पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: अमित शाह का 'बनिया' होना क्या बीजेपी के घोषणापत्र पर अमल की गारंटी है?
गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को पश्चिम बंगाल में लोकलुभावन घोषणापत्र जारी किया. सवाल उठ रहे हैं कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं क्या वहाँ पार्टी ने अपने घोषणापत्र पर अमल किया है?
'खेला होबे' यानी खेल होगा के नारे के बीच पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में दोनों मज़बूत दावेदारों तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिए हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन घोषणापत्रों में ऐसे-ऐसे और इतने वादे किए गए हैं कि अगर उनमें से आधे पर भी अमल हो सके तो यह राज्य सचमुच 'सोनार बांग्ला' बन जाएगा.
दोनों दलों के घोषणापत्रों में काफ़ी समानताएं हैं. इसलिए टीएमसी ने बीजेपी पर पार्टी के घोषणापत्र की नक़ल करने का आरोप लगाया है.
दूसरी ओर, बीजेपी इसे घोषणापत्र की बजाय संकल्प बता रही है. दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी ने जहाँ अपने घोषणापत्र में दस प्रमुख वादे किए थे, वहीं बीजेपी ने एक क़दम आगे बढ़ते हुए एक दर्जन प्रमुख वादे किए हैं.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को यहां पार्टी का घोषणापत्र जारी किया तो टीएमसी ने सोमवार को कोलकाता समेत पश्चिम बंगाल से छपने वाले तमाम अख़बारों में पार्टी के घोषणापत्र के दस मुख्य मुद्दों के बारे में जैकेट विज्ञापन छपवाया है. यह विज्ञापन हर भाषा में है.
सबसे ज़्यादा ज़ोर
दोनों दलों के घोषणापत्रों से साफ़ है कि इनमें सबसे ज़्यादा ज़ोर महिला वोटरों पर है.
उसके अलावा बाहरी होने का आरोप झेल रही पार्टी ने नोबेल और ऑस्कर पुरस्कारों की तर्ज़ पर क्रमशः गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर और फ़िल्मकार सत्यजित रे के नाम पर पुरस्कार शुरू करने, तीन अलग-अलग इलाक़ों में एम्स की स्थापना और रोज़गार के सृजन पर ख़ास ज़ोर दिया है.
राज्य में महिला वोटरों की तादाद 49 फ़ीसदी से ज्यादा है. ऐसे में सत्ता की होड़ में शामिल कोई भी पार्टी उनकी अनदेखी का ख़तरा नहीं मोल ले सकती.
गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणापत्र जारी करते समय ख़ुद को बनिया बताया.
उन्होंने कहा कि पार्टी ने जितने वादे किए हैं, उनके लिए ज़रूरी धन के इंतज़ाम के बारे में पहले ही योजना बना ली गई है.
लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते है कि उन घोषणाओं को लागू करने की हालत में राज्य सरकार पर जो भारी-भरकम केंद्रीय क़र्ज़ है उसे पूरा माफ़ करना होगा.
टीएमसी और बीजेपी के घोषणापत्रों में क्या हैं?
इनमें महिलाओं के अलावा समाज के सभी तबकों का ध्यान रखा गया है. बेरोज़गारी और विकास जैसे ज्वलंत मुद्दों को भी प्राथमिकता दी गई है.
मिसाल के तौर पर टीएमसी ने जहाँ न्यूनतम आय योजना के तहत सामान्य वर्ग के परिवारों की महिला मुखिया को मासिक पाँच सौ और आदिवासी और अनुसूचित जाति/जनजाति के परिवारों को एक हज़ार रुपये देने का ऐलान किया है.
टीएमसी ने एक हज़ार रुपये का विधवा भत्ता सबको देने की बात कही है. दूसरी ओर, बीजेपी ने हर परिवार के एक सदस्य को रोज़गार देने का वादा किया है.
पार्टी ने टीएमसी की कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाओं की काट के लिए 18 साल की उम्र पूरा करने वाली लड़कियों को एकमुश्त दो लाख रुपये के अलावा उनको सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण देने, केजी से पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई मुफ़्त करने के अलावा मुफ़्त परिवहन सुविधा देने का भी वादा किया है.
बीजेपी ने विधवा भत्ते की रक़म तीन हज़ार रुपये करने की घोषणा की है.
ममता बनर्जी ने कहा है कि टीएमसी के सत्ता में लौटने के बाद लोगों को राशन लेने दुकान पर नहीं जाना होगा. उनको घर बैठे ही मफ़्त राशन मिल जाएगा.
बीजेपी के वादे
दूसरी ओर, बीजेपी ने राशन के ज़रिए एक रुपए किलो चावल या गेहूँ के अलावा तीस रुपए किलो दाल, तीन रुपए किलो नमक और पाँच रुपए किलो चीनी देने का वादा किया है.
बीजेपी ने सत्ता में आने की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशें लागू करने, शिक्षकों का वेतन बढ़ाने और 100 के काम की मियाद 200 दिनों तक करने की बात कही है.
राज्य में चाय बागान मज़दूरों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए उसने उनकी दैनिक मज़दूरी न्यूनतम 350 रुपये करने का भी वादा किया है. फ़िलहाल यह दैनिक 176 रुपये हैं.
टीएमसी ने निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए राज्य के पचास शहरों में ढाई हजार माँ कैंटीनों के ज़रिए पाँच रुपये में भऱपेट भोजन मुहैया कराने की बात कही है तो बीजेपी ने राज्य में सभी जगह अन्नपूर्णा कैंटीनों के ज़रिए दिन में तीन बार पाँच-पाँच रुपये में भोजन मुहैया कराने का वादा किया है.
माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में सत्ता की राह ग्रामीण इलाक़ों से निकलती है. दोनों दलों ने इस बात का बख़ूबी ध्यान रखा है.
ममता बनर्जी ने जहाँ न्यूनतम ज़मीन का मालिकाना हक़ रखने वाले किसानों को भी साल में 10 हजार रुपये की सहायता देने की बात कही है वहीं बीजेपी ने राज्य के 75 लाख किसानों को पीएम किसान निधि के तहत साल में दस हजार रुपये (फिलहाल छह हजार रुपए है) देने की बात कही है.
मछुआरों से लेकर छात्रों तक
इसके साथ ही तीन साल की बकाया 18 हज़ार की रक़म भी उनके खातों में एकमुश्त जमा कर दी जाएगी. इसके अलावा मछुआरों को भी सालाना छह हज़ार रुपये की सहायता दी जाएगी.
शिक्षा के क्षेत्र में टीएमसी ने छात्र-छात्राओं को क्रेडिट कार्ड देने की बात कही है. महज चार फ़ीसदी ब्याज़ पर छात्र इसकी सहायता से पढ़ाई के लिए दस लाख तक का कर्ज ले सकते हैं.
इसके जवाब में बीजेपी ने छात्राओं को पहली क्लास से मास्टर तक तक मुफ़्त शिक्षा के अलावा मुफ़्त परिवहन सुविधा देने का ऐलान किया है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में टीएमसी ने अपने घोषणापत्र में राज्य के तमाम ज़िलो में मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल खोलने और डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की तादाद दोगुनी करने का वादा किया है तो बीजेपी ने जंगलमहल, उत्तर बंगाल और सुंदरबन में तीन एम्स स्थापित करने के साथ ही आयुष्मान भारत के तहत पाँच लाख का स्वास्थ्य बीमा करने और स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को मज़बूत करने के लिए दस हज़ार करोड़ का कोष बनाने का वादा किया है.
सबको मकान मुहैया कराने के लिए ममता बनर्जी ने बांग्लार बाड़ी योजना के तहत कम क़ीमत के पाँच लाख मकान बनाने और बांग्ला आवास योजना के तहत 25 लाख पक्के मकान बनवाने का वादा किया है. उन तमाम घरों में बिजली और पीने के पानी की सप्लाई भी सुनिश्चित की जाएगी.
पैसे कहां से आएगा?
दूसरी ओर, बीजेपी ने एक क़दम आगे बढ़ते हुए तमाम ज़रूरतमंद परिवारों को शौचालय और पेय जल की सुविधा के साथ पक्के मकान मुहैया कराने और 200 यूनिट तक मुफ़्त बिजली देने का वादा किया है.
इसके साथ ही हर घर में चौबीसों घंटे पानी की सप्लाई पर दस हज़ार करोड़ खर्च करने की बात भी कही गई है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने सवाल उठाया है कि आख़िर बीजेपी अपने घोषणापत्र पर अमल करने के लिए पैसे कहां से लाएगी? शाह ने हालांकि इसे जारी करते हुए कहा है, "मैं बनिया हूँ. इसलिए मैंने पहले ही सोच लिया है कि पैसे कहाँ से आएंगे."
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, "इनको लागू करने के लिए भारी भरकम केंद्रीय क़र्ज़ों का माफ़ करना होगा. टीएमसी सरकार बहुत पहले से कम से कम ब्याज माफ़ करने की मांग करती रही है. लेकिन केंद्र ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है."
प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, "राज्य सरकार अपना राजस्व बढ़ा कर ही विकास परियोजनाओं को लागू करेगी." प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "हमने काफ़ी सोच-विचार करने और धन का इंतज़ाम करने के बाद ही घोषामपत्र में इन मुद्दो को शामिल किया है. सत्ता में आने के बाद इन पर अक्षरशः अमल किया जाएगा."
नक़ल का आरोप
उधर, टीएमसी ने बीजेपी पर पार्टी के घोषणापत्र की नकल करने का आरोप लगाया है.
टीएमसी सांसद और प्रवक्ता सौगत राय कहते हैं, "बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में टीएमसी की नक़ल की है. बीजेपी के वादों की क्या क़ीमत है? उसने हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने का भी भरोसा दिया था, उसका क्या हुआ? साल में दो करोड़ नौकरियां देने के वादे का क्या हुआ?"
राय आरोप लगाते हैं, "पार्टी ने महिला सशक्तीकरण पर फ़र्ज़ी वादे किए हैं. बीजेपी-शासित राज्यों में महिलाओं पर अत्याचार के मामले सबसे ज़्यादा हैं."
वह सवाल करते हैं कि पार्टी ने अपने शासन वाले राज्यों में छात्राओं की मुफ़्त शिक्षा और परिवहन का इंतज़ाम क्यों नहीं किया है? बीजेपी पहले असम, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्यप्रदेश को सोने का राज्य बना कर दिखाए.
ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा है कि जिस पार्टी के पास राज्य की 294 सीटों के लिए योग्य उम्मीदवार तक नहीं हैं तो वह सोनार बांग्ला बनाने के झूठे सपने दिखा रही है.
वरिष्ठ पत्रकार पुलकेश घोष कहते हैं, "टीएमसी और बीजेपी ने अपने घोषणापत्रों में जितने दावे किए हैं अगर उनमें से आधे पर भी अमल हो सके तो बंगाल की तस्वीर बदल जाएगी. लेकिन सत्ता में आने के बाद तमाम राजनीतिक दल अमूमन अपने घोषणापत्र के वादों को भूल जाते हैं. कहीं इस बार भी तो ऐसा नहीं होगा?"