उत्तर प्रदेश चुनाव: बुंदेलखंड में क्या है स्थिति, क्या बीजेपी की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
बुंदेलखंड क्षेत्र में पिछले बार बीजेपी ने अपना दबदबा क़ायम किया था, लेकिन उसका यह जलवा क्या इस बार भी रहेगा. यह सवाल तब और भी बड़ा हो जाता है जब बीएसपी ने मुक़ाबले को कठिन बना दिया हो.
उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण में होने वाले चुनावों में बुंदेलखंड की 19 सीटें भी शामिल हैं. भारतीय जनता पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां की सभी 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने टिकटों के बंटवारे में रणनीतिक बदलाव कर मुक़ाबले को कड़ा बना दिया है.
झांसी से लगभग 35 किलोमीटर दूर चंद्रनगर गांव की दलित बस्ती के एक तिराहे पर जब शाम होने की थी, तभी कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रशेखर तिवारी की पत्नी आभा तिवारी और उनका दल बस्ती में चुनाव प्रचार के लिए घुसा.
उनके घुसते ही प्रचार के लिए आए लोगों और स्थानीय दलित युवकों के बीच दलितों के हक़ और हिस्सेदारी पर बहस शुरू हो जाती है. बहस हमारे किए गए एक सवाल पर शुरू होती है.
पास के खजराहा बुज़ुर्ग से चंद्रनगर आए अंकेश ''29 भारतीय सूबों में कितने दलित मुख्यमंत्री'' का प्रश्न उठाते हैं. थोड़ी नाराज़गी से नीरज गुप्ता के ये पूछने पर कि क्या ''70 सालों में कोई विकास नहीं हुआ,'' तो जवाब मिलता है ''हुआ है लेकिन जातिवाद का.''
कांग्रेस प्रत्याशी ख़ुद ''देर से टिकट बंटवारे और उसकी वजह से पैदा हुई कमी के कारण हर जगह नहीं जा पा रहे'' का तर्क देते हुए उनके प्रचार के लिए आए हुए लोग, सरकारी इंजीनियरिंग कंपनी बीएचईएल और दूसरे विकास के कामों का हवाला देते हैं.
चंद्रनगर झांसी लोकसभा सीट में आनेवाली 5 विधानसभा क्षेत्रों में से एक 'बबीना' का हिस्सा है. बबीना 1996 विधानसभा चुनावों से एक बार छोड़कर तीन दफ़ा बीएसपी के पाले में रही.
हालांकि पिछली बार यहां से बीजेपी को जीत मिली थी. हाथी के निशान पर इस बार यहां से पिछड़ी लोध जाति के दशरथ सिंह लोधी मैदान में हैं.
झांसी सदर सीट से बीएसपी प्रत्याशी कैलाश साहू कहते हैं, ''बसपा को 2017 के चुनाव में भी 23 फीसद वोट मिले थे. साथ ही बहन मायावती जी की कोशिश रही है कि हम सभी समाज में जाएं जिसका फ़ायदा हमें मिल रहा है.''
बीजेपी पर निशाना साधते हुए वो कहते हैं कि पार्टी ने 403 सीटों में से किसी पर राठौर या तेली-साहू समाज के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया. कैलाश साहू की 2009 के उप-चुनाव में जीत के बावजूद पार्टी ने उन्हें बाद के दो विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं दिया था.
गड़ेरिया समाज के पाल कहे जानेवाले, दूसरी पिछड़ी जातियों, और गुर्जरों को टिकट देकर साथ लाने की कोशिश बीएसपी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
समाजवादी पार्टी, जो पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 से पहले बुंदेलखंड में सीटों और वोट प्रतिशत के हिसाब से नंबर दो पर रही थी, इस बार अपना आधार बड़ा करने की कोशिश में है.
स्थानीय पत्रकार लक्ष्मी नारायण शर्मा कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी पिछले सालों में यह बात फैलाती रही कि सपा सिर्फ़ यादवों और बसपा केवल जाटवों की पार्टी है. इस कारण ग़ैर-यादव और ग़ैर-जाटव वोट खिसककर बीजेपी में चला गया.
इस बार दोनों दलों ने अपने वोट के आधार को फिर से बढ़ाने की कोशिश की है. लेकिन ये कितना कारगर होगा इसकी अभी जांच होनी है.
पिछड़ी जातियों में, जिन्होंने लोकसभा और विधान सभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन किया था, आरक्षण कोटे को न भरे जाने और उसे कम करने को लेकर नाराज़ है. ऊंची जाति को आरक्षण दिए जाने की बात भी उनके गले से नहीं उतर रही.
जालौन ज़िले के जखौली गांव के राम लल्ला पटेल कहते हैं कि अदालत ने मामला सरकार पर छोड़ दिया है, लेकिन पिछड़े समाज के युवकों के रोज़गार पर ताला सा लग गया है.
