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सावधान दिल्ली! कोरोना मृत्यु दर बढ़ाने में है वायु प्रदूषण की बड़ी भूमिका, नए शोध में भी हुई पुष्टि

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नई दिल्ली। कोरोना मरीजों के लिए वायु प्रदूषण घातक हो सकता है और कोरोना संक्रमितों की घातकता पर वायु प्रदूषण की भूमिका को अमेरिका में हुए एक ताजा शोध ने भी इसे रेखांकित किया है। शोध में कहा गया है कि प्रदूषित हवा वाले जगहों पर अधिक समय तक रहने वाले कोरोना रोगियों की मौत की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि भारतीय वैज्ञानिकों ने कहना है कि हवा में मौजूद सूक्ष्म कण पार्टिकल मैटर PM2.5 और कोरोना के बीच लिंक का प्रमाण नहीं मिला है।

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शोध ने दिल्ली और आसपास के राज्यों के कोरोना मरीजों की चिंता बढ़ाई

शोध ने दिल्ली और आसपास के राज्यों के कोरोना मरीजों की चिंता बढ़ाई

गौरतलब है नए शोध ने खासकर दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों के कोरोना मरीजों की चिंता बढ़ा दी है, जहां दिवाली से पहले ही हवा काफी प्रदूषित रिकॉर्ड की जा रही हैं जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित नए शोध में अमेरिका में कोरोनावायरस संक्रमण की मृत्यु दर पर 3,089 काउंटियों में वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक जोखिमों के प्रभाव का आकलन किया गया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जिओ वू सहित शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा में ढाई माइक्रोन या उससे कम चौड़ाई वाले छोटे कण अधिक से अधिक मृत्यु दर से जुड़ा हुआ है। हालांकि विशेषज्ञों ने कहा है कि अभी कोरोना संक्रमण की उच्च दर और उच्च PM2.5 धूल कणों वाले स्थानों में हुई मौतों की बायोलॉजिकल कारणों को समझा जाना बाकी है।

पल्मोनोलॉजिस्ट पीयूष गोयल ने बताया कि यह अभी साबित नहीं हुआ है कि..

पल्मोनोलॉजिस्ट पीयूष गोयल ने बताया कि यह अभी साबित नहीं हुआ है कि..

गुड़गांव के कोलंबिया एशिया अस्पताल के एक पल्मोनोलॉजिस्ट पीयूष गोयल ने बताया कि वर्तमान में यह साबित नहीं हुआ है कि PM2.5 का स्तर सीधे संक्रमण या मृत्यु की संभावना को बढ़ाता है। गोयल ने आगे कहा कि PM2.5 पार्टिकुलेट मैटर में जलवाष्प, धूल के कण और प्रदूषक होते हैं, जो कोरोना वायरस को अटैच करके हवा के जरिए वायरस संचरण कर सकते हैं, लेकिन यह केवल एक विचारधारा है और इसकी पुष्टि नहीं की गई है। हालांकि अभी भारत में कोई ऐसा अध्ययन प्रकाशित नहीं हुआ है जो इस परिदृश्य को साबित करता है, लेकिन यह संभव है।

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण फेफड़ा रोगियों को अस्थिर कर सकते हैं

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण फेफड़ा रोगियों को अस्थिर कर सकते हैं

पल्मोनोलॉजिस्ट के अनुसार बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण के स्तर पुराने फेफड़ा रोगियों के स्वास्थ्य को अस्थिर कर सकते हैं और अगर ऐसे रोगियों के फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है, तो समस्या जटिल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आने से लोगों को फेफड़े की बीमारी हो सकती है। वहीं, शिशुओं और बच्चों में फेफड़ों के विकास में भी बाधा आ सकती है। गोयल ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समर्थित कई अध्ययन बताते हैं कि इससे मस्तिष्क का विकास भी प्रभावित हो सकता है और इससे फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।

वायु प्रदूषण बच्चों से लेकर पूर्ण वयस्क तक सभी को प्रभावित करता है

वायु प्रदूषण बच्चों से लेकर पूर्ण वयस्क तक सभी को प्रभावित करता है

उन्होंने बताया कि भारत में वायु प्रदूषण बच्चों से लेकर पूर्ण वयस्क तक सभी को प्रभावित करता है, लेकिन कोरोना संक्रमित रोगियों को इन स्थितियों से अलग-अलग कैसे प्रभावित करता है, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। बता दें, दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गुरुवार सुबह 10 बजे 397 था, जब दिल्ली में 6,715 नए मामलों की पुष्टि हुई, जिससे अब दिल्ली में संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 4.16 लाख से अधिक पार कर गया है।

राष्ट्रीय राजधानी में पिछले 24 घंटे की औसत गंभीरतम AQI 450 थी

राष्ट्रीय राजधानी में पिछले 24 घंटे की औसत गंभीरतम AQI 450 थी

राष्ट्रीय राजधानी में पिछले 24 घंटे की औसत AQI 450 थी, जिसे गंभीर श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया था। यह पिछले साल 15 नवंबर के बाद से यह उच्चतम स्तर है, जबकि पिछला रिकॉर्ड 458 था। यहां यह समझना आसान है कि बढ़ा हुआ वायु प्रदूषण का स्तर दिल्ली के कोरोना मरीजों की संख्या को कैसे प्रभावित कर सकता है। नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) ने पिछले हफ्ते चेतावनी दी थी कि इस मौसम में दिल्ली में सांस की बीमारियों के प्रसार के कारण प्रतिदिन लगभग 15,000 कोरोना के नए मामले दर्ज हो सकते हैं, क्योंकि सर्दी का मौसम बीमारी के लक्षणों को बढ़ाते हैं।

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English summary
Air pollution can be fatal for corona patients, and a recent research in the US has also underscored the role of air pollution on the lethality of corona infections. Research states that longer-term corona patients living in places with polluted air increase their chances of death. However, Indian scientists say that there is no evidence of a link between PM2.5 and the corona, the particulate matter present in the air.
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