आरुषि-हेमराज मर्डर केस: कट गयी आरोपों की तलवार, जिन्दा रहे मां-बाप पर विश्वास
दिल को सुकून मिला कि तलवार दंपती बरी हो गयी। ऐसा लगा मानो मां-बाप के रूप में खुद को किसी लम्बी सज़ा से आज़ादी मिली हो।
नई दिल्ली। दिल को सुकून मिला कि तलवार दंपती बरी हो गयी। ऐसा लगा मानो मां-बाप के रूप में खुद को किसी लम्बी सज़ा से आज़ादी मिली हो। बीते 9 साल में पल-पल मौत हुई, हर सांस भारी लगी जो उन आरोपों को झटक देने के लिए बेचैन थी जिसने एक मां-बाप को अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में जेल तक पहुंचा दिया था। इस अहसास की अभिव्यक्ति तलवार दंपती की ओर से नहीं, इंसानियत की ओर से एक सामाजिक प्राणी के तौर पर हो रही है।
साल में दर्द से गुजरा है हर मां-बाप
खबर ये नहीं है कि राजेश और नुपुर तलवार जेल से छूट जाएंगे, कि वे बरी हो गये, कि सीबीआई के प्रयास विफल हो गये, कि आरुषि-हेमराज के हत्यारे पकड़े नहीं गये....कि इस खबर से जुड़े एक से बढ़कर एक वाकये नये सिरे से ख़बर बने। खबर ये है कि हाईकोर्ट के फैसले ने मां-बाप को जिन्दा कर दिया है। ये सच है कि हत्या आरुषि-हेमराज की हुई थी, जिनके शव दुनिया ने देखे। मगर, अपनी ही औलाद की हत्या के आरोप में तिल-तिल कर मरते मां-बाप की आत्मा को दुनिया ने नहीं देखा। राजेश-नुपुर तलवार ही नहीं, बीते 9 साल के दौरान इस दर्द से गुजरी है हर बेटी की मां, इस दर्द से गुजरा है हर बेटी का बाप।
ऐसा नही है कि इस धरती पर अपनी औलाद के हत्यारे मां-बाप नहीं हैं। भ्रूण हत्या से लेकर मोहब्बत करने वाली औलादों को सरे आम मौत की सज़ा देने वाले मां-बाप भी इसी धरती पर हैं, मगर आरुषि बेटी की हत्या का मामला कुछ अलग रहा। हत्या, सेक्स स्टोरी, स्वैपिंग सेक्स, हत्या की पर्देदारी के एक से बढ़कर एक तरीके, सैम्पल बदलने, नयी-नयी कहानियां...ये सब मिलकर आरुषि के बाद अब हमारे बच्चों से उनके माता-पिता छीन रहे थे।माता-पिता का होता है जो मतलब...
