कोरोना लॉकडाउन: तेलंगाना से झारखंड जा रही ट्रेन में सवार मज़दूरों का हाल
गुलाब सिंह महतो को गुरुवार रात 11 बजे तक पता नहीं था कि उनके लिए ख़ुशख़बरी आने वाली है. वे खाना खा चुके थे. रात 9 बजे ही घर के लोगों से फ़ोन पर बात भी कर ली थी. लॉकडाउन में फंसे होने की चिंता और बेरोज़गारी के दंश के कारण उन्हें कई रातों से मुकम्मल नींद नहीं आई थी. फिर भी वे सोने का जतन कर रहे थे. तभी उनकी कंपनी के कुछ लोग आए.
गुलाब सिंह महतो को गुरुवार रात 11 बजे तक पता नहीं था कि उनके लिए ख़ुशख़बरी आने वाली है. वे खाना खा चुके थे. रात 9 बजे ही घर के लोगों से फ़ोन पर बात भी कर ली थी. लॉकडाउन में फंसे होने की चिंता और बेरोज़गारी के दंश के कारण उन्हें कई रातों से मुकम्मल नींद नहीं आई थी. फिर भी वे सोने का जतन कर रहे थे.
तभी उनकी कंपनी के कुछ लोग आए. बताया कि एक ट्रेन झारखंड जाने वाली है. यह उनके लिए ईश्वर से मिलने के समान था. वो खुशी में कूद गए. मानो उन्हें सांस मिल गई हो. नई ज़िंदगी मिल गई हो. उनके अंदर का गुलाब फिर से खिल गया हो.
उन्होंने तत्काल अपना बैग पैक किया. उनके साथी भी ऐसा ही करने लगे. घंटे भर बाद एक बस वहां पहुंची. गुलाब सिंह महतो और उनके साथी उसी बस से लिंगमपल्ली पहुंचे. तब तक सुबह के साढ़े चार हो गए थे. तेलंगाना राज्य के लिंगमपल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर उनकी तरह सैकड़ों लोग थे. सबको झारखंड जाना था. अपने गांव, अपने घर.
बीबीसी से अपनी यह कहानी साझा करते हुए कई दफ़ा उनकी आवाज़ भर्रा गई. उनकी ट्रेन भी पटरियों पर दौड़ रही है और उनका मन भी हिलोरें मार रहा है. उन्हें अब यकीन हो गया है कि वे घर पहुंच जाएंगे.
गुलाब सिंह महतो ने बीबीसी से कहा, "लिंगमपल्ली स्टेशन के बाहर सबकी जांच की गई. पांच बजे सुबह जब ट्रेन खुली, तो यह मेरे लिए जिंदगी का पहला अनुभव था. हम यह जानते थे कि एसी टू में दो ही लोग बैठते हैं. कभी चढ़े नहीं थे. आज स्लीपर में बैठे हैं. लेकिन, एक सीट पर सिर्फ दो लोग. यह मेरे लिए सपना था. अब हकीकत बन रहा है. हम घर वापस आ रहे हैं और आराम से आ रहे हैं. ट्रेन में सब लोग झारखंड के हैं."
क्या कोई पैसा लगा. खाना कैसे खाया? इस सवाल पर गुलाब सिंह महतो कहते हैं, ''हमने कोई पैसा नहीं दिया. बिना किराया के हमें ट्रेन में चढ़ाया गया. खाना मिला और पानी की बोतल भी. हम झारखंड सरकार के शुक्रगुज़ार हैं. आप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मेरा जोहार बोलिएगा. हम बहुत खुश हैं कि कोई रांची से हमको फ़ोन किया. हम लोग यह बात ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे. पहली बार लगा कि कोई हमारे लिए सोच रहा है.''
गुलाब सिंह महतो की आवाज़ फिर भर्राने लगती है. ट्रेन चल रही है. नेटवर्क आ-जा रहा है. हमारी बात सिग्नल जाने के कारण बीच में ही कट जाती है. गुलाब सिंह हैदराबाद के आईआईटी सेंगरेड्डी में रहते हैं और एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के लिए काम करते हैं. उनका पैतृक घर बोकारो जिले के नवाडीह प्रखंड में है. यहां उनके बच्चे और घरवाले उनका इंतजार कर रहे हैं.
