मराठा आरक्षण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में खारिज
मुंबई। मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस याचिका में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी जिसे अब कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया है। बता दें कि पिछले साल 30 नवंबर को, महाराष्ट्र विधायिका ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) श्रेणी के तहत मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया।
याचिका में दी गई थी ये दलील
फैसले के बाद, इसको चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं। इसने महाराष्ट्र में आरक्षण को 52 प्रतिशत से बढ़ाकर 68 प्रतिशत कर दिया, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत से अधिक है। इसके बाद मामला कोर्ट में पहुंचा। जहां जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने 6 फरवरी को सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। सरकार ने अपने फैसले का बचाव किया और तर्क दिया कि आरक्षण केवल मराठा समुदाय उपर उठाने के लिए है, जो लंबे समय से उपेक्षित है। वहीं इस संबंध में मराठा आरक्षण पर राज्य विधानसभा में महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने ककहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया है। और यह भी कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत वाली सीमा को असाधारण परिस्थितियों में पार किया जा सकता है।
आरक्षण का फैसला समाज में समानता की अवधारणा को नष्ट कर रही है
दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में यह समुदाय सक्षम हो रहा है और वे कभी भी उस स्थान से बाहर नहीं निकल पाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण देने वाला सरकार का फैसला समाज में समानता की अवधारणा को नष्ट कर रही है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि मराठा और कुनबी एक ही जाति के हैं और इसलिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए।
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क्या थी आयोग की सिफारिश?
जस्टिस एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले नौ सदस्यीय आयोग ने कहा था कि उन्होंने आरक्षण की सिफारिश करने से पहले कई मापदंडों पर विचार किया। इसने खत्री कमिशन और बापट आयोग पर ध्यान दिया और कहा कि खत्री आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में मराठा-कुनबी और कुनबी-मराठा को कुनबी की उप-जाति के रूप में शामिल करने की सिफारिश की थी लेकिन लेकिन मराठा को ओबीसी सूची में शामिल करने की सिफारिश नहीं की थी।
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