कावेरी विवाद-पानी के बंटवारे के अलावा कोई विकल्प नहीं?
बेंगलुरु। कावेरी नदी के पानी में आग 'लग' गई है और इसमें बेंगलुरु जल रहा है। शहर के 16 इलाकों में कर्फ्यू है। 56 गाड़ियां फूंक दी गईं हैं और एक की मौत हो चुकी है। इन सबके बावजूद अभी भी कावेरी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु आमने-सामने हैं। कोई भी समझौते को तैयार नहीं है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि कावेरी के पानी के बंटवारे के अलावा और कोई विकल्प क्यों नहीं है?
इंडिया
स्पेंड
के
आंकड़ों
की
मानें
तो
कावेरी
बांध
में
उतना
पानी
नहीं
है
जितना
तमिलनाडु
और
कर्नाटक
को
औसतन
उपयोग
के
लिए
चाहिए।
वहीं
सुप्रीम
कोर्ट
के
फैसले
के
बाद
इस
विवाद
को
और
तूल
मिल
गया
है।
आपको
बता
दें
कि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
दस
दिन
यानी
15
सितंबर
तक
कर्नाटक
को
हर
रोज
15
हजार
क्यूसेक
पानी
तमिलनाडु
को
देने
को
कहा
था।
क्या
है
कावेरी
विवाद,
जानें
क्यों
मचा
है
हंगामा?
लेकिन जब कर्नाटक राजी नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संशोधन किया और 15 हजार क्यूसेक को 12 हजार करने का आदेश दिया। यहां तक तो ठीक था लेकिन कोर्ट ने तारीख 20 सितंबर तक कर दी। इस हिसाब से पहले डेढ़ लाख क्यूसेक देना था जो अब एक लाख 80 हजार क्यूसेक से ज्यादा हो गया है।
तमिलनाडु में ज्यादा है पानी की कमी
वॉटर कमिशन डाटा (Water Commission data) के मुताबिक कर्नाटक को पानी की जरूरत से 30 प्रतिशत कम पानी मिलता है। वहीं तमिलनाडु को 49 प्रतिशत कम। तमिलनाडु के पास कावेरी बांध में जितना पानी है उससे एक चौथाई पानी ही कर्नाटक के पास है।
खराब मानसून है तनाव की वजह
कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर गुस्सा तभी सामने आता है जब बारिश कम होती है। अच्छे मॉनसून में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कोई तनाव नहीं दिखता लेकिन अगर बारिश कम हुई तो दोनों ही राज्यों में राजनीतिक दलों से लेकर आम लोग तक एक दूसरे के सामने आ जाते हैं।
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