने वाले जय प्रकाश कहते हैं, "ये पंडितों वाली गली नहीं हैं, विजय पार्क की गली नंबर पांच है. हमने कभी नहीं सुना कि ये पंडितों वाली गली है."
मुख्य अभियुक्त की पत्नी का कहना था, "गली तो सबकी है, सभी यहां से आते जाते हैं. क्या हम ये देखेंगे कि कौन हिंदू जा रहा है और कौन मुसलमान?"
"इस गली में मुसलमान भी रहते हैं, हमें कोई आपत्ति नहीं है. किराएदार भी यहां मुसलमान हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है. ये गली सिर्फ़ पंडितों की नहीं हैं. आप पता कर लीजिए, सभी जाति के लोग यहां रहते हैं."
वो कहती हैं, "हमारी गली में भी एक छोटा बच्चा है जिसका नाम साहिल है तो क्या उसे भी मार दिया जाएगा."
हमने जानकारी ली तो पता चला कि इस गली में पंडितों के अलावा अन्य जाति के लोग भी रहते हैं और कुछ मुसलमान परिवार भी यहां रहते हैं.
30 अगस्त की शाम हुआ क्या था?
गली नंबर पांच में रहने वाले लोगों, अभियुक्त के परिजनों और पुलिस के मुताबिक ये विवाद स्कूटी टकराने से शुरू हुआ था.
मुख्य अभियुक्त की पत्नी के मुताबिक, उनके पति घर के बाहर टहल रहे थे. कुछ बच्चे गली में स्कूटी ले जा रहे थे. स्कूटी उनसे हल्की से टकरा गई.
इसी बात पर शुरू हुई कहा सुनी मारपीट तक पहुंच गई.
उनके मुताबिक जिस युवक की मौत हुई है वो स्कूटी पर सवार नहीं था. वो बाद में वहां पहुंचा था.
वो इस बात से इनकार करती हैं कि मृतक का उनके पति से झगड़ा हुआ था. हालांकि कई अन्य लोग नाम न लेने की शर्त पर बताते हैं कि युवक को उसी गली में पीटा गया था.
मुख्य अभियुक्त की पत्नी के मुताबिक घटना के समय उनके पति नशे में थे. इस बात की पुष्टि अन्य लोगों ने भी की है.
उत्तर पूर्वी दिल्ली के डीसीपी एके ठाकुर ने अपने बयान में कहा है कि ये गली में वाहन टकराने से शुरु हुआ झगड़ा था. इसका कोई सांप्रदायिक पक्ष नहीं है.
बिखर गया परिवार
साहिल के पिता सुनील सिंह की एक टांग टूटी हुई है. वो निर्माणाधीन इमारतों में बजरी सप्लाई करने का काम करते हैं. बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले साहिल ने हाल के सालों में पिता के काम की पूरी ज़िम्मेदारी उठा ली थी. इन दिनों पिता घर पर आराम कर रहे थे और बेटा काम कर रहा था. पूरे घर का ख़र्च भी वही उठा रहा था.
सुनील ने कई दिन बाद काम पर लौटने की कोशिश की. वो कहते हैं, "मैंने कल रात काम पर निकलने की कोशिश की. लेकिन घर से निकलते ही मैं सारी रात रोता रहा. उन्हीं रास्तों पर तो वो मेरे साथ चलता था. उसने मेरी पूरी ज़िम्मेदारी संभाल ली थी. मैं तो घर से निकल ही नहीं रहा था. वही पूरे परिवार को चला रहा था."
दो कमरों के एक छोटे फ्लैट में रहने वाले इस परिवार को अब भविष्य की चिंता है. मां कहती हैं, "मेरी बेटी को कॉलेज शुरू करना है. बेटा स्कूल जा रहा है. सारी ज़िम्मेदारी बड़ा बेटा ही उठा रहा था. अब वो इस तरह से ग़म देकर चला गया है. मैं नहीं जानती कि आगे मेरा परिवार अब कैसे चलेगा."
साहिल के 13 वर्षीय छोटे भाई आदित्य सिंह को लगता है अचानक उस पर परिवार संभालने की ज़िम्मेदारी आ गई है.
रुआंसी आवाज़ में वो कहता है, "भाई चला गया है, मैं मम्मी-पापा का ग़म दूर करना चाहता हूं. मेहनत करके बड़ा आदमी बनना चाहता हूं."
वहीं यहां से क़रीब 300 मीटर दूर रह रहे मुख्य अभियुक्त के परिवार की हालत भी बहुत बेहतर नहीं है. पेशे से ड्राइवर पति की गिरफ़्तारी के बाद अब पत्नी के कंधों पर अचानक दोहरी ज़िम्मेदारी आ गई है.
तीन बच्चों का पेट पालने के अलावा आगे की क़ानूनी लड़ाई भी उन्हें ही लड़नी है. वो एक बंटे हुए संयुक्त घर में रहती हैं. इस घटना के बाद घर के बाकी लोगों ने उनसे किनारा सा कर लिया है.
वो कहती हैं, "अगर मेरे पति रिहा नहीं हुए तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी. मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी. हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. बस मेरे पति ही कमाने वाले थे. मेरे तीन बच्चे पढ़ रहे हैं. मेरे लिए बहुत मुश्किल वक़्त है. मुझे नहीं मालूम कि मैं कहां जाऊं, किससे मिलूं. किसके हाथ-पैर जोड़ूं."
