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धारा-370: मिशन कश्मीर को अंजाम तक पहुंचाने वाले ये हैं पांच अहम किरदार

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नई दिल्ली- कई रिपोर्ट कहती है कि अगर पुलवामा में आतंकी हमला नहीं हुआ होता तो आर्टिकल-370 मिटाने का फैसला लोकसभा चुनावों से पहले ही हो जाता। कहा यहां तक जा रहा है कि इस ऐतिहासिक फैसले की स्क्रिप्ट इस साल फरवरी में ही फाइनल की जा चुकी थी। लेकिन, मई में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला और सरकार इसे समाप्त करने के वादों के साथ दोबारा सत्ता में लौटकर आई, तभी तय हो चुका था कि यह किसी भी समय होना है। अब जो जानकारियां मिल रही हैं, उसके मुताबिक 30 मई को शपथ लेने के तीन हफ्ते के भीतर ही सरकार ने 'मिशन कश्मीर' को अंजाम देने की तैयारी शुरू कर दी थी। इस मिशन को अंजाम देने के पीछे निश्चित तौर पर पीएम मोदी की मजबूत इच्छाशक्ति थी, जिसे उन्होंने चार भरोसेमंद किरदारों की मदद से साकार कर दिखाया, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह का रोल सबसे महत्वपूर्ण रहा। आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी समेत पांचों किरदारों की इसमें क्या-क्या भूमिका रही, जो यह ऑपरेशन इतना सटीक और कामयाब रहा।

नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी

बीजेपी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 के विवादास्पद प्रावधानों को हटाने का फैसला भले ही अब लिया हो, लेकिन पार्टी के विचारों में यह तब से मौजूद था, जब भारतीय जनता पार्टी पैदा भी नहीं हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी भाजपा के पैतृक संगठन जनसंघ और उसके संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम लेते थे, तब इस विवादित धारा का जिक्र जरूर करते थे। तथ्य यह है कि आर्टिकल-370 के खिलाफ आंदोलन के चलते जेल में रहते हुए ही मुखर्जी का निधन हो गया था और तब से बीजेपी इस धारा के खिलाफ एक ही नारा लगाती रहती थी- 'जहां हुए शहीद मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है।' जब नरेंद्र मोदी दोबारा भारी बहुमत से सत्ता में लौटे तो उन्होंने इसी मकसद से 1987 बैच के आईएएस (छत्तीसगढ़ कैडर ) बी.वी.आर.सुब्रमण्यन को प्रदेश का मुख्य सचिव बनाकर भेज दिया। सुब्रमण्यन की प्रशासनिक दक्षता को प्रधानमंत्री मोदी करीब से जान चुके थे, क्योंकि इससे पहले वे उनके दफ्तर में ही बतौर संयुक्त सचिव तैनात थे। इसके साथ ही मोदी ने पूरे मिशन का प्रभार जाहिर तौर पर अमित शाह को सौंप दिया था कि उन्हें उनकी प्रशासनिक कुशलता, राजनीतिक सूझबूझ और हर हाल में टास्क पूरा करने की क्षमता पर पक्का यकीन था। कुल मिलाकर पीएम मोदी ने अमित शाह को इस जमीनी 'मिशन कश्मीर' का डायरेक्टर बनाकर खुद प्रोड्यूसर की बेहद ही सफल भूमिका निभाई।

अमित शाह

अमित शाह

पीएम मोदी से मिले टास्क के मुताबिक गृहमंत्री अमित शाह ने मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते ही मिशन को पूरा करने का काम शुरू कर दिया। उन्होंने पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ मिलकर इस पेंचीदे मुद्दे पर कानूनी पहलुओं की समीक्षा की। इस काम में कानून और न्याय सचिव आलोक श्रीवास्तव, अतिरिक्त सचिव कानून (गृह मंत्रालय) आर. एस. वर्मा, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर सेक्शन के अफसरों की चुनिंदा टीम ने भी मदद की। जून में ही शाह कश्मीर का दौरा करके भी आए थे। शाह की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और भैयाजी जोशी जैसे नेताओं को भी इस विचार से अवगत कराने की थी। साथ ही राज्यसभा में आवश्य बहुमत जुटाने के लिए भी उन्हें ही माथापच्ची करनी थी। यहां उनका रोल इसलिए बढ़ गया था कि वे गृहमंत्री होने के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष भी हैं। लिहाजा उन्होंने अपनी टीम के भरोसेमंद राज्यसभा सांसदों अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव जैसे लोगों को उच्च सदन में समर्थन जुटाने का जिम्मा सौंप दिया। टीडीपी, सपा और कांग्रेस के सांसदों के भाजपा में शामिल होने से लेकर इस्तीफे तक के प्रकरण में इन सबकी बड़ी भूमिका रही। इस टीम का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक धारा-370 पर बीएसपी, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी समेत कई विपक्षी सांसदों का समर्थन झटक लेना रहा।

