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62 लाख की लगान माफ़ी के लिए 62 साल इंतज़ार

"धरती हमारी. ये जंगल-पहाड़ हमारे. अपना होगा राज. किसी का हुकुम नहीं. और ना ही कोई टैक्स-लगान या मालिकान. हमारे पुरखे इन्हीं उसूलों को लेकर अंग्रेज़ों और ज़मींदारों के खिलाफ लड़ते रहे. अब किसी ने कोई दूसरी धरती अलग से तो नहीं बनाई जो हम सरकार को लगान दें."

सुका टाना भगत स्थानीय लहज़े में यह कहते हुए अपने पुरखे जतरा टाना भगत की मूर्ति को एकटक निहारते हैं.

By BBC News हिन्दी
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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
टाना भगत

"धरती हमारी. ये जंगल-पहाड़ हमारे. अपना होगा राज. किसी का हुकुम नहीं. और ना ही कोई टैक्स-लगान या मालिकान. हमारे पुरखे इन्हीं उसूलों को लेकर अंग्रेज़ों और ज़मींदारों के खिलाफ लड़ते रहे. अब किसी ने कोई दूसरी धरती अलग से तो नहीं बनाई जो हम सरकार को लगान दें."

सुका टाना भगत स्थानीय लहज़े में यह कहते हुए अपने पुरखे जतरा टाना भगत की मूर्ति को एकटक निहारते हैं.

हमने सुका टाना से यही पूछा था कि आख़िर लगान क्यों नहीं देना चाहते और इसके लिए इतनी लंबी लड़ाई हुई कैसे?

दरअसल, झारखंड में आदिवासी समुदाय के टाना भगतों का साल 1956 से बकाया लगान माफ़ कर दिया गया है. माफ़ी की यह राशि 61 लाख 63 हजार 209 रुपए है.

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लगान माफी का संकल्प
Niraj Sinha/BBC
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अब आगे टाना भगतों की ज़मीन को लेकर सरकार टोकन के तौर पर सिर्फ़ एक रुपए का सेस लेगी. इस बारे में सरकार के राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग ने संकल्प जारी कर दिया है. साथ ही आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित ज़िलों के अपर समाहर्ताओं को हाल ही में पत्र भेजा गया है.

साथ ही ज़िलों के उपायुक्तों से टाना भगतों के विकास के लिए ठोस कदम उठाने को कहा गया है.

सुका टाना भगत झारखंड में बेड़ो ब्लॉक के खकसी टोली गांव के रहने वाले हैं. जंगलों-पहाड़ों से घिरे इस गांव में टाना भगतों के 30 परिवार हैं.

ग़रीबी में जीना, पर कर्म और वचन के पक्के. पुरखों के साथ तिरंगा और अहिंसा के पुजारी. गांधी को जीने वाले. बेहद सरल और सहज. टाना भगतों की यही पहचान है. झारखंड में मुख्य तौर पर ये लोग रांची, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी और चतरा ज़िले के दूरदराज के गांवों में बसे हैं.

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जतरा टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
जतरा टाना भगत

सुबह हम जब खकसी टोली पहुंचे तो कच्ची गलियों में लोगों की आवाजाही कम थी. पता चला बहुत से लोग खेत-खलिहान चले गए हैं.

गांव में जतरा टाना भगत की मूर्ति लगी है. यहीं पर सुका टाना भगत के साथ कुछ और लोग प्रार्थना करते मिले. जतरा और तुरिया टाना भगत जैसे वीर पुरखे इस समुदाय के दिलों में बसते हैं.

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इंतज़ार करेंगे

सरकार की ओर से लगान माफ़ी को लेकर जारी आदेश के बारे में जानकारी देने पर सुका और एतवा टाना एक साथ बोल पड़ेः सुना तो है, पर हाथ में कागज़ मिलने तक वे इंतज़ार करेंगे.

आख़िर सरकार का फैसला, काग़ज़ मिलने के बाद ही पता चलेगा. क्योंकि पहले भी सरकार और अफ़सर कई किस्म का भरोसा दिलाते रहे हैं. लगान माफ़ी के साथ ज़मीन पर उनका हक हो इसलिए वह काग़ज़ चाहते हैं.

हालांकि, सरकार ने पत्र के हवाले से स्पष्ट कहा है कि एक रुपए सेस वसूली के साथ रसीद जारी की जाएगी ताकि टाना भगतों की पहचान बनी रहे.

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टना भगत
Niraj Sinha/BBC
टना भगत

टाना भगतों को इसका भी दुख है कि अपने समुदाय के लोग संघर्ष दशकों से कर रहे हैं पर वे भी संघ-संगठन और ज़िले के नाम पर बंटते रहे हैं. सुका का कहना था कि मुख्यमंत्री ने बातें अच्छी की हैं, देखिए काम कितना होता है.

अखिल भारतीय टाना भगत संघ सोनचिपि के अध्यक्ष झिरगा टाना भगत भी सुका की बातों की तस्दीक करने के साथ कहते हैं कि लगान माफ़ी और सेस को लेकर सरकार ने जो संकल्प जारी किया है उस पर किस किस्म की कार्रवाई होती है, यह देखना बाकी है. उन्हें ज़मीन माफी की रसीद भी नहीं दी जाती रही है जिसकी मांग पुरानी हो चुकी है.

