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क्या मोदी सरकार न्याय व्यवस्था में आरक्षण दे सकती है?

वह बताते हैं, "राज्य अपने यहां वंचित वर्गों की आबादी के मुताबिक़ आरक्षण देते हैं क्योंकि किसी राज्य में एससी ज़्यादा हैं तो कहीं पर एसटी ज़्यादा हैं. प्रश्न ये है कि क्या इस सेवा में राज्यों की स्थिति के हिसाब से आरक्षण होगा या अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण दिया जाएगा. और इससे समस्या का समाधान किस तरह होगा. मुझे लगता है कि इससे नई समस्याएं पैदा होंगीं."

By BBC News हिन्दी
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मोदी
Reuters
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केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बीते सोमवार को लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान अखिल भारतीय न्याय सेवा शुरू करने के मुद्दे को एक बार फिर उठाया.

उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सरकार न्यायपालिका में अनुसूचित जाति-जनजाति को आरक्षण देना चाहती है.

एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान ने भी इस मुद्दे पर आम सहमति बनाए जाने की वकालत की है.

इसके बाद देश की अदालतों में जजों की कमी एक राजनीतिक मुद्दा बनता दिख रहा है.

बीजेपी की पॉलिटिक्स क्या है?

बीजेपी ने एससी-एसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश जारी होने के बाद अध्यादेश लाने में ख़ासी देरी दिखाई थी.

इसके बाद देशभर में कई जगहों पर दलित संगठनों ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किए थे, जिसके बाद बीजेपी आखिरकार अध्यादेश ले आई.

लेकिन इसका असर उलटा पड़ता दिखा. सवर्ण समाज ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर उतर बीजेपी के इस कदम का विरोध किया.

इन्हीं घटनाक्रमों के बीच मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए जिनमें बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी आगामी आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए दलित समाज को लुभाने की कोशिश कर रही है?

राहुल गांधी
Getty Images
राहुल गांधी

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राधिका रामाशेषन इसे बीजेपी की राजनीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखती हैं.

वह कहती हैं, "बीजेपी को 2014 के आम चुनाव और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलित समाज के वोट मिले थे. ऐसे में बीजेपी कोशिश कर रही है कि दलित समाज को पार्टी के एक मजबूत वोट बैंक के रूप में विकसित किया जाए."

"और अगर ये बात करें कि क्या बीजेपी दलितों को लुभाने के चक्कर में सवर्ण समाज से किनारा कर लेगी. तो इसका जवाब है कि बीजेपी ने आने वाले दिनों के लिए अपनी रणनीति कुछ इस तरह बनाई है कि कुछ ऐसे आर्थिक फ़ैसले लिए जाएं जिससे व्यापारी वर्ग को एक बार फिर ये अहसास हो कि बीजेपी उनकी ही पार्टी है."


दलितों को लुभाने की कीमत

राधिका रामाशेषन मानती हैं कि अगर दलितों को लुभाने के लिए राजनीति तेज़ करने की बात करें तो बीजेपी इस मुद्दे पर बयानबाजी से बचेगी.

वह बताती हैं, "मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरक्षण पर कहा था 'कोई माई का लाल, आरक्षण नहीं ख़त्म कर सकता'. इसके बाद शिवराज सिंह चौहान चुनाव हार गए थे. ऐसे में बीजेपी इस तरह की बयानबाजी से ज़रूर बचेगी."

सिंधिया, शिवराज, कमल नाथ
Reuters
सिंधिया, शिवराज, कमल नाथ

क्या बीजेपी ये कर सकती है?

अखिल भारतीय न्याय सेवा को शुरू करने के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि न्यायपालिका में निचले स्तर पर काफ़ी पद खाली पड़े हैं और इस सेवा के माध्यम से इन पदों को भरा जा सकता है.

लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी अपने वर्तमान कार्यकाल में ये सेवा शुरू कर भी सकती है. इस सवाल का जवाब संविधान में छुपा है.

संविधान के अनुच्छेद 233 और 234 के तहत नियुक्तियों से जुड़ा अधिकार राज्य लोक सेवा आयोग और हाईकोर्ट को दिया गया है.

जेटली, प्रसाद
Getty Images
जेटली, प्रसाद

हालांकि, केंद्र सरकार इस सेवा को शुरू करने के लिए राज्यसभा में एक प्रस्ताव ला सकती है जिसे दो तिहाई बहुमत के साथ पास करने की ज़रूरत होगी.

लेकिन राज्यसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास सिर्फ 90 सांसद हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए राज्यसभा में ये प्रस्ताव पास कराना काफ़ी मुश्किल है.

तो इस मुद्दे पर बीजेपी नेताओं की बयानबाजी को किस नज़र से देखा जाना चाहिए.

कानूनी मामलों के जानकार विराग गुप्ता इसे एक शुद्ध राजनीतिक मुद्दा मानते हैं.