छोटी-छोटी बातों पर मारे जा रहे हैं लोग
साहिल की मौत ने उसकी छोटी बहन अंजलि को झकझोर दिया है. वो अब सिविल सेवा की परीक्षा पास करना चाहती है ताकि अपने परिवार को इंसाफ़ दिला सके और ऐसी घटनाओं को रोक सके.
वो कहती हैं, "ये जो लोगों को छोटी-छोटी बातों पर बेवजह मारा जा रहा है, मैं इस माहौल को बदलना चाहती हूं. आज किसी को किसी पर विश्वास नहीं है, धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर या बेवजह बस लोग अपनी ताक़त दिखाने का मौका तलाशते रहते हैं. कमज़ोर को मारने वाले ऐसे लोगों के मन में क़ानून का डर पैदा करना चाहती हूं."
अंजलि को शिकायत आज के दौर की राजनीति और नेताओं से भी है. वो कहती हैं, "हमारे प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि देश विकास कर रहा है, देश आगे बढ़ रहा है. लेकिन देश रुक गया है. धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर. वो इतने भाषण देते हैं, हर विषय पर लेकिन कभी उन्होंने देश के लोगों की सोच पर कोई भाषण नहीं दिया."
"सबसे पहले देश के लोगों की सोच बदलनी होगी. उनके दिमाग़ में ये बात डालनी होगी कि हर इंसान इंसान ही है भले ही उसका मज़हब कोई भी हो, जाति कोई भी हो. बेटा बेटा होता है चाहे वो जिसका हो, भाई भाई ही होता है चाहो वो हिंदू हो या मुसलमान हो."
साहिल के छोटे भाई आदित्य कहते हैं, "मैं सबकुछ बदलना चाहता हूं, कुछ भी अच्छा नहीं है. सबसे पहले तो मैं ये बदलाव लाना चाहता हूं कि कोई किसी को मारे ना, और अगर मार दे तो उसे कड़ी से कड़ी सज़ा मिले."
वहीं अभिुक्त के परिवार की एक युवती का कहना है कि इस घटना के बाद उसे सबसे ज़्यादा दुख इस बात का है कि मीडिया के एक वर्ग में इसे सांप्रदायिक रुख दिया जा रहा है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्नातक की छात्रा इस युवती का कहना था, "सबसे बुरा तो ये सुनकर लगता है कि आज के दौर में भी लोग ये सोचते हैं कि धर्म के नाम पर लोगों को मारा जा रहा हूं. मैं जिस समाज में रह रही हूं वहां हिंदू-मुसलमान के नाम पर कोई भेदभाव नहीं हैं. इस गली में हर धर्म जाति के लोग रहते हैं. हिंदू, मुसलमान, जैन सब रहते हैं. बिहार से आए लोग, जाट-गुर्जर, सब यहां रहते हैं."
वहीं अयोध्या से आईं साहिल की बुआ को दुख है कि उनके भतीजे की मौत पर समाज को बांटा जा रहा है. वो कहती हैं, "सुनने में आ रहा है कि हमारे बेटे को नाम की वजह से मारा गया है. अगर ये सच भी है तो किसी एक व्यक्ति या परिवार के अपराध की वजह से हम अपने पूरे देश या समाज को अपराधी साबित नहीं कर सकते हैं. हमारे बेटे की मौत पर राजनीति न हो. किसी बेग़ुनाह पर उंगली न उठायी जाए. जिन्होंने उसे मारा बस उन्हें सज़ा हो."
बीजेपी से जुड़ा रहा है साहिल का परिवार
साहिल के पिता साल 1989 में अपना पैतृक घर छोड़कर दिल्ली चले आए थे. उनका परिवार मूल रूप से प्रतापगढ़ से है जहां उनके पिता रामा शंकर सिंह बीजेपी का चर्चित चेहरा थे.
सुनील सिंह के मुताबिक उनके पिता ने साल 2004 लोकसभा चुनावों में प्रतापगढ़ से बीजेपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गए थे.
वो कहते हैं, "मेरे पिता बीजेपी में ही थे. यूपी बीजेपी में प्रदेश महामंत्री के पद पर भी रहे. ज़िला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. वो जनसंघ के समय से पार्टी से जुड़े थे."
साहिल की बुआ कहती हैं, "मेरे पिता आपातकाल के दौरान 19 महीने कल्याण सिंह के साथ जेल में थे. बीजेपी के पुराने दौर के सभी नेताओं से उनकी पहचान थी. जो पैसा उन्हें पार्टी फंड से चुनाव लड़ने के लिए मिला था उसमें से बची एक लाख रुपए की रकम उन्होंने चुनाव बाद पार्टी को लौटा दी थी."
जाफ़राबाद पुलिस ने साहिल की हत्या के आरोप में एक अभियुक्त को गिरफ़्तार किया है. एक नाबालिग को भी गिरफ़्तार किया गया है.
जांच अधिकारी विवेक त्यागी कहते हैं, "अभी हम क़त्ल का मामला दर्ज करके जांच कर रहे हैं. दो लोग गिरफ़्तार किए गए हैं. आगे और भी गिरफ़्तारियां संभव हैं."
साहिल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी नहीं आई है. उनकी मौत कैसे हुई ये पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही पूरी तरह साफ़ हो सकेगा.
2015 के बाद से भारत के अलग अलग राज्यों में मॉब लिंचिंग के कई मामले सामने आ चुके हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते चार सालों में ऐसी 100 से ज़्यादा घटनाएं देखने को मिली हैं.
इनमें ज्यादातर मामलों में गोरक्षा के नाम पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया है. इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और 10 राज्यों की राज्य सरकारों से पूछ चुकी है कि मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए क्या क्या क़दम उठाए गए हैं।