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अजित डोवाल

अजित डोवाल

अगर यूं कहें कि आज मोदी का 'मिशन कश्मीर' पूरा हुआ है तो उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल का रोल अद्वितीय कहा जा सकता है। इस पूरे मिशन की स्क्रिप्ट डोवाल ने ही तैयार की थी, जो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की आंख और कान बनकर 100% स्ट्राइक रेट के लिए मशहूर रहे हैं। कानूनी मसलों और संसदीय चुनौतियों को सेट करने के बाद जमीनी चुनौती तो घाटी में झेलनी पड़ रही थी, जिसे सफल बनाने में एनएसए के अनुभव ने काम किया। यहां इसका जिक्र करना जरूरी है कि जब शाह कश्मीर दौरे से लौटकर आए, तब अगले महीने डोवाल ने भी जम्मू-कश्मीर की यात्रा की और वहां के सुरक्षा इंतजामों का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया। उनकी यात्रा के बाद ही केंद्र ने वहां तकरीबन 3800 अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजने का निर्णय किया। जानकारी के मुताबिक पीएम के निर्देश पर शाह और डोवाल के बीच कई दौर की बैठकें हुईं। कहा ये भी जा रहा है कि ऐक्शन के दिन से पहले अमरनाथ यात्रियों और सैलानियों को घाटी से सुरक्षित निकालने की योजना भी डोवाल ने ही बनाई थी। डोवाल ने धारा-370 हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले के बाद भी वहां की एक ग्राउंड रिपोर्ट सरकार को भेजी है। खबरें तो यहां तक है कि उनके सुझावों के मद्देनजर ही 400 और अतिरिक्त कंपनियां अर्धसैनिक बलों की वहां तैनात की जा रही है।

राजीव गउबा

राजीव गउबा

जम्मू-कश्मीर आज देश के नॉर्थ पोल से सेंटर की ओर शिफ्ट हुआ है तो उसमें केंद्रीय गृहमंत्रालय और गृहमंत्री की अहम भूमिका रहा है। लिहाजा जाहिर है कि अमित शाह ने इस मिशन को जिस तरह से पूरा किया, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गउबा उनके साये की तरह जुटे रहे। गृहमंत्री जो भी फैसला लेते गए, उसे अमलीजामा पहनाने का काम राजीव गउबा ने ही किया। विभिन्न मंत्रालयों और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से को-ऑर्डिनेशन में इन्हीं का रोल रहा। जाहिर है कि जितना भार अमित शाह लेकर चल रहे थे, आखिरकार उसे राजीव गउबा के माध्यम से ही ढोया जा रहा था और उन्होंने बखूबी अपनी प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया।

बीवीआर सुब्रमण्यम

बीवीआर सुब्रमण्यम

केंद्र से जो भी फैसले लिए जा रहे थे, जम्मू-कश्मीर की धरातल पर उसे उतारने का दायित्व वहां के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम के ही कंधों पर थी। एनएसए और गृहमंत्रालय ने सुरक्षा का ब्लूप्रिंट उन्हीं के हवाले किया था, जिसमें पुलिस, पैरामिलिट्ररी फोर्सेज और प्रशासन के मुख्य अधिकारियों को सैटलाइट फोन देना, संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी (क्विक रेस्पांस टीम) की तैनाती, एलओसी पर आर्मी द्वारा चौकसी शामिल थी। सेना प्रमुख भी केंद्रीय सचिव और मुख्य सचिव को 24 घंटे हालात की जानकारी दे रहे थे। 4 अगस्त की अहम रात को मुख्य सचिव ने ही पुलिस महानिदेशक (जम्मू एवं कश्मीर) दिलबाग सिंह को कई ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए थे। इनमें प्रमुख नेताओं को हिरासत में लेने, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं बंद करने, धारा 144 लागू करने और घाटी में कर्फ्यू के दौरान सुरक्षा बलों की गश्त बढ़ाने जैसे फैसले शामिल थे।

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English summary
Article 370: These are the five key personality to reach the conclusion of Mission Kashmir.
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