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Covid19: भारत ने संयुक्त राष्ट्र की इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई, जानिए क्या है मामला?

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नई दिल्ली। भारत सरकार ने कोरोना वायरस महामारी संकट के बीच संयुक्त राष्ट्र की उक्त टिप्पणी पर जोरदार प्रहार किया है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा कुछ वर्ग विशेष के लोगों के खिलाफ कदम उठाने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र का इशारा तब्लीगी जमात की ओर था, जिसके चलते भारत में कोरोना वायरस संक्रमित मामलों में तेजी से वृद्धि आई है।

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शनिवार को जारी एक बयान में यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में भारतीय प्रतिनिधि जेएस राजपूत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की उक्त टिप्पणी "अत्यधिक आपत्तिजनक" थी। राजपूत ने कहा कि "उक्त मामले भारत सरकार, प्रबुद्ध नागरिकों और देश की सिविल सोसाइटी द्वारा देखे जा रहे हैं। राजपूत ने यह भी कहा कि मौजूदा अवधि के लिए अधिकांश वैश्विक निकाय "अस्थिर और अनुपयुक्त" थे और भारत COVID-19 युग के बाद उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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राजपूत ने बताया कि हालिया NITI अयोग की बैठक में यह बताया गया कि भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर, रेनाटा लोक-डेसालियन ने एक समुदाय विशेष पर लक्षित दोषारोपण के मुद्दे को सामने लेकर आई थी और मैंने पाया कि यह अत्यधिक आपत्तिजनक है। मीडिया समूह से बातचीत में राजपूत ने कहा कि देश में ऐसे मामलों को प्रबुद्ध नागरिकों और सिविल सोसाइटी और भारत सरकार द्वारा देखा जा रहा है।

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राजपूत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के रेजीडेंट कोआर्डीनेटर के "हस्तक्षेप" को मजबूत अपवाद के रूप में लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां ​​विशेष रूप से भारत के संदर्भ में उन मुद्दों पर लिप्त हैं, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों का हिस्सा नहीं हैं। मुझे जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर उनके हस्तक्षेप याद है जब वे अचानक तथाकथित मानव अधिकारों के उल्लंघन के बारे में चिंतित हो गए थे।"

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राजपूत ने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपने आंतरिक मुद्दों को संभालने में सक्षम है और देश को भरोसा है कि वह अपने आंतरिक मुद्दों को हल करेगा।" उन्होंने बताया कि 7 अप्रैल को संपन्न हुई निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय करने वाले सशक्त समूह की सातवीं बैठक में रेनाटा लोक-डेसालियन ने प्रवासी मजदूरों के मुद्दों को संबोधित करने और एक समुदाय विशेष के संघर्ष के कलंक को दूर करने की जरूत बताई थी। यह मीटिंग NITI Aayog के सीईओ अमिताभ कांत की अध्यक्षता में हुई थी।

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उसके अगले दिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी की, जिसमें कहा गया था कि संचारी रोगों के प्रकोप के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य की गड़बड़ी से लोगों और समुदायों के बीच में सामाजिक अलगाव, निरादर, पूर्वाग्राही डर और चिंता हो पैदा सकती है।"

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एडवाइजरी के मुताबिक इस तरह के व्यवहार अराजकता और अनावश्यक सामाजिक व्यवधानों को बढ़ा सकते हैं। मंत्रालय की उक्त सलाह दिल्ली में तब्लीगी जमात के एक मार्च के आयोजन के दौरान देश भर में Covid19 के पॉजिटिव मामलों में आई तेजी के बाद मुस्लिमों पर उंगली उठाने के मामले में के बाद सामने आई थी।

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NCERT के पूर्व निदेशक राजपूत ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निकायों को बदलते समय में पुनर्गठन की जरूरत होगी। "संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का पुनर्गठन जरूरी होगा और भारत इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाएगा। संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश निकाय मौजूदा समय के लिए अस्थिर और अनुपयुक्त हो गए हैं।

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बकौल राजपूत, यह एक उदाहरण है कि भारत यूएनएससी के स्थायी सदस्य का हिस्सा नहीं है। हालांकि मुझे विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की भूमिका को कोरोनो वायरस महामारी के अंत के बाद गंभीरता से और गहराई से विश्लेषण किया जाएगा।

यह भी पढ़ें-Covid19: प्रधान सचिव ने आवश्यक चीजों की उपलब्धता पर सशक्त समूहों के प्रयासों की समीक्षा बैठक की

Comments
English summary
In a statement released on Saturday, JS Rajput, the Indian representative on the UNESCO Executive Board, said the UN's remarks were "highly objectionable". Rajput said that "the above cases are being looked after by the Government of India, enlightened citizens and the civil society of the country. Rajput also said that for the current period most of the global bodies were" unstable and unsuitable "and India post COVID-19 era Will play an important role in that.
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