क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ब्लॉग: पद्मावती विवाद तुष्टीकरण और जातिवाद नहीं है क्योंकि...

...वे राष्ट्रमाता हैं, तुष्टीकरण केवल मुसलमानों का होता है और सिर्फ़ कांग्रेस करती है

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
फ़िल्म पद्मावती का विरोध
Reuters
फ़िल्म पद्मावती का विरोध

कौन जाने, खिलजी ने पद्मावती को आईने में देखा था या नहीं, लेकिन फ़िल्म पर छिड़े विवाद ने देश की राजनीति, मीडिया और समाज को आईना ज़रूर दिखाया है.

इस देश में भावनाएँ सिर्फ़ उनकी आहत होती हैं जो उन्माद फैला सकें और उत्पात मचा सकें. ऐसा क्यों है कि गोडसे की पूजा किए जाने से किसी गांधीवादी की भावनाएँ आहत नहीं हुई हैं. ग्वालियर में भगवान बनाकर गोडसे पूजन हो रहा है, वहाँ कोई हिंदू ये नहीं कह रहा है कि एक हत्यारे की पूजा हमारे धर्म का अपमान है.

नज़रिया: क्या इतिहास में कोई पद्मावती थी भी?

'राष्ट्रमाता' का अपमान करने वाली फ़िल्म स्वीकार नहीं: शिवराज सिंह चौहान

आजकल कहां है महारानी पद्मिनी के वंशज?

  • हर बार की तरह आहत भावनाओं को सहलाने-दुलराने की होड़ लगी है क्योंकि 'आहत' लोगों के पास संख्याबल या तोड़-फोड़ करने का बाहुबल है. क़ायदे-क़ानूनों की बात कौन कहे-पूछे जब मुद्दा 'राजपूती आन-बान-शान' का हो, कुछ लोग तो ऐसे बहस कर रहे हैं मानो संविधान में लिखा हो कि राजपूत अन्य लोगों के मुक़ाबले अधिक सम्मान के हक़दार हैं.

    ये तीन कारणों से तुष्टीकरण और जातिवाद नहीं है- पहला, तुष्टीकरण सिर्फ़ मुसलमानों का होता है और वह सिर्फ़ कांग्रेस करती है. दूसरा, जातिवाद की राजनीति सिर्फ़ लालू और मुलायम जैसे लोग करते हैं और तीसरा, भाजपा जो करती है राष्ट्रहित में करती है.

    इस तरह का हंगामा किसी जीती-जागती महिला के बलात्कार पर कभी नहीं हुआ है और न होगा. ये बताता है कि फ़िल्म को मुद्दा बनाकर जातीय वर्चस्व और सांप्रदायिक विद्वेष की राजनीति करने वालों को कोई राजनीतिक पार्टी नाराज़ नहीं करेगी बल्कि उनका समर्थन हासिल करना चाहेगी.

    'पद्मावती' पर इतना गुस्सा क्यों?

    एक 'काल्पनिक' कहानी पर बनी और अब तक अनदेखी फिल्म इतनी अहम हो गई है कि कई-कई मुख्यमंत्री कूद पडे हैं. कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह इसमें शामिल होना दिखाता है कि यह एक पार्टी की बीमारी नहीं है. वैसे भी कांग्रेस का किसी से शायद ही कोई वैचारिक मतभेद हो, करणी सेना से भी नहीं है.

  • करणी सेना ने इस देश में उन्माद-उपद्रव की राजनीति करने वालों को महाराष्ट्र में शासन चलाते देखा है, बालासाहेब ठाकरे ने बहुत पहले स्थापित कर दिया है कि बहुसंख्यकों की भावनाओं की लहरों पर सवार होकर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.

    मज़े की बात ये भी है कि इसमें क़ायदे-क़ानून की चिंता करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं होती. शिव सेना की राजनीतिक सफलता से प्रेरित होकर अनेक संगठन बने हैं जिनके नाम में सेना शब्द ज़रूर है, करणी सेना भी उन्हीं में से एक है.

    दबंग जातियों का शक्ति प्रदर्शन कोई नई चीज़ नहीं है, लेकिन दलितों के संगठित होने की स्थिति में उन पर चंद्रशेखर रावण की तरह राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाया जा सकता है, ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद महीनों जेल में रखा जा सकता है.

    फूलन देवी को फ़िल्म में पूरी तरह नग्न दिखाया जा सकता है, उससे किसी की भावना आहत नहीं होगी क्योंकि मल्लाह सिनेमाघर तोड़ने की हालत में नहीं थे, इसलिए सरकार को उनकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं पड़ी.

    राजस्थान की मुख्यमंत्री वादा कर रही हैं कि बिना बदलाव के फ़िल्म रिलीज़ नहीं होगी, उन्होंने सूचना-प्रसारण मंत्री को चिट्ठी लिखी है कि बिना मन-मुताबिक़ बदलाव के फ़िल्म रिलीज़ न होने दी जाए जबकि फ़िल्म बनाने वालों ने ख़ुद ही रिलीज़ को टाल दिया है.

    राजपूती शान वाले लोग 'जौहर' का महिमामंडन कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग परंपरागत रूप से सती प्रथा और बाल विवाह के समर्थक रहे हैं. उनकी नज़र में आक्रमणकारी से लड़कर मरने वाली लक्ष्मीबाई से ज़्यादा सम्मान की पात्र आत्महत्या करने वाली पद्मावती हैं.

    मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लक्ष्मीबाई को तो राष्ट्रमाता नहीं कहा है.

  • बहरहाल, ये अच्छी बात है कि एक तरह की ऑनर किलिंग या ऑनर सुसाइड की शिकार महिला को भारत माता, गोमाता और गंगा मैया के बराबर का दर्जा दिया जा रहा है.

    फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी बैठे तमाशा देख रहे हैं, राजनीतिक आकाओं के आदेशों का पालन करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है जबकि बुजुर्ग निर्देशक श्याम बेनेगल पूछ रहे हैं कि फ़िल्मकारों को धमकी देने से वालों से निबटना सरकार की ज़िम्मेदारी है या नहीं?

    ग़ौर करने की बात ये है कि यह सभी महिलाओं के सम्मान का नहीं, राजपूत महिलाओं के सम्मान का मसला है और इसमें किसी को कोई बुराई नहीं दिख रही.

    संजय लीला भंसाली
    Getty Images
    संजय लीला भंसाली

    इस पूरे विमर्श का सुर कुछ ऐसा है कि हमारे पास ताक़त है, हम अपनी महिलाओं का सम्मान करा लेंगे, तुम्हारे पास ताक़त नहीं है तो तुम चुपचाप झेलो. अगर ऐसी बात है तो संविधान और क़ानून की क्या ज़रूरत है?

    हमेशा की तरह क़ानून अपना काम कर रहा है और कानून तोड़ने वाले अपना.

    गोडसे का मंदिर बनाने वालों को डीएम ने नोटिस भेज दिया है जिसके जवाब में उन्होंने धमकी दी है कि वे 'हुतात्मा गोडसे' का अपमान नहीं सहेंगे.

    भंसाली का क़त्ल करने वाले के लिए इनाम घोषित करने वाले हरियाणा भाजपा के नेता सूरज पाल अमू को 'कारण बताओ नोटिस' भेज दिया गया है. सूरज पाल अमू ने कहा था कि वे भंसाली और दीपिका का सिर काटने वाले को दस करोड़ रुपए का इनाम देंगे.

  • सूरज पाल अमू हरियाणा भाजपा के मुख्य मीडिया संयोजक हैं. उन्होंने जो कुछ कहा है कि वह हिंदू फ़तवा नहीं है, हिंसा भड़काने और फ़तवे देने पर सिर्फ़ मुसलमानों का एकाधिकार है?

    सूरज पाल अमू ने जो कहा है कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक विद्वेष फैलाना) और 503 (आपराधिक धमकी) के तहत दंडनीय अपराध है जिसमें दोषी पाए जाने पर पाँच साल की सज़ा हो सकती है, लेकिन हर मामले में क़ानून का पालन करना ज़रूरी नहीं होता. 'कारण बताओ नोटिस' भी काफ़ी होता है, मानो भाजपा को पता न हो कि अमू के ऐसा कहने का कारण क्या था?

    प्राइम टाइम पर असली मुद्दे!

    टीवी चैनल इस बहस में उलझे हैं कि पद्मावती थी या नहीं, खिलजी कितना बुरा आदमी था, वह एक राजपूतनी पर बुरी नज़र नहीं डाल सकता, हम तब नहीं रोक पाए, लेकिन अब बर्दाश्त नहीं करेंगे (क्योंकि सरकार हमारे साथ है). करणी सेना के जिन नेताओं को कल तक कोई नहीं जानता था, जो लोग ये नहीं जानते कि खिलजी बाबर से पहले था या उसके बाद, ये सब लोग प्राइम टाइम की शोभा बढ़ा रहे हैं.

    जिस राज्य की सरकार ने 400 साल बाद राणा प्रताप को हल्दीघाटी की लड़ाई जिता दी हो, वहाँ के राजपूत बैकडेट से अपनी रानी की इज्ज़त बचा रहे हैं तो क्या ग़लत कर रहे हैं?

    करणी सेना के नेता रातोरात स्टार बन गए हैं, वे सड़क पर तलवार भांजने की इच्छा रखने वाले लाखों बेरोज़गार नौजवानों के लिए कितने प्रेरक होंगे और आगे वे कैसी राजनीति करेंगे यह समझने के लिए बहुत कल्पनाशीलता नहीं चाहिए.

    इसके पहले हनीप्रीत थी, राधे माँ थी, उसके पहले कुछ और, इसके बाद भी कुछ और होगा. सब होगा, बस गुजरात की आम जनता की आवाज़ सुनाई नहीं देगी, ग्राउंड से कोई रिपोर्टिंग नहीं होगी, राफ़ेल डील पर कोई तफ़्तीश नहीं होगी. क्या करें देश अगर राष्ट्रमाता पद्मावती की इज्ज़त बचाने में लगा है तो बाक़ी ग़ैर-ज़रूरी मुद्दों को क्यों उठाया जाए?

    बॉलीवुड के स्टार हमेशा सारी बहादुरी परदे पर दिखाने के कायल रहे हैं, इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर किसी ने करणी सेना की खुली धमकियों की आलोचना नहीं की है.

    करणी सेना की आलोचना, सरकार की आलोचना नहीं होती लेकिन असुरक्षा इस हद तक है कि मुँह खोलने को तैयार नहीं है, ख़ास कर इसलिए कि सरकार ने अपना पक्ष बिल्कुल साफ़ कर दिया है कि वह 'राजपूती आन-बान-शान' की तरफ़ खड़ी है, न कि रचनात्मक आज़ादी और कलाकारों के साथ.

    फिल्म 'पद्मावती' पर देश में जो प्रहसन चल रहा है वो एक बार फिर बता रहा है कि हम कितने बीमार समाज में रहते हैं और सरकार इस बीमारी का क्या खूब इलाज कर रही है.

  • BBC Hindi
    Comments
    देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
    English summary
    Blog Padmavati controversy is not appeasement and racism because
    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X