नीतीश क्या बन सकेंगे विपक्ष के पीएम उम्मीदवार? राहुल, ममता, केजरीवाल से कितने मज़बूत?
नीतीश कुमार को काफी वक्त से पीएम मैटेरियल कहा जाता रहा है. अब एक बार फिर विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम की चर्चा उठी है. कितना दम है इस दावे में?
बिहार में बीजेपी से नाता तोड़ कर जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल की साझा सरकार बनाने का दावा करने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत दावेदार के तौर पर उभरते दिख रहे हैं. इसके साथ ही उन्हें एक बार फिर विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर भी देखा जा रहा है.
एक समय था, जब नीतीश को पीएम मैटेरियल के तौर पर पर देखा जाता था. 2014 से पहले जिस वक्त नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा रहा था कि उस वक्त नीतीश कुमार ने उनका विरोध करते हुए कहा था कि देश का प्रधानमंत्री धर्म-निरपेक्ष और उदारवादी होना चाहिए.
ज़ाहिर है निशाने पर नरेंद्र मोदी थे.
खुद नीतीश कुमार कह चुके हैं कि उनके लिए बस अब एक ही पद पर बैठना रह गया. हाल ही में नीतीश की पार्टी से अलग हुए आरसीपी सिंह ने नाराज़गी में कहा कि नीतीश कुमार कभी पीएम नहीं बन सकते…सात जन्म में भी नहीं.
आरसीपी सिंह नीतीश के बेहद करीबी रहे हैं और उन्होंने ऐसा बयान दिया है तो ज़ाहिर है उन्हें उनके पीएम बनने की छिपी महत्वाकांक्षा के बारे में पता होगा. इस पर उनके साथ चर्चा भी हुई होगी.
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नीतीश की दावेदारी में कितना दम?
अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष नीतीश को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करेगा और उनका नाम इस पद के लिए आगे करेगा? क्या वह राहुल गांधी, ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल के मुकाबले पीएम पद के लिए बेहतर कैंडिडेट हैं? विपक्ष में पीएम पद की उम्मीदवारी में वो इन नेताओं के मुकाबले में कहां ठहरते हैं?
इस सवाल पर 'द हिंदू' की एसोसिएट एडिटर स्मिता गुप्ता कहती हैं, ''पीएम पद के लिए नीतीश की दावेदारी के खिलाफ एक ही चीज़ जा सकती है वो ये कि वे कभी भी पाला बदल लेते हैं. लेकिन उनकी लीडरशिप पर कोई सवाल नहीं है. एक मुख्यमंत्री के तौर पर भी उनकी छवि अच्छी रही है. उन्हें अच्छा मुख्यमंत्री माना जाता है. ''
वह कहती हैं, ''अगर बिहार में राजद और जनता दल (यू) की सरकार बनती है तो यह विपक्ष के लिए बड़ा मोराल बूस्टर होगा. इसके साथ ही नीतीश एक बार फिर केंद्र की राजनीति में आ जाएंगे. इस वक्त देखा जाए तो विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पह नीतीश ही सबसे मज़बूत नज़र आ रहे हैं. ''
उनके मुताबिक '' विपक्ष के पीएम पद की एक और संभावित उम्मीदवार ममता बनर्जी को बीजेपी उनके घर में ही उलझाए हुए है. पार्थ चटर्जी मामले के बाद यह कहा जा रहा है कि बीजेपी उनकी सरकार की छवि खराब करना चाहती है. बीजेपी को उन्हें घर में ही घेरे रखने की नीति की वजह से उनके लिए विपक्ष के पीएम पद की उम्मीदवारी स्वीकारना करना मुश्किल होगा. नीतीश के राहुल से अच्छे संबंध रहे हैं. अगर कांग्रेस को छोड़ कर किसी और पार्टी का पीएम चुनने की नौबत आती है तो राहुल नीतीश का समर्थन कर सकते हैं. ''
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नीतीश की राह में क्या हैं चुनौतियां ?
लेकिन 'द प्रिंट' के राजनीतिक संपादक डीके सिंह इससे इत्तेफाक नहीं रखते. बीबीसी हिंदी से बातचीत में वह कहते हैं, '' बड़ा सवाल है कि नीतीश अपने दम पर कितनी सीटें ला सकते हैं. कांग्रेस कितनी भी कमज़ोर हो लेकिन तमाम क्षेत्रीय दलों से उसकी सीटें अधिक हो सकती हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने कभी ये नहीं कहा कि उसे छोड़ कर किसी दूसरी पार्टी का पीएम उम्मीदवार हो सकता है. ''
तो क्या नीतीश के अंदर पीएम बनने की महत्वाकांक्षा नहीं है और क्या वह बिहार में राजद के साथ अपनी सरकार बनाने के बाद अपनी इस दावेदारी को जोर-शोर से पेश नहीं करेंगे?
डीके सिंह कहते हैं, '' नीतीश को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करने की बात सिर्फ अटकलबाज़ी है क्योंकि इस वक्त वह खुद को पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश करना नहीं चाहेंगे. इस वक्त वह अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की कोशिश में हैं. उन्हें डर है कि महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह बीजेपी बिहार में जनता दल यूनाइटेड को दो फाड़ न कर दे. ''
वह कहते हैं, '' इसके बावजूद अगर नीतीश पीएम बनने का सपना देख रहे हों तो यह मुश्किल है क्योंकि इस वक्त विपक्ष को जोड़ने वाले तत्व नदारद हैं. आज हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे लोग भी कहां हैं, जिन्होंने वीपी सिंह की सरकार के लिए एक साथ माकपा और बीजेपी का समर्थन जुटाया था. बड़ा सवाल है कि आज विपक्ष को एक साथ लाएगा कौन? क्योंकि विपक्ष के बड़े चेहरे ममता और केजरीवाल अपनी-अपनी राह चल रहे हैं.''
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ममता,केजरीवाल और राहुल पर कितने भारी हैं नीतीश ?
विपक्ष के पीएम उम्मीदवार की दौड़ में नीतीश ममता, केजरीवाल या राहुल पर कितने भारी हैं?
इस सवाल पर बिहार की राजनीति पर करीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार गंगेश मिश्र का कहना है, ''नीतीश के साथ सबसे ज्यादा विश्वसनीयता का संकट है. वह कब किधर चले जाएंगे कहा नहीं जा सकता. उनकी पार्टी भी ऐसी नहीं है कि बहुत ज़्यादा सीटें जीत ले और विपक्ष की सरकार बनने की स्थिति में पीएम पद के लिए दावेदारी ठोक दे. उनकी तुलना में ममता और केजरीवाल काफी आगे हैं.
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गंगेश मिश्र कहते हैं, '' केजरीवाल की दिल्ली में सरकार है. पंजाब में हाल में ही उनकी पार्टी ने अभी सरकार बनाई है. इसके अलावा गुजरात में उनकी पार्टी के अच्छे आसार दिख रहे हैं. हरियाणा और हिमाचल में भी आने वाले दिनों में वे मजबूत स्थिति में हो सकते हैं. इस हिसाब से देखें तो नीतीश की तुलना में केजरीवाल की स्थिति ज्यादा सुदृढ़ हैं.''
गंगेश मिश्रा का कहना है कि नीतीश की पार्टी का ना तो अखिल भारतीय संगठन है और ना उनमें एक-दो से ज्यादा राज्यों में चुनाव जीतने की क्षमता है. ऐसे में विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर नीतीश की दावेदारी काफी कमज़ोर लगती है.
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