केरल का एक गांव क्यों बनने जा रहा है 100% हिंदी भाषी
केरल के कोझिकोड जिले में चेलान्नुर नाम के एक गांव के अगले साल गणतंत्र दिवस तक 100 फीसदी हिंदी साक्षरता हासिल कर लेने की उम्मीद है। यह ऐसे समय में हो रहा है, जब केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य केंद्र सरकार पर हिंदी थोपे जाने का आरोप लगाते हुए उसका विरोध कर रहे हैं। चेलान्नुर ने पिछले साल ही हिंदी साक्षरता का प्रोजेक्ट लॉन्च किया था और इसके लिए 20 से 70 साल के उम्र के लोगों को हिंदी सिखाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन, हिंदी सीखने की ललक वहां इतनी है कि 70 के पार के लोग भी हिंदी कक्षाओं में पहुंच रहे हैं, क्योंकि उन्हें तो हर हाल में हिंदी सीख लेना है।
केरल का एक गांव हिंदी में 100% साक्षरता पाने की ओर
केरल के चेलान्नुर नाम के गांव में प्रवासी कामकारों की बहुत बड़ी जनसंख्या है। उनके साथ बेहतर संवाद कायम करने के लिए पिछले साल हिंदी साक्षरता अभियान शुरू किया गया था। लक्ष्य रखा गया है कि अगले साल गणतंत्र दिवस तक चेलान्नुर को पूरी तरह हिंदी साक्षर पंचायत घोषित कर दिया जाए। कांग्रेस शासित पंचायत के पदाधिकारियों के मुताबिक ऐसा होने पर चेलान्नुर शायद केरल ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत का ऐसा पहला पंचायत होगा, जो हिंदी में पूरी तरह से साक्षर होगा। गांव के लोगों के बीच हिंदी की लोकप्रियता देखते हुए लग रहा है कि टारगेट निश्चित रूप से पूरा होगा।
केरल-तमिलनाडु में विरोध के बीच लोकप्रिय हुआ हिंदी
चेलान्नुर पंचायत के पदाधिकारियों को अपने गांव में सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए मानव संसाधन से जुड़ा एक अनोखा प्रोजेक्ट लागू करना था। लेकिन, पंचायत में बड़ी तादाद में प्रवासी कामगारों की मौजूदगी ने उन्हें व्यावहारिक कारणों से हिंदी साक्षरता मिशन लॉन्च करने के लिए मजबूर कर दिया। केरल के इस ग्राम पंचायत में यह हिंदी परियोजना संसदीय कमेटी के उन सिफारिशों से काफी पहले शुरू की जा चुकी थी, जिसमें उच्च शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी रखने की सलाह दी गई है और जिसका राजनीतिक तौर पर केरल और तमिलनाडु में भारी विरोध हो रहा है। चेलान्नुर ने इससे काफी पहले ही पूरे गांव को पूरी तरह से हिंदी में साक्षर बनाने की ठानी थी।
हर उम्र के लोग सीखना चाहते हैं हिंदी
गांव की एक बुजुर्ग महिलाओं ने जिस तरह से खुशी-खुशी हिंदी सीखने की ललक दिखाई है, वह हिंदी विरोध की राजनीति करने वाले नेताओं के लिए बड़े तमाचे की तरह है। न्यूज एजेंसी पीटीआई 72 वर्षीय बुजुर्ग जानकी अम्मा के हिंदी सीखने के बारे में बताया है कि वो बड़ी ही तल्लीनता से एक वाक्य दोहरा रही हैं- 'एक ठंडी अंधेरी रात सड़क पे जा रहा है....' उनकी बेटी अथमिनी को लगता है कि शायद कुछ नया सीखने की उत्साह है जो जानकी अम्मा इस वाक्य को हर वक्त दोहराती रहती हैं। गांव में उत्तर भारतीय प्रवासी कामकारों की अच्छी तादाद हो चुकी है। इसलिए जानकी अम्मा की तरह सैकड़ों गांव वाले हिंदी सीखने के अभियान से जुड़े हुए हैं। ये लोग हर उम्र और लिंग के हैं और कम शिक्षित से लेकर बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी हिंदी भाषा सीखने के अभियान से जुड़े हुए हैं।
प्रवासी कामगारों से बातचीत करने के लिए सीख रहे हैं हिंदी
अधिकारियों ने माना है कि हिंदी सीखने को लेकर इतनी ललक की असल वजह यही है कि वह दूसरे राज्यों से आए कामकारों के साथ आसानी से संवाद कर सकें। पंचायत अध्यक्ष नौशीर पीपी ने कहा कि प्रोजेक्ट का लक्ष्य गांव में 20 से 70 साल के हर व्यक्ति को हिंदी में साक्षर बनाना है। उन्होंने कहा, 'हमारे प्रोजेक्ट और हिंदी को लेकर हालिया विवाद के बीच कोई संबंध नहीं है। प्रोजेक्ट का विचार और अन्य बुनियादी कार्य पिछले साल शुरू हुए थे। लॉन्च करने से पहले यह पहचानने के लिए एक सर्वे किया गया था कि किन्हें बहुत अच्छे से हिंदी नहीं आती है और कौन लोग यह भाषा सीखना चाहते हैं।'
बुजुर्गों के बीच भी लोकप्रिय हुआ हिंदी साक्षरता अभियान
ग्राम पंचायत ने प्रशिक्षकों का एक पैनल तैयार किया और कई वर्कशॉप आयोजित किए। इसमें हिंदी टीचरों के अलावा पूर्व सैन्य-कर्मी, खाड़ी से लौटे लोग और उन गृहणियों को शामिल किया गया, जिन्हें यह भाषा अच्छे से आती थी और उन्हें पैनल में शामिल किया गया। पंचायत अध्यक्ष के मुताबिक, 'गांव के स्कूलों के हिंदी टीचरों के सहयोग से टीचिंग का मॉड्यूल और स्टडी मटेरियल तैयार किया गया। फिर इन स्टडी मटेरियल और प्रशिक्षकों की सहायता से सभी 21 वार्ड में हिंदी स्टडी क्लास शुरू कर दिया गया।' प्रोजेक्ट की सफलता का अंदाजा इसी से लगता है कि जहां सिर्फ 70 की उम्र के लोगों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था, वहां जानकी अम्मा की तरह 77-78 साल के लोगों ने हिंदी सीखने के प्रति दिलचस्पी दिखाई है।
रोजमर्रा की जिंदगी आसान कर देगी हिंदी
जानकी अम्मा ने अपने बारे में बताया कि 'मैंने ने पांचवीं में पढ़ाई छोड़ दी थी। उसके बाद मैं अब फिर से पढ़ रही हूं। यह बहुत ही बढ़िया है। वे हमें आवश्यक शब्द और वाक्य सिखा रहे हैं, जिसे हम रोजमर्रा के जीवन में उपयोग कर सकते हैं।....' इसी तरह एक और हिंदी सीखने वाले अब्दुल सलाम ने कहा, 'यहां के लोकल प्रॉविजन स्टोर में डिलिवरी बॉय और हेल्पर प्रवासी हैं। होटल और कंस्ट्रक्शन वर्कर प्रवासी हैं। छोटे-मोटे काम करने वाले आए ये लोग गेस्ट वर्कर हैं। मुझे लगता है कि यह अच्छा होगा कि मैं उनसे हिंदी में पूछ सकूं कि क्या उन्होंने खाना खाया है।' (अंतिम चारों तस्वीरें- प्रतीकात्मक)