घटिया गोला-बारूद के चलते 6 साल में सेना ने खोए 27 जवान, 960 करोड़ रुपये का भी नुकसान-रिपोर्ट
नई दिल्ली- भारतीय सेना ने 6 साल में घटिया गोला-बारूद की वजह से अपने 27 जवानों को खो दिया है। यह खुलासा सेना की एक आंतरिक रिपोर्ट से हुआ है। इसके मुताबिक ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के जरिए उत्पादित गोला-बारूदों की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि बीते 6 वर्षों में 960 करोड़ रुपये के गोला-बारूद नष्ट करने पड़े हैं, जिनकी मियाद बची हुई थी। गौरतलब है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड पर उठ रहे इन्हीं सवालों की वजह से उसे निगम बदलने की चर्चा भी चल रही है और जब भी इसपर काम शुरू होता है, इसका जोरदार विरोध भी शुरू हो जाता है। पिछले साल भी इसपर काफी बवाल हुआ था।
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घटिया गोला-बारूद, 6 साल में सेना ने खोए 27 जवान-रिपोर्ट
पिछले 6 वर्षों में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड से उत्पादित घटिया क्वालिटी के 960 करोड़ रुपये के गोला-बारूदों नष्ट करना पड़ा है। आर्मी की एक आंतरिक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है। एक अधिकारी के मुताबिक, 'जिम्मेदारी की कमी और घटिया क्वालिटी के उत्पादन के परिणामस्वरूप वर्षों से अक्सर दुर्घटनाए होती हैं, जिसमें जवानों को चोट पहुंचती है और मौत भी हो जाती है।' आर्मी के आंतरिक आंकड़ों के मुताबिक हर हफ्ते औसतन ऐसी एक घटना होती है। 2014 से 2019 के बीच इस घटिया गोला-बारूद की वजह से सेना के 27 जवानों की जानें गई हैं और 146 जख्मी हुए हैं। बता दें कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का संचालन डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन की देखरेख में और यह दुनिया की सबसे पुरानी सरकारी ऑर्डिनेंस प्रोडक्शन यूनिट में से एक है। यही भारतीय सेना के लिए गोला-बारूद बनाता है, जिसकी सेना की आतंरिक रिपोर्ट में आलोचना की गई है।
960 करोड़ में खरीदी जा सकती है 100 मीडियम आर्टिलरी गन
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014-19 के बीच 658.58 करोड़ रुपये के गोला-बारूद तो खराब होने की वजह से शेल्फ लाइफ पूरा होने से पहले ही नष्ट करने पड़ गए। शेल्फ लाइफ वह अवधि है, जिस दौरान गोला-बारूद इस्तेमाल करने योग्य होता है। इसके अलावा मई, 2016 में पुलगांव स्थित सेंट्रल एम्युनेशन डिपो में हुई माइंस धमाके की दुर्घटना के बाद 303.23 करोड़ रुपये के माइन्स नष्ट करने पड़े थे। अधिकारी के मुताबिक 960 करोड़ रुपये के नुकसान का मतलब है कि इतने में मोटे तौर पर 150 एमएम के 100 मीडियम आर्टिलरी गन या तोपें खरीदे जा सकते हैं। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड से उत्पादित जिन उत्पादों में कमियां पाई गई हैं, उनमें 23-एमएम के एयर डिफेंस शेल, आर्टिलरी शेल, 125 एमएम के टैंक राउंड समेत अलग-अलग कैलिबर की बुलेट्स शामिल हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2014 में खराब गोला-बारूद से सबसे ज्यादा घटनाएं हुई थीं, लेकिन उसके बाद हर साल उसमें लगातार तेजी से गिरावट दर्ज की गई है।
ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड पर उठते रहे हैं गंभीर सवाल
सरकारी अधिकारी ने बताया है कि सेना ने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कई सिफारिशें की हैं। इसमें सुधार करने और इसे दूसरे रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उद्यमों की तरह स्वायत्ता देने के लिए इसके निगमीकरण का भी प्रस्ताव है। एक सरकारी पैनल 2024-25 तक इसका टर्नओवर मौजूदा 12,000 करोड़ रुपये सालाना से बढ़ाकर 30,000 करोड़ रुपये करने की है। निगमीकरण के बाद ओएफबी रक्षा मंत्रालय से मंजूर नीतियों के तहत निजी क्षेत्रों के साथ पार्टनरशिप भी कर सकता है। अभी सुरक्षा बलों की जरूरतों के कई उत्पादों पर बोर्ड का एकाधिकार है, लेकिन इसके काम करने के रवैए में दशकों से सुधार नहीं हो रहा है। अधिकारियों के मुताबिक इसके चलते रक्षा बजट पर भी बोझ पड़ता है, क्योंकि यह तकनीक के विकास और नई खोजों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता, जिससे गुणवत्ता और क्षमता प्रभावित होती है और इसके उत्पादों के लिए कोई खास जवाबदेही भी नहीं है। (ऊपर की तस्वीरें सांकेतिक)
निगमीकरण की कोशिशों का होता है विरोध
अभी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के अधीन काम करता है, जिसकी 41 फैक्ट्रियां, 13 डेवलपमेंट सेंटर और 9 इंस्टीट्यूट हैं। डीडीपी के सीधे अधीन होने की वजह से इसे कार्य करने में स्वायत्तता नहीं है। इसके निगमीकरण का सबसे पहले सुझाव 2000 में नायर कमिटी ने दिया था। फिर 2005 में केलकर कमिटी और 2015 में रमन पुरी कमिटी ने भी वैसा ही सुझाव दिया। हालांकि, इसकी चर्चा होते ही इसका विरोध भी शुरू हो जाता है। अगस्त, 2019 में भी यह बड़ा मुद्दा बना था और केंद्र सरकार के विचार के खिलाफ भारी विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया था।
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