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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
टाना भगत

बाकी है लड़ाई

सुका टाना कहते हैं कि अंग्रेज़ों ने उनकी जमीन नीलाम कर दी थी उसे लौटाने के लिए और वन पट्टा हासिल करने के लिए वे लोग संघर्ष करते रहेंगे. हालांकि, मुख्यमंत्री ने बहुत भरोसा दिलाया है पर उनके अफ़सर-बाबू यहां किसकी सुनते हैं.

बातों के बीच सुका कतली से सूत कातने में जुट जाते हैं. इसी सूत से वे लोग जनेऊ बनाते हैं. हर तीन महीने पर वे इसे बदलते हैं. साथ ही घर के दरवाज़े पर गड़ा बांस और तिरंगा भी बदलते हैं, जिसकी वे हर सुबह पूजा करते हैं.

एतवा टाना भगत की टीस है कि टाना भगतों ने शिद्दत से स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी, गांधी के विचारों का अनुसरण किया, लेकिन आज़ादी के दशकों बाद भी वे लोग पक्की सड़कें, पक्के मकान, सिंचाई के साधन और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसते रहे हैं. अलबत्ता प्रखंड से राज्य मुख्यालय तक अपनी बात पहुंचाने के लिए तिरंगा थामे घड़ी-घंटे के साथ चप्पलें ज़रूर घिसते रहे.

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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
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क्यों हाशिए पर रहे

जतरा टाना की मूर्ति के ठीक सामने मंगरा टाना भगत का जीर्ण-शीर्ण कच्चा मकान है. वह बताने लगे, "पुरखों के आंदोलन, वीरगाथा को ओढ़ना-बिछौना बनाया और पठारी ज़मीन को जीने का ज़रिया. झूठ बोला नहीं जाता. अहिंसा से खांटी तौबा. और तंत्र के सामने चिरौरी भी नहीं. ज़ाहिर है हमारा मकान कच्चा रहेगा, चेहरे पर उदासी रहेगी और पैसा-पूंजी भी साथ नहीं होगा."

मंगरा के सवाल भी हैं. अंग्रेज़ों-ज़मींदारों से पुरखों की लड़ाई भी बेहद कठिन रही होगी जबकि हमारी लड़ाई तो अपनी सरकार अपना राज में कठिन बन पड़ी है. उन्हें इसका दुख है कि जतरा टाना भगत के मूर्ति स्थल का सौंदर्यीकरण कराने पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. और जो वादे किए जाते हैं वो ज़मीन पर नहीं उतारे जाते.

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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
टाना भगत

सरकारी योजना के तहत इस गांव में चार लोगों को अब तक पक्का मकान मिला है. एतवा टाना के बेटे बिरसा को फ़ौज की नौकरी मिल गई है जबकि गांव के एक युवा मंगे टाना भगत पारा शिक्षक (शिक्षामित्र) का काम मिला है.

टाना भगतों में बड़े-बुज़ुर्गों की लंबी केस-दाढ़ी. सफेद धोती, पगड़ी-टोपी, महिलाओं की सफ़ेद साड़ी यही पहचान रही है. लेकिन युवाओं और बच्चों के बीच अब ये परंपरा हाशिए पर पड़ती दिख रही है.

बी.ए. की पढ़ाई कर रहे जीतू टाना भगत कहते हैं कि उन लोगों को रोज़गार का सवाल डराता है. डर इसका भी है कि अधिकारों के लिए उनके बाप-दादा का आंदोलन, इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगा. यह सिलसिला आखिर कब तक चलेगा कि विकास और अधिकार के सवाल पर टाना भगतों का समूह हर दिन अपनी मांग लेकर अधिकारी-नेता से मिलकर दुखड़ा सुनाते रहें.

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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
टाना भगत

पत्थरों में संजो हैं यादें

इसी गांव के सीमाना पर ग्रामीणों ने टाना भगत स्मारक बनाया है. पत्थरों पर अलग-अलग गावों से टाना भगत स्वतंत्रता सेनानियों के नाम खुदे हैं. यहीं पर मिले महादेव टाना भगत. उन्हें इसका दुख है कि इस स्थल की अब तक प्रशासन ने घेराबंदी नहीं कराई है जबकि यही पत्थर उन्हें लड़ने की ताकत देते हैं.

घर-गृहस्थी के सवाल पर वह बताने लगे कि सिंचाई की सुविधा मिल जाए, तो वे लोग अपने दम पर आगे निकल जाएंगे.

टाना भगतों के मन-मिजाज़ इसके संकेत भी देते रहे कि हर किसी को पूरे समुदाय की चिंता है ना कि ख़ुद की.

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टाना भगत
Niraj Sinha/BBC
टाना भगत

विकास प्राधिकार

इधर टाना भगतों के समेकित विकास और कल्याण के लिए सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्राधिकार का गठन किया है. इसमें टाना भगतों के पांच प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा रहा है. हाल ही में इस समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बैठक की है. साथ ही वादा किया है कि सरकार उन्हें हर हाल में मुख्यधारा में लाएगी.

मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि जिन टाना भगतों के घर नहीं हैं. उन्हें सरकार मकान बनाकर देगी. हर परिवार की महिलाओं को चार-चार गायें भी दी जाएंगी. साथ ही राजधानी रांची में टाना भगतों के लिए अतिथि गृह का निर्माण होगा और उन्हें पेंशन भी दी जाएगी.

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English summary
62 lakh wait for 62 years for forgiveness
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