माता-पिता का मतलब होता है जिन पर बच्चे करते हैं सम्पूर्ण विश्वास, जिन पर बच्चों की होती है अंधभक्ति, जिनसे बच्चे रखते हैं पूरी आसक्ति, जो बच्चों के लिए होते हैं संकटमोचक, जो बच्चों के होते हैं पालनहार, जो बच्चों के लिए होते हैं आदर्श। लाड़-प्यार-मान-सम्मान सब कुछ मां-बाप से जुड़ा होता है और ये कहानी संतानों से अपने मां-बाप को छीन रही थी। मां-बाप अपने बच्चों को आरुषि की कहानी से दूर रखने लगे थे। हाईकोर्ट ने ऐसे सभी मां-बाप को राहत दी है, सभी संतानों को सांत्वना दी है।
फेल
हुई
एजेंसी
तो
हों
फेल
देश
की
सबसे
बड़ी
एजेंसी
फेल
हो
गयी,
तो
यह
शर्मनाक
घटना
पहले
भी
हुई
है
और
आगे
भी
होती
रहेगी।
पहले
भी
जब
सीबीआई
ने
इसी
मामले
में
क्लोजर
रिपोर्ट
फाइल
की
थी
और
अदालत
के
आदेश
पर
दोबारा
जांच
शुरू
हुई,
तब
भी
सीबीआई
उसी
शर्मनाक
स्थिति
में
थी।
घटना
के
9
साल
बाद
भी
स्थिति
वही
है।
जांच
में
हाईकोर्ट
को
किस्से
कहानियों
के
अलावा
कुछ
ऐसा
नहीं
मिला,
जिससे
आरुषि
को
खो
चुके
मां-बाप
को
हत्यारा
साबित
किया
जा
सके।
हाईकोर्ट
ने
कहानी
की
लड़ियां
टूटी
हुई
पाईं
और
संदेह
का
लाभ
तलवार
दंपती
को
दिया।
अजीबो गरीब था तर्क का आधार
दरवाजा अंदर से बंद था। बाहर से कोई आया नहीं। अंदर मृत आरुषि के मां-बाप ही घर पर थे। इसलिए हत्यारे वही हो सकते हैं। क्या किसी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की जांच का यही आधार होगा? यह सवाल खुले ढंग से पूछने का मौका हाईकोर्ट ने मयस्सर कराया है। ख़बर ये भी है।
बीते
पलों
की
क्षतिपूर्ति
नहीं
हो
सकती
एक
मां-बाप
के
तौर
पर
हमें
नहीं
लगता
कि
अब
तलवार
दंपती
कानून
की
उस
धारा
के
तहत
खुद
को
सज़ा
के
बदले
क्षतिपूर्ति
मांगेंगे
जिसमें
निरपराध
रहते
हुए
भी
जेल
भुगतना
पड़ता
है।
क्योंकि,
यह
उन
बीते
पलों
की
क्षतिपूर्ति
हो
ही
नहीं
सकती।
तलवार
दंपती
के
आगे
जीवन
में
कुछ
हासिल
करने
को
बाकी
नहीं
रह
गया
है।
जीने
का
मकसद
भी
शायद
ज़िन्दा
न
बचा
हो।
इकलौती
संतान
की
हत्या
के
कलंक
से
बेदाग
होने
से
बड़ा
मकसद
अब
उनके
लिए
कुछ
रह
ही
नहीं
गया
था।
यही
एक
मकसद
था
जिसके
लिए
इन्होंने
अपने
आपको
ज़िन्दा
रखना
ज़रूरी
समझा
होगा।
आगे
की
ज़िन्दगी
अगर
वे
ऐसे
ही
मकसद
के
लिए
तैयार
करें
जो
दूसरों
को
इंसाफ
की
लड़ाई
लड़ने
के
लिए
प्रेरणा
दे
तो
वह
सौभाग्य
की
बात
होगी।
तलवार दंपती को देखने का नज़रिया बदला
तलवार दंपती को देखने का दो स्पष्ट नज़रिया बनता है। एक आरोपों से घिरे मां-बाप के रूप में उनका अस्तित्व है तो दूसरा संघर्ष करते हुए इन आरोपों से लड़कर न सिर्फ अपने लिए जीत हासिल करना, बल्कि मां-बाप के लिए संतान की उम्मीदों को बचाए रखने के संघर्ष में जीत हासिल करना है।
न्याय
की
चौखट
से
आएंगी
अमृत
की
कुछ
और
बूंदें
हो
सकता
है
कि
सीबीआई
हाईकोर्ट
के
आदेश
को
भी
चुनौती
दे
और
ये
मामला
आगे
बढ़े।
मगर,
अब
अदालत
में
एकतरफा
सुनवाई
के
आसार
खत्म
हैं।
सुनवाई
होगी,
तो
न्याय
की
चौखट
से
कुछ
और
अमृत
सामने
आएंगे,
जो
समाज
को
अंधेरे
से
निकलने
के
रास्ते
बताएंगे।
तलवार
केस
ने
यह
उम्मीद
भी
बंधाई
है।
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