5 कारण जो कहते हैं नहीं आये यह सांप्रदायिक दंगा विरोधी कानून
सबसे अहम है देश के आम नागरिक की सुरक्षा और अगर आप इस बिल के मुख्य बिंदुओं को ध्यान से पढ़ेंगे, तो आप खुद असुरक्षित महसूस करने लगेंगे। इसी दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भारत में सांप्रदायिक दंगा भड़कने में महज दो परिवारों के बीच कहा-सुनी ही काफी होती है। और अगर भूलकर भी दो अलग-अलग धर्म या जातियों के लोगों के बीच मारपीट हो गई, तो दंगा भड़कने में जरा भी देर नहीं लगती। भारत में सांप्रदायिक दंगों की बात करें तो बाबरी मस्जिद को लेकर सबसे पहली बार 1886 में हिंसा भड़की थी, 1992 और उसके बाद तक क्या-क्या हुआ, इससे आप बखूबी परिचित होंगे।
1947-48 में बंगाल और पंजाब में हुई सांप्रदायिक हिंसा में 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गये, 1984 के दंगे, अयोध्या कांड, गुजरात दंगे, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, समेत कोई भी राज्य इससे अछूता नहीं रहा। और अब हाल ही में मुजफ्फरनगर के दंगों की राख बार-बार ऐसे कड़े कानून की मांग कर रही है, जिसके बाद लोग सांप्रदायिक हिंसा फैलाने से डरें, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारी सरकार ने ऐसा ड्राफ्ट तैयार किया है, जो कहीं दंगों को रोकता है, तो कहीं हवा देता है, एक वर्ग को एक जगह सजा का हकदार मानता है, तो एक जगह सजा-ए-मौत तक की सजा देता है। चलिये एक-एक कर दंगा विरोधी बिल के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करते हैं-
1. सामान्य अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा
नये कानून में- सांप्रदायिक हिंसा सामान्य अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगी। यानी अगर सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कोई आपसी खुन्नस निकालते हुए दूसरे धर्म के व्यक्ति की हत्या भी कर दे, तो उस पर हत्या की जगह दंगा भड़काने की धाराएं लगाये जायेंगी। सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें प्रत्यक्षदर्शी को भी दंगाई की नजर से देखा जायेगा, यानी उसकी गवाही हत्या के केस में नहीं मानी जायेगी।
परिणाम- सांप्रदायिक हिंसा के दौरान लोग निकालेंगे आपसी रंजिशों का बदला।
2. भीड़ में खड़े सभी लोग दोषी
नये कानून में- यदि किसी इलाके में सांप्रदायिक हिंसा फैलती है और पुलिस उस पर नियंत्रण कसने के बाद भीड़ में खड़े लोगों को गिरफ्तार करना शुरू करती है, तो सभी पर बराबर से धारायें लगायी जायेंगी। भीड़ अगर हिंसा फैला रही है और आप बीच में फंस गये हैं, तो आपको भी दंगाई माना जायेगा।
परिणाम- निर्दोश लोग भी जायेंगे जेल।
3. महिलाओं पर नहीं चलेगा केस
नये कानून में- सांप्रदायिक दंगे के दौरान पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं करेगी, क्योंकि इस विधेयक में सभी धारायें पुरुषों के खिलाफ तय की गई हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम के बाद भारतीय कानून में ऐसा पहली बार होगा जब पुरुष और महिला को बराबर नहीं समझा जायेगा। परिणाम- सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कानून का गलत फायदा उठा सकती हैं महिलाएं।
4. माइनॉरिटी, एससी-एसटी को विशेष सुरक्षा
नये कानून में- दंगे के दौरान माइनॉरिटी यानी अल्पसंख्यक, एससी, एसटी, आदि वर्ग के लोगों को पुलिस स्पेशल प्रोटेक्शन देगी। यानी पुलिस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को गिरफ्तार कर सकेगी। कानून का यह बिंदु बेहद हास्यास्पद और लोगों में गुस्सा पैदा करने वाला है।
हास्यास्पद इसलिये क्योंकि अगर देश के किसी भी कोने में दंगे होते हैं, तो मुसलमानों को विशेष सुरक्षा दी जायेगी, लेकिन अगर दंगा जम्मू-कश्मीर में हुआ तो क्या होगा? वहां तो मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इसी प्रकार पंजाब के अलावा किसी भी राज्य में दंगे हुए तो पुलिस सिखों को सुरक्षा प्रदान करेगी, लेकिन अगर पंजाब में हुआ, तो क्या होगा? अगर भाषा के आधार पर देखें तो पूरे कर्नाटक में तुलु भाषी अल्पसंख्यक माने जाते हैं, लेकिन अगर मैंगलोर की बात करें, तो वहां वो बहुसंख्यक हैं। यानी कानून की परिभाषा भारत में हर 500 किलोमीटर पर बदल जायेगी।
गुस्सा- गुस्सा बहुसंख्यकों को आ सकता है, क्योंकि पुलिस अल्पसंख्यकों को ही सुरक्षा देगी भले ही दंगा करने वाले भी वही क्यों न हों। ऐसा गुस्सा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अभी से दिखने लगा है।
परिणाम- इस कानून से पुलिस को कंफ्यूजन होगा और दंगे के समय किसे सुरक्षा देनी है, किसे जेल में डालना है यह निर्णय लेना मुश्किल होगा। ऐसे में पुलिस भीड़ का शिकार बन सकती है।
5. पुलिस अधिकारी नपेंगे
नये कानून में- जिस इलाके में दंगा फैलेगा उस इलाके के शीर्ष पुलिस अधिकारी को जिम्मेदार माना जायेगा और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी, अगर उसे यह नहीं पता होगा कि दंगा सांप्रदायिक है या नहीं, अगर वो जरूरी कदम उठाने में नाकाम रहता है या अपने ऊपर के अधिकारियों को सूचित करने में नाकाम रहता है और जांच के दौरान पूरा ब्योरा नहीं दे पाता है।
सवाल- किसी भी हिंसा के भड़ने के वक्त कोई अधिकारी कैसे अंदाजा लगा सकता है कि हिंसा कितनी गहरी है और पहली नजर में वो कैसे तय कर सकता है कि यह सामान्य हिंसा है या सांप्रदायिक। रही बात जरूरी कदम की, तो जिस देश में जरूरी कदम रजनेताओं के निर्देशों पर उठाये जाते हों, वहां एक छोटा सा अधिकारी क्या कर सकता है।