कुछ ऐसी ही कहानी उस ट्रेन में सवार वाहिद अंसारी, टिंकू राजा, दीनू सिंह, शाहिद मियां और भीमलाल कर्मकार की है. ये सब लोग बोकारो ज़िले के रहने वाले हैं और सपनों की उस ट्रेन में सफ़र कर रहे हैं, जो उनकी मुलाक़ात ज़िंदगी से कराने वाली है. इनका मानना है कि घर वापसी नयी जिंदगी मिलने के माफिक है. ट्रेन की खिड़कियां खुली हैं. बाहर आसमान साफ है और मन में कई बातें.
कब पहुंचेगी ट्रेन
दक्षिण भारत में फंसे झारखंड के मज़दूरों को लेकर शुक्रवार की सुबह लिंगमपल्ली (तेलंगाना) से खुली विशेष ट्रेन रात 11 बजे के बाद हटिया (झारखंड) पहुंचेगी.
इस ट्रेन को रात 11 बजे ही हटिया पहुंचना है लेकिन अभी यह देरी से चल रही है. आशंका है कि ट्रेन अपने निर्धारित समय के बाद यहां आएगी. इस ट्रेन में करीब 1176 लोग सवार हैं. इनके खाने और आने का इंतज़ाम झारखंड सरकार ने किया है.
हालांकि, रेलवे या झारखंड सरकार की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया है.
रांची रेल मंडल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी नीरज कुमार ने बीबीसी से सिर्फ़ इतना कहा कि अभी हम लोग सिर्फ़ यह कह सकते हैं कि एक ट्रेन लिंगमपल्ली से खुली है, जो रात 11 बजे हटिया पहुंचेगी. हम लोगों ने इन यात्रियों को रिसीव करने का इंतज़ाम किया है.
सरकार के इंतजाम
इस बीच झारखंड सरकार के एक वरिष्ठतम अधिकारी ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से स्वयं इसकी पहल की थी.
रेलवे से आधिकारिक बातचीत और प्रक्रिया पूरी करने के बाद हम लोगों ने ट्रेन खुलवाने का फैसला लिया. यह सब गुरुवार की आधी रात तक चलता रहा. अब यह ट्रेन रात आठ बजे झारखंड के चक्रधरपुर स्टेशन पर पहुंचेगी. वहां सभी यात्रियों को डिनर के पैकेट दिए जाएंगे. उनका स्वागत फूलों के गुलदस्ते और मास्क से किया जाएगा.
हटिया पहुंचने पर सभी लोगों की फिर से थर्मल स्क्रीनिंग होगी. इसके बाद उन्हें होम क्वारंटीन रहने को कहा जाएगा. जो लोग सरकार के क्वारंटीन सेंटर में रहना चाहेंगे, उन्हें हम अपने यहां रखेंगे.
उन्होंने बताया, ''झारखंड सरकार ने 60 बसों का इंतजाम किया है. हर बस में 25 से 28 लोग बैठेंगे. उन्हें उनके गृह ज़िलों में भेजा जाएगा. इसके लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के 200 लोगों की प्रतिनियुक्ति की गई है. 200 पुलिस जवानों को भी हटिया स्टेशन पर प्रतिनियुक्त किया गया है. रांची के उपायुक्त राय महिमापत रे की देखरेख में यह सारी व्यवस्था की जा रही है.''
मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पूरी प्रक्रिया से खुश हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा, ''हमारी सरकार काम करने में यकीन रखती है. हम ढिंढोरा नहीं पीटना चाहते. हम चुपचाप काम करते हैं ताकि झारखंड में रहने वाले हर आदमी के सम्मान और रोजी-रोटी की सुरक्षा हो सके. हमारी कार्ययोजना तैयार है और जल्दी ही हमारे सभी प्रवासी छात्र और मजदूर अपने घर वापस लौटेंगे.''