दिल्ली हाईकोर्ट ने दी 22 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत, बच्चे को मनोवैज्ञानिक नुकसान की थी संभावना
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नई दिल्ली, 25 सितंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला को अपने 22 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से गिराने की अनुमति दी है, क्योंकि भ्रूण में एक निश्चित जन्मजात विसंगति का पता चला था। कोर्ट ने यह कहते हुए अनुमति दी कि बच्चे के जन्म के समय उसे मनोवैज्ञानिक नुकसान होने की संभावना है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने 31 वर्षीय याचिकाकर्ता की अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट देखकर माना कि यह बच्चा विभिन्न शारीरिक विकृतियों से पीड़ित होगा और ठीक होने के लिए उसे कई सर्जरी से गुजरना होगा, जो उसके जीवन के स्तर को बुरी तरह से प्रभावित करेंगी।
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2019
में
महिला
के
हुए
थे
जुड़वां
बच्चे
महिला
ने
जज
को
बताया
कि
2019
में
उसे
जुड़वां
बच्चे
पैदा
हुए
थे।
हालांकि
कुछ
शारीरिक
जटिलताओं
के
कारण
बच्चों
का
जन्म
समय
से
पहले
हुआ
था
और
उनमें
से
एक
बच्चे
की
शारीरिक
विकृति
के
कारण
मौत
हो
गई।
महिला
ने
कहा
कि
उसके
दूसरे
बच्चे
का
अभी
भी
इलाज
चल
रहा
है,
ऐसी
स्थिति
में
वह
मानसिक
रूप
से
कोई
आघात
सहने
की
स्थिति
में
नहीं
है।
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कोर्ट
ने
महिला
के
पक्ष
में
दिया
फैसला
कोर्ट
ने
तमाम
सबूतों
पर
ध्यान
देते
हुए
कहा
कि
चूंकि
इस
बात
की
पूरी
संभावना
है
कि
यदि
याचिकाकर्ता
को
अपनी
गर्भावस्था
को
समाप्त
करने
की
अनुमति
नहीं
दी
जाती
है,
तो
उसे
गंभीर
मनोवैज्ञानिक
नुकसान
होने
की
संभावना
है,
मैं
याचिकाकर्ता
के
वकील
से
सहमत
हूं
कि
वर्तमान
मामले
में,
याचिकाकर्ता
को
चाहिए
उसकी
गर्भावस्था
को
समाप्त
करने
की
अनुमति
दी
जाए।"
अदालत
ने
कहा
कि
वर्तमान
मामले
में
गठित
मेडिकल
बोर्ड
अल्ट्रासाउंड
रिपोर्ट
में
किए
गए
निष्कर्षों
और
टिप्पणियों
से
असहमत
नहीं
है।
इसलिए
यह
आदेश
दिया
जाता
है
कि
याचिकाकर्ता
उसकी
गर्भावस्था
से
जुड़े
जोखिमों
को
ध्यान
में
रखते
हुए
किसी
भी
अस्पताल
में
अपना
गर्भपात
करा
सकती
है।
बता दें कि महिला का भ्रूण 'न्यूकल एडिमा और एक द्विपक्षीय फांक होंठ और तालू' से पीड़ित था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट 3 के सेक्शन के तहत 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को गिराया नहीं जा सकता हालांकि, अगर मां की जान को खतरा हो या होने वाले बच्चे के आगे के जीवन को लेकर समस्या हो तो ऐसा किया जा सकता है।