नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉफ्रेंस करके कई आरोप लगाए, जिसमे मुख्य आरोप यह था कि सीजेआई चुनिंदा राष्ट्रीय महत्व से जुड़े मामलों को कुछ चुनिंदा जजों को देते हैं। इस आरोप को लगाने में जस्टिस रंजन गोगोई सबसे आगे थे, उन्होंने प्रेस कॉफ्रेंस में साफ तौर पर कहा कि सीजेआई चुनिंदा मामलों को अपनी मर्जी से जजों को देते हैं। इस पीसी में जस्टिस गोगोई ने बहुत कम बात की लेकिन ब उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी तो उन्होंने बोलना शुरू किया तो सीधे तौर पर कहा कि हम देश के कर्ज को अदा करने के लिए यहां आए हैं, उन्होंने जस्टिस लोया की मौत के मामले को लेकर नाराजगी को भी मीडिया के सामने जाहिर करते हुए कहा कि हां यह भी एक मसला है। ऐसे में जिस तरह से जस्टिस गोगोई ने सीजेआई के खिलाफ आरोप लगाए हैं उसके बाद उनके सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनने पर सवाल खड़े होने लगे हैं।

जस्टिस गोगोई के नाम पर संशय
जस्टिस गोगोई सीजेआई दीपक मिश्रा के बाद सुप्रीम कोर्ट के तीसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं। हालांकि इस प्रेस कॉफ्रेंस की अगुवाई कर रहे जस्टिस चेलमेश्वर जस्टिस गोगोई से वरिष्ठ हैं, लेकिन जस्टिस चेलमेश्वर 22 जून 2018 को रिटायर हो रहे हैं। वहीं जस्टिस बी लोकुर व जस्टिस कूरियन भी इसी वर्ष रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस कूरियन 28 नवंबर 2018 व जस्टिस लोकूर 20 दिसंबर 2018 को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं, लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा जस्टिस दीपक मिश्रा साबित हो सकते हैं। दरअसल जिस तरह से जस्टिस गोगोई ने सीजेआई पर निशाना साधा है उसके बाद जस्टिस दीपक मिश्रा इस आधार पर उनका नाम रद्द कर सकते हैं कि उनके बयान की वजह से सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा और सम्मान को झटका लगा है।

2 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं जस्टिस दीपक मिश्रा
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा इसी वर्ष 2 अक्टूबर को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं, माना जा रहा है कि वह जस्टिस गोगोई का नाम अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आगे बढ़ा सकते हैं, क्योंकि वह सबसे वरिष्ठ जज हैं, अगर जस्टिस चेलमेश्वर के नाम को अलग रखे जोकि जून माह में रिटायर हो रहे हैं। आपको बता दें कि मौजूदा सीजेआई ही अपने उत्तराधिकारी के नाम का सुझाव देते हैं और वह सरकार को इस नाम के बताते हैं, जिसके बाद सीजेआई राष्ट्रपति को इस उम्मीदवार के नाम को सौंपते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सरकार को नए मुख्य न्यायाधीश के नाम का चयन करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके और निर्वाचित नाम को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जा सके। नए मुख्य न्यायाधीश का चयन वरिष्ठता के आधार पर होता है।

1977 में न्यायपालिका का काला दिन
न्यायपालिका के इतिहास का काला अध्याय उस वक्त सामने आया था जब जस्टिस एचएस खन्ना को जस्टिस एमएच बेग की जगह सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। जस्टिस बेग ने एडीएम जबलपुर केस में अपनी असहमति जाहिर की थी, जब उन्होंने आपातकाल के दौरान जीने के मौलिक अधिकार के लिए अपना फैसला सुनाया था। उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जस्टिस खन्ना को 1977 में सबसे वरिष्ठ जज होने के बाद भी मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया था, जिसके बाद जस्टिस खन्ना ने अपने पद से तत्काल इस्तीफा दे दिया था।

1973 में दे दिया था तीन जज ने इस्तीफा
इससे पहले 1973 में केशवानंद भारती मामले में फैसला देने के बाद जिस तरह से इंदिरा गांधी ने एसएम सीकरी को मुख्य न्यायाधीश बनाया था उसके बाद तीन जजों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जस्टिस जेएम शेलट, जस्टिस एएन ग्रोवर और जस्टिस केएस हेगड़े जोकि सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज थे उन्होंने इंदिरा गांधी के फैसले के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। यही नहीं इससे पहले 2004 में भी एक साथ पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के जज एक दिन की छु्टी पर चले गए थे, ये सभी जज सीजेआई बीके रॉय के साथ मतभेद के चलते छुट्टी पर चले गए थे।
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