दिल्ली और मीडिया के कई हिस्सों में तीन कृषि क़ानूनों को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित होने की बात कहे जाने के उलट बुंदेलखंड में भी किसानों के बीच 'आंदोलन के लिए मजबूर किए जाने और 600 किसानों की मौत का ग़ुस्सा है.
जखौली गांव के प्रवेश द्वार के पास के चाय दुकान पर जब ये सारी बातें हो रही थीं, तो कुछ युवा वहां आ जाते हैं.
भूपेंद्र की शिकायत है कि वो बीएससी करने के बाद भी कुछ नहीं कर पा रहे. नौकरी के लिए परीक्षाओं को मुश्किल करते जा रहे हैं, क्या करें 40 साल तक पढ़ते ही रहें क्या? परिवार वालों की भी एक उम्र के बाद अपेक्षाएं होती हैं, उनको क्या कहें? वो सवाल और शिकायत के अंदाज़ में थोड़ी बातचीत के बाद बोलते हैं.
आशीष सिंह, विकास की सारी बात ये कहते हुए ख़ारिज कर देते हैं, ''काहे का विकास, युवाओं पर सबसे अधिक लाठी चार्ज इसी सरकार में हुआ है.'' वहीं उनके साथ मोटरसाइकिल पर बैठे नेपाल सिंह थोड़े उकताए लहज़े में कहते है कि उन्हें तो किसानी करनी है, ''जानवर आकर चर जात हैं, इ अलग बात है.''
युवकों में से दो लोध राजपूत थे. लोध राजपूत बीजेपी का ज़बरदस्त समर्थक रहा है. ओरईं क्षेत्र में पड़नेवाले जखौली में पिछड़े कुर्मी समुदाय से संबंध रखनेवालों की बड़ी संख्या है और ये भी बीजेपी के समर्थक रहे हैं.
हालांकि राजेंद्र कुमार पटेल के अनुसार, ''बुंलेदखंड में इस बार पिछली दफ़ा की तरह सब बीजेपी के साथ नहीं हैं.''
राम लल्ला पटेल कुर्मी वोटों के सवाल पर कहते है कि बुंदेलखंड में ''कुर्मी वोट कुछ सपा में, कुछ बसपा में बंटेगा, थोड़ा बीजेपी में भी जा सकता है.''
सुरक्षा को मुद्दा बनाने पर कुछ हलकों में बीजेपी की भले आलोचना हुई हो, लेकिन वोटरों के मन से अभी ये पूरी तरह हटा नहीं है.
पिछड़ी जातियों के कुछ लोगों में बसपा को लेकर भय है, तो समाजवादी पार्टी की पुरानी छवि पूरी तरह से लोगों के मन से धुली नहीं है.
रघुराज सिंह कहते हैं कि पिछड़ों का बीएसपी से अलगाव की एक बड़ी वजह ये भी थी कि कई बार लोगों को एससी-एसटी क़ानून में फंसाया गया. कुछ लोगों ने हर मामले को 'दलित बनाम ऊंची जात' बनाने की कोशिश की.
समाजवादी पार्टी को लेकर तो कई जगहों पर लोग नारा दोहराते हैं- ''समाजवादी पार्टी का नारा है, ख़ाली प्लाट हमारा है.''
बबीना विधान सभा से सपा के युवा प्रत्याशी यशपाल सिंह यादव इन आरोपों पर कहते हैं, ''इस प्रदेश में खाने को लेकर एक बच्चे के पिता की हत्या कर दी जाती है. एक महिला का रेप हुआ. उसके पिता को जेल में डाल दिया गया. तो क्राइम किसके शासन में अधिक हुआ.'' वो इन बातों को बीजेपी का दुष्प्रचार बताते हैं.
यादव-बहुल गांव परोना में साइकिल निशान वाला बड़ा सा लाल झंडा वहां घुसते ही दिख जाता है. झंडा लगे घर के दूसरी तरफ़ सोना वली की दरगाह है.
उसके पास ही सायरा बानो का दालान है. लाल रंग से लिपे दलान को लेकर जब हमने उनसे पूछा तो वो हंसकर कहती हैं, ''अखिलेश को वोट देंगे तो सबको लाल कर दिया है.''
पिछली बार यादव वोट का एक हिस्सा बीजेपी को गया था. मगर इस बार वो पूरी तरह एसपी के साथ दिखता है. लेकिन उनके और दूसरों के मन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राम मंदिर को लेकर जगह है और लोगों का कहना है कि ये वोट मोदी को हटाने के लिए थोड़े ही है.
यहां पिछले दो-तीन दिनों से एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें मस्जिद से बाहर आता एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपशब्द कहते हुए सुना जा सकता है. पुलिस से इस संबंध में एफ़आईआर दर्ज़ कर व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया है.
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