गुप्ता बताते हैं, "संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 312 को समाहित किया गया था. इसके तहत ऑल इंडिया ज्युडीशियल सर्विस शुरू करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. वर्तमान व्यवस्था में इन नियुक्तियों का निरिक्षण और प्रशासकीय नियंत्रण हाईकोर्ट के पास है."

"वहीं, राज्य सरकारें इन नियुक्तों से जुड़े आर्थिक भार को उठाती हैं. ऐसे में एक संघीय ढांचे में राज्यों की सहमति के बिना केंद्र सरकार इस पर शायद ही कदम उठा पाए. इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और हाईकोर्टों से पूछा है कि इतनी रिक्तियां क्यों हैं?"



क्या ये एक सार्थक कोशिश है?

रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में कहा था, "मैं अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के समर्थन में हूं. अखिल भारतीय परीक्षा होगी तो देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा सामने आएगी. हम इसमें पर्याप्त आरक्षण भी देंगे जो कि भारत के संविधान का आदेश है. उससे भी बहुत बड़ी संख्या में वंचित वर्ग के वकील न्यायपालिका में आएंगे."

केंद्रीय कानून मंत्री ने अपने इसी भाषण में ये भी कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर को उनकी मृत्यु के कई साल बाद भारतरत्न दिया गया, ऐसे में सवाल उठाने की ज़रूरत है कि इसमें इतनी देरी क्यों हुई.

रविशंकर प्रसाद
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रविशंकर प्रसाद

बीजेपी ने अपने इस रुख से दलित समाज को लुभाने के संकेत दिए हैं. लेकिन क्या इसे बीजेपी की ओर से एक सार्थक पहल के रूप में देखा जा सकता है.

कानून मामलों के जानकार विराग गुप्ता इससे सहमत नज़र नहीं आते हैं.

वह कहते हैं, "मुझे समझ नहीं आता है कि इससे वंचित वर्ग को आरक्षण कैसे मिलेगा. ये कोई नया मुद्दा नहीं है. साल 1986 में विधि आयोग ने अपनी एक सौ सोलहंवी रिपोर्ट में इसकी विस्तार से अनुशंसा की थी. इसके बाद सभी दलों की सरकारें आईं और इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई. और राजनीतिक कारणों से इस पर कार्यवाही की बात की जाती है तो इसे न्यायिक प्रक्रिया में अनाधिकृत हस्तक्षेप माना जाना चाहिए."

"अगर हम ज़मीनी बात करें तो देश के सभी राज्यों में पहले से ही ज्युडिशियल सर्विसेज़ हैं जिनमें आरक्षण की व्यवस्था है. और अगर ये सेवा शुरू हो जाती है तो इसमें भी आरक्षण रहेगा. प्रश्न इस बात का है कि इसमें क्या कोई नया आरक्षण दिया जा रहा है."

"सरकार के कई सहयोगी घटकों के प्रमुख नेता जैसे रामविलास पासवान और उदित राज इस सेवा में आरक्षण की बात करते हैं. लेकिन इस सेवा के शुरू होने से उस मुद्दे का समाधान नहीं होगा. और इसमें दांव-पेच की राजनीति हो रही है जिससे अदालती व्यवस्था भी राजनीति की शिकार हो सकती है."



क्या वंचितों को लाभ मिलेगा?

इस समय मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केरल जैसे राज्य ज़िला जज़ों की नियुक्ति में आरक्षण देते हैं.

इन सेवाओं में आरक्षण का लाभ लेने के लिए उम्मीदवार को इस बात का प्रमाण देना होता है कि वह उसी राज्य का निवासी है.

मोदी
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लेकिन अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू होने की स्थिति में वंचित वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों को पूरे देश में उपलब्ध नौकरियां के लिए प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिलेगा.

हालांकि, विराग गुप्ता मानते हैं कि इससे आरक्षण में जटिलता आएगी.

वह बताते हैं, "राज्य अपने यहां वंचित वर्गों की आबादी के मुताबिक़ आरक्षण देते हैं क्योंकि किसी राज्य में एससी ज़्यादा हैं तो कहीं पर एसटी ज़्यादा हैं. प्रश्न ये है कि क्या इस सेवा में राज्यों की स्थिति के हिसाब से आरक्षण होगा या अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण दिया जाएगा. और इससे समस्या का समाधान किस तरह होगा. मुझे लगता है कि इससे नई समस्याएं पैदा होंगीं."

अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो केंद्र सरकार के लिए इस सेवा को शुरू करना फिलहाल मुश्किल दिखाई पड़ता है. लेकिन बीजेपी इस मुद्दे पर राजनीति को आगे ले जा सकती है.

देखना ये होगा कि आगामी आम चुनाव में ये मुद्दा बीजेपी को कितना लाभ दे पाएगा.

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English summary
Can the Modi government give reservation in the